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व्यक्तियों की सहायता के साथ एक व्यापक, सुसङ्गठित, सम्पन्न और बड़ा आन्दोलन ग्रेट ब्रिटेन में ही नहीं, बरन पश्चिम के दूसरे देशों में भी और विशेषतया अमरीका में हो रहा है। इस अपवित्र युद्ध में योरप की सब प्रकार की शक्तियाँ काम कर रही हैं । सरकार के एंगलो इंडियन कर्मचारी जो पेंशन पाते हैं या अभी नौकरी ही कर रहे हैं, ईसाई-धर्म-प्रचारक और व्यापारी रईस सभी इसमें सम्मिलित हैं। उपाय जो काम में लाये जा रहे हैं वे अत्यन्त धोखेबाज़ी से भरे और घातक हैं । राजनैतिक और आर्थिक कारणों को पीछे ठेल दिया जाता है और सामाजिक बुराइयों को खूब प्रचंड प्रकाश रखा जाता है। भारत के विरुद्ध चारों तरफ़ घृणा का भाव उत्पन्न करने के लिए मिथ्या दृश्यों का बहुत बढ़ाकर प्रदर्शन किया जाता है। समाचार-पत्र, व्याख्यान-मञ्च, प्रार्थना-भवन, नाटक, सिनेमा सभी का हमारे विरुद्ध प्रयोग हो रहा है। इसमें सन्देह नहीं कि मिस मेयो की मदर इंडिया उसी आन्दोलन का एक अङ्ग-मात्र है। अँगरेज़ी जुए को उतार फेंकने के लिए एशिया में जो उद्योग हो रहे हैं उनका विरोध करना, उनकी दिल्लगी उड़ाना और उनके प्रति घृणा का भाव उत्पन्न करना यही उसके जीवन का उद्देश जान पड़ता है।

मैं पहले कह चुका हूँ कि अगस्त १९२५ में मिस्टर लायनन कर्टिज़ और मिस मेयो की भेंट हुई। 'भय के द्वीप' के इँगलिश संस्करण की भूमिका में कटिज़ ने निम्न लिखित सम्मति प्रकट की थी।[१]

"यहाँ (विलियम्स नगर में) और अमरीका के अन्य स्थानों में भी मुझे ऐसे मित्र मिले जो पुस्तकों में वर्णित बातों को पूरे ज्ञान और प्रमाण के साथ उपस्थित कर सकते हैं। दो विचारों में वे सब सहमत हैं। उनका कहना है कि मिस मेयो ने ऐसी कोई बात नहीं लिखी जो उनकी सम्मति में सच न हो।...आगे वे कहते हैं कि और भी बहुत सी ऐसी बातें हैं जिनके निरीक्षण की आशा, बिना कुछ वर्ष पहले गये, मिस मेयों से नहीं की जा सकती थी। मेरे ये सब मित्र भारत में रह चुके हैं और कई राष्ट्रीय नेताओं से मिल भी चुके हैं। मेरे इस प्रश्न पर कि फिलीपाइन और भारत के नेताओं में क्या अन्तर


  1. कर्टिज़। उसी पुस्तक से।