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विषय-प्रवेश


रात जगना पड़ा है। पर अन्त में मैं इस निर्णय पर पहुँचा कि जब मातृभूमि और सत्य के प्रति अपना कर्त्तव्य पालन करना है तो मुझे इस उत्तर को बिना पूरा किये नहीं छोड़ना चाहिए। और यद्यपि यह काम मेरे स्वभाव के अनुकूल नहीं है तो भी इसे करना ही उचित है।

जब मैं १९२० में अमरीका से लौटा था तो मेरे मित्रों ने मुझे पश्चिमीय जीवन के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट करने के लिए बहुत बार कहा था। पर मैंने ऐसा करना अस्वीकार कर दिया था क्योंकि उससे मुझे पश्चिमीय स्त्री-पुरुषों के नैतिक सम्बन्ध में जो कालापन है उसे भी दिखाने का अप्रिय कार्य्य करना पड़ता। मैं प्रत्येक राष्ट्र में जो खूबियाँ हैं उन्हीं को देखना ठीक समझता हूँ। इसी उपाय से हम अन्तर्जातीय सम्बन्धों की उन्नति कर सकते हैं और अन्तर्जातीय शान्ति स्थापित कर सकते हैं। इसलिए यदि मैं अपने जीवन में प्रथम बार उस नियम को भङ्ग करने जा रहा हूँ तो इसका पूर्ण उत्तरदायित्व मिस मेयो पर है अथवा उसके एंगलो-इंडियन समर्थकों पर।

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अपने प्रमाणों के प्रयोग, या यह कहना अधिक उचित होगा कि दुष्प्रयोग, में ही नहीं बरन अपने निज के लेखों में भी मिस मेयो का एक मात्र प्रयत्न यही रहा है कि हमारे जीवन का अत्यन्त घृणित और गन्दा चित्र तैयार हो। उसने शीघ्रता में जो सम्मतियाँ प्रकट की हैं उनमें लेश-मात्र भी सत्य नहीं है। हमारे 'अत्यन्त विषयीपने' से उसका मस्तिष्क दूषित होगया है और इसी विषय का जो वह समय असमय का ध्यान किये बिना बार बार वर्णन करती है उससे स्पष्ट है कि उसे किसी विचित्र लेखन-शैली का रोग हो गया है। पाठकों के अवलोकनार्थ हम उसकी इस ढङ्ग की कुछ बातें उद्धृत करते हैं:—

पृष्ठ २५—यदि आप उन्हें (अध्यापिकाओं को) आरम्भिक शिक्षा के लिए नियुक्त करते हैं तो मानों उन्हें सर्वसाधारण की आँखों के सम्मुख उपस्थित कर उनके सर्वनाश का बीज बोते हैं।