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दुखी भारत

इस पुस्तक में इन सब विषयों की सविस्तर विवेचना की गई है। और मिस मेयो को चैलेंज देकर उसके वक्तव्यों का खण्डन किया गया है। यदि मिस मेयो हिन्दू सामाजिक जीवन की विशुद्ध आलोचना करती तो भारतीय समाज-सुधारक उसका साथ देते और बदले में पश्चिम की सामाजिक कुरीतियों का भण्डाफोड़ करने का विचार भी न कर उसकी आलोचनाओं से लाभ उठाते। दूसरे राष्ट्रों पर कीचड़ उछालना हमारा काम नहीं है। प्रत्येक में बुराइयाँ हैं। सत्य हो या असत्य, हम भारतीयों का यह विश्वास है कि कुछ कुप्रथाओं के होते हुए भी भारत में स्त्री-पुरुष का पारस्परिक जीवन पश्चिम की अपेक्षा कहीं अधिक पवित्र, कहीं अधिक स्वस्थ और कहीं अधिक सदाचारयुक्त है। विषय-भोग की उत्तेजना योरप में जैसी भयङ्कर है वैसी भारत में नहीं है। विषय-भोग से उत्पन्न रोगों में तो पूर्व और पश्चिम की तुलना ही नहीं हो सकती। दोनों में महान् अन्तर है। हमारे चिकित्सकों का कहना है कि ब्रिटिश लोगों के आगमन से पूर्व कुछ पहाड़ी जातियों को छोड़कर भारत में इन रोगों का पता ही न था। गर्मी के रोग का दूसरा नाम फिरङ्ग रोग भी है। यह नाम पड़ने का कारण यही है कि भारत को यह रोग फिरङ्गियों (योरप-वासियों) से प्राप्त हुआ।

यदि मिस मेयो यह कहती कि हमारा सामाजिक जीवन खोखला हो गया है और उसके सुधार और पुनर्निर्माण की आवश्यकता है तो हमें इतना कष्ट न होता जितना उसने राजनैतिक और स्वजातीय आन्दोलन के लिए अपने अधूरे ज्ञान का नीच प्रयोग करके और दुष्ट परिणाम निकाल कर हमें पहुँचाया है। लंदन के इंडिया आफ़िस ने भी उसे ऐसे परिणाम न निकालने के लिए सावधान कर दिया था परन्तु उसने इस सम्मति की कुछ परवाह न की और ३१ करोड ५ लाख मानवों से बसे सम्पूर्ण राष्ट्र पर कारिख पोत दी। हमारे विरुद्ध उसने झूठे अपराधों की सृष्टि करके यह दिखलाने का प्रयत्न किया है कि हम राजनैतिक स्वतंत्रता के अयोग्य हैं और हमारे लिए ब्रिटिश सरकार से बढ़कर अच्छी और कोई वस्तु नहीं। अभी हाल में ही सन् १९२४, २६ और २७ में मैं योरप गया था। वहाँ मैंने देखा कि भारत के स्वराज्य के अधिकार और माँग के विरुद्ध महान्