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दुखी भारत

यदि मिस कैथरिन मेयो अपने आन्दोलन में क्षीण-दृष्टि से काम न लेकर ईमानदारी के साथ जाँच-पड़ताल करती तो टैगोर के निबन्धों के पढ़ने का धैर्य्य न रखने पर भी वह कलकत्ते में किसी से पूछ सकती थी कि स्वयं टैगोर के कुटुम्ब में लड़कियों का विवाह किस आयु में किया जाता है। यह स्पष्ट है कि वह कवि को बदनाम करने पर उतारू थी।"

आपके पाठकों से मेरा यह निवेदन है कि वे केसरलिङ्ग की पुस्तक में हिन्दू विवाह पर लिखे गये मेरे लेख को पढ़ें और मेरे साथ न्याय करने के लिए मिस मेयो को यह सिद्ध करने का चैलेंज दें कि उसके कथनानुसार यह सम्मति मेरी ही है कि—"बालविवाह महान आकांक्षाओं का पुष्प है। जाति की संस्कृति को ऊँचा उठाने के लिए विषय-वासना और देहवाद पर बुद्धिमानों की विजय है?" इसका अर्थ यह स्वीकार करना हुआ कि—"यदि स्त्रियों को अपने वश में रखना है तो उन्हें वयस्क होने से पहले ही अत्यन्त दृढ़ता के साथ बाँध कर दूसरों को सौंप देना चाहिए।"

अन्त में मैं आपके पाठकों का ध्यान एक दूसरे आश्चर्य्यजनक झूठे वक्तव्य की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। उसमें वह मुझे एक घृणित मज़ाक के साथ पश्चिमीय चिकित्सा विज्ञान के विरुद्ध आयुर्वेदिक चिकित्सा-प्रणाली के पोषक के रूप में उपस्थित करती है। यदि उसमें शक्ति हो तो इस बात को सिद्ध करके दिखलावे।

मेरे अतिरिक्त दूसरे भी कितने ही व्यक्ति हैं जो यदि पश्चिम के पाठकों तक पहुँच सके तो मेरी ही भांति अपनी शिकायतें उनके सामने उपस्थित करेंगे और उन्हें बतलायेंगे कि उनके विचारों को किस तरह गलत बनाया गया है, शब्दों को कैसे काटा छाँटा गया है और वास्तविकता को किस तरह घायल करके कुरूप बनाया गया है कि वह असत्य से भी बुरी जान पड़ती है।

शान्तिनिकेतन, श्रीरवीन्द्रनाथ टैगोर
९ नवम्बर, १९२७

कलकत्ते के एँगलो-इंडियन दैनिक पत्र 'दी इँगलिश-मैन' के ७ मार्च के अङ्क में कलकत्ता हाईकोर्ट के बैरिस्टरों के नेता मिस्टर एन॰ सी॰ सरकार ने स्वर्गीय लार्ड सिनहा की प्रशंसा में एक लेख छपाया है। हमें यह पता चला है कि लार्ड सिनहा से मिस्टर सरकार की बड़ी घनिष्ठता थी और लार्ड सिनहा के कामों तथा विचारों से वे भली भांति परिचित थे। मिस्टर