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दुखी भारत

पृष्ठ ३०—जो बच्चा जन्म समय के कष्ट को सह लेता है और बच भी जाता ह उसे प्रायः इन्द्रिय-सम्बन्धी रोग घेर लेते हैं।

पृष्ठ ३०—घर में बढ़ता हुआ बच्चा विषय-भोग की बातों को सुनते सुनते और कामों को देखते देखते बचपन में ही स्त्री-पुरुष-सम्बन्ध की सारी बातें सीख जाता है।

पृष्ठ ३२-३३—देश के अधिकांश भाग में, उत्तर में भी और दक्षिण में भी, छोटे बालकों को जिनका शरीर आकर्षक होता है बड़े लोग अपने विषय-भोग के लिए बहका लेते हैं या एक वेश्या के समान ये बालक किसी मन्दिर में रख लिये जाते हैं। माता-पिता इसमें कोई हानि ही नहीं देखते बरन यह जानकर प्रसन्न होते हैं कि उनका पुत्र चित्ताकर्षक है।

यह किसी खास दर्जे के लोगों की बात नहीं है। विशेष अज्ञानता भी इसका कारण नहीं। हम लोग जैसे भले और बुरे का भेद जानते हैं वैसे वे (भारतीय) नहीं जानते। वास्तव में वे उससे बहुत दूर हैं। मां चाहे उच्च जाति की हो चाहे नीच जाति की अपने बच्चों को स्वयं विषय की शिक्षा देती है। पुत्री को 'स्त्री की भाँति शयन करना' सिखाती है और पुत्र को 'पुरुष का कार्य्य करने' की शिक्षा देती है। यह एक ऐसा दुष्प्रयोग है कि कम से कम बालक तो इसे अपने शेष जीवन में प्रतिदिन जारी रख सकता है।

यह अन्तिम बात ध्यान देने की है। सब जाति और वर्गों के उच्च से उच्च प्रामाणिक वैद्य यह कहते हैं कि इस अवगुण के चिह्न चाहे जिस कारण से हो ध्यान से देखने से प्रायः प्रत्येक बालक के शरीर में पाये जाते हैं।

पृष्ठ ३४—अचलित हिन्दू-शास्त्र में किसी बात के लिए भी संयम का उपदेश नहीं मिलता। विषय-भोग के लिए तो बिलकुल ही नहीं।

पृष्ठ ३४—ऊपर दी गई साधारण बातों के पश्चात् किसी को यह सुन कर आश्चर्य नहीं हो सकता कि देश के एक सिरे से लेकर दूसरे सिरे तक हिन्दू पुरुष, यदि उन्हें विषय-भोग के लिए सब साधन प्राप्त रहते हैं, औसतन ३० वर्ष की आयु में बुड्ढे हो जाते हैं। और ऐसे प्रत्येक १० मनुष्यों में जिनकी आयु पचीस और तीस वर्ष के भीतर होती है, लगभग सात या आठ नपुंसक होते हैं। ये अङ्क यों ही नहीं लिख दिये गये हैं, और इनका कारण, ऊपर जो लिखा गया है उसके अतिरिक्त और कुछ नहीं है।[१]


  1. मिस मेयो की पुस्तक के एक पक्षपाती ब्रिटिश समालोचक मिस्टर रश-ब्रुक विलियम्स को भी जो पहले भारत-सरकार के प्रकाशन-विभाग के एजेन्ट थे, ऐसे वक्तव्य के प्रत्यक्ष भद्देपन को स्वीकार करने के लिए विवश होना पड़ा है। लन्दन के ऐसियाटिक रिव्यू में उनकी समालोचना छपी है।