पृष्ठ:दुखी भारत.pdf/५९

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विषय-प्रवेश

पृष्ठ ६१—(भारतीय स्त्रियाँ) साधारणतः दिन में दो या तीन बार पतिसङ्ग करती हैं।

पृष्ठ ६७—जब तक ब्रिटेन की शक्ति इतनी दूर तक (खैबर-मार्ग तक) नहीं पहुंची थी, कोई हिन्दू बिना स्त्री-वेष बनाये उसमें से जीवित नहीं निकल सकता था।

पृष्ठ ८४—अपने पति के घर में रहनेवाली स्त्री, उसकी मृत्यु के पश्चात् विधवा हो जाने पर यद्यपि अपनी रक्षा का हिन्दू नियम के अनुसार दावा नहीं कर सकती तथापि ऊपर वर्णन की गई बातों का पालन करने से वह घर में रख ली जा सकती है या निकाल दी जा सकती है। तब वह चाहे भिक्षावृत्ति करके अपना निर्वाह करे चाहे वेश्या-वृत्ति करके। अधिकतर वह वेश्यावृत्ति ही स्वीकार करती है। वह मैले कुचैले चिथड़े पहने, सिर मुंडाए, दुःखी जीवन से फँसा जाता हुआ चेहरा लिये मन्दिरों की भीड़ में या तीर्थ-स्थाने की गलियों में प्रायः दिखाई पड़ती है। वहाँ कंजूस पुण्यात्मा लोग कभी कभी उसे एक मुट्ठी चावल दे देते हैं।

पृष्ठ ८८—हिन्दू विधवा का पुनर्विवाह अब भी कल्पनातीत समझा जाता है।

पृष्ट ९१—भारतीय स्त्रियों के जीवन में जब अत्यन्त कोमल, भयप्रद और आवश्यक घड़ी उपस्थित होती है तो उनकी देख रेख का भार किसी निधन और गन्दे घर से बुलाई गई अन्धी, लँगड़ी, लकवा ले बेकाम और रोगग्रस्त बुढ़िया को सौंपा जाता है। (यह उसने दाइयों के सम्बन्ध में लिखा है)

पृष्ठ १५४—आज भी अस्पृश्यता के पक्ष में लाखों हैं। और यद्यपि मिस्टर गांधी अपने विश्वास पर दृढ़ रहते हैं तथापि उनके अनुयायियों में से बहुत कम ऐसे हैं जिन्होंने यहाँ तक उनका साथ देने का कभी विचार किया हो। पृष्ठ ३०८—"बिना अँगरेज़ों की सहायता के भारतवर्ष में उनके अतिरिक्त जो हमारे (पठानों के) गुलाम बन कर रहें और कोई हिन्दू नहीं रह सकता।"

पृष्ठ ३२५—"यदि हम अपने बच्चों की रक्षा करें तो देवता हम से अप्रसन्न हो जायेंगे और हमें शाप देंगे।"

यह बात एक बङ्गाली माता के मुँह से कहलाई गई है।

पृष्ठ ३३२—कोई कट्टर हिन्दू जूता पहनना स्वीकार न करेगा और स्त्री तो कदापि नहीं कर सकती।