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दुखी भारत


ध्यान आकर्षित किया गया। और उनकी ओर से समाचारपत्रों में इसका प्रतिवाद छपाने के लिए एक निबन्ध भी तैयार किया गया पर लार्ड सिनहा ने उसे कहीं भेजने की आज्ञा नहीं दी।"

इससे लार्ड सिनहा के विरुद्ध उसके एक और झूठ का खण्डन हो जाता है।

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इस पुस्तक में योरप के स्त्री पुरुषों के नैतिक सम्बन्ध पर विचार करना उचित होगा या नहीं यह सोचने में मुझे कई रात बेचैन रहना पड़ा मैं मिस मेयो की स्त्री-जाति के प्रति बिना किसी वर्ण या जातिभेद के उसकी अपेक्षा कहीं अधिक आदर रखता हूँ। मेरा यह विश्वास है कि स्त्री के समान सुन्दर और पवित्र वस्तु और कोई नहीं है। इस संसार में मातृत्व उसे सर्वोच्च स्थान पर पहुँचा देता है। यही कारण है कि भारतवर्ष में मातृपद को इतना महान् आदर दिया गया है। प्राचीन काल के हिन्दू अनेक प्रकार से स्त्री की पूजा करते थे। शक्ति, सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा ये सब पूज्य देवियाँ हैं। माता, वधू, भगिनी, पुत्री प्रत्येक की पूजा का एक अलग त्योहार है। यह स्वीकार करने में मुझे ज़रा भी सङ्कोच नहीं कि हिन्दू समाज अपने आदर्शों से गिर गया है। मेरे विचार में यह एक-मात्र राजनैतिक पराधीनता का दुष्परिणाम है। और जब तक भारत को राजनैतिक स्वाधीनता प्राप्त नहीं हो जाती तब तक समुचित सुधार होना सम्भव नहीं है।

हिन्दूसमाज का फिर से सुधार करने में हम १८३० में ब्रह्मसमाज स्थापित होने के समय से लगे हैं। १८७७ से इस सम्बन्ध में आर्य्यसमाज बड़ा काम कर रहा है। दूसरी सामाजिक सुधारक संस्थाएँ भी इस ओर बड़े परिश्रम से जुटी हैं। सहस्रों सभा-मन्चों से हमने बाल-विवाह के विरुद्ध घोषणा की है। सरकार की धारा-सभाओं से कुछ सहायता न मिलने पर भी हम लोगों ने बालक-बालिकाओं की विवाह की आयु बढ़ाने में ठोस उन्नति की है। अब १२ वर्ष की आयु में विवाह सिर्फ कुछ ही जातियों में