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दुखी भारत


है? हर एक ने (भिन्न अवसरों पर) यही उत्तर दिया कि भारतीय नेता बिलकुल भिन्न और ऊँचे धरातल पर हैं।"

कर्टिज़ महाशय यह जानते थे और मिस मेयो को भी अवश्य मालूम हो गया होगा कि भारत को दिये गये सुधार-नियमों पर पुनः विचार होगा और उनकी जाँच के लिए शीघ्र ही एक 'शाही जाँच' कमीशन नियुक्त होनेवाला है। इस कमीशन की बनावट के सम्बन्ध में लन्दन के 'टाइम्स' और टोरी दल के अन्य समाचार-पत्र कुछ पहले से ही आन्दोलन कर रहे थे। इसमें वे किसी भारतीय को सम्मिलित करना नहीं चाहते थे। वे हिन्दुओं की सामाजिक स्थिति पर आक्रमण करके और अछूत जातियों की असमर्थता पर विशेष बल देकर ब्रिटिश जनता को भारत के विरुद्ध पहले ही से भड़का रहे थे। इन नाम-मात्र की बुराइयों को दिखलाने के लिए 'टाइम्स' अपने पृष्ठ पर पृष्ठ भर रहा था। सम्भवतः ब्रिटिश दल के समाचार-पत्र यह जानते थे कि एक इस प्रकार की पुस्तक रची जा रही है। इसलिए जैसे ही पुस्तक प्रकाशित हुई 'एक स्वार्थ-रहित' विदेशी का कार्य कहकर उन पत्रों ने उसकी धूम मचानी आरम्भ कर दी। उनका पक्ष प्रबल करने के लिए यह अत्यन्त मूल्यवान् वस्तु थी। पुस्तक की किसी प्रकार की समालोचना को उसके पाठकों से दूर रखने के लिए वे इतने चिन्तित थे कि उन्होंने सम्पूर्ण सम्पादकीय-शिष्टाचार को एक-दम भुला दिया और लन्दन में उस समय उपस्थित प्रभावशाली और विश्वसनीय भारतीयों के हस्ताक्षर से युक्त मदर इंडिया पर लिखे गये एक समालोचना-पत्र को प्रकाशित करना अस्वीकार कर दिया। पुस्तक सहस्रों की संख्या में बिना मूल्य बाँटी गई। इन सब बातों से एक भारतीय के हृदय में पुस्तक के राजनैतिक और गैर-जातीय होने में कोई सन्देह नहीं रह जाता।

ऐसी परिस्थिति में हम जो सर्वथा सत्य है उसका वर्णन करके समुचित उत्तर क्यों न दें? मिस मेयो ने हममें जिन अवगुणों का वर्णन किया है वे योरपीय समाज में भी पाये जाते हैं। कुछ तो भारतीय समाज से और गहरे रूप में। पर वहाँ वे राजनैतिक और राष्ट्रीय स्वाधीनता में बाधक नहीं समझ जाते। मैं कह चुका हूँ कि इस प्रश्न पर सोचने के लिए मुझे कई