पृष्ठ:दुखी भारत.pdf/६

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भूमिका

इस पुस्तक को संसार में उपस्थित करने के लिए अधिक लिखने की आवश्यकता नहीं है। मैं इसके लिए न मौलिकता का दावा करता हूँ न साहित्यिक विशेषता का। मेरी राय में अन्य लेखों से अपने मतलब की बातें खोजने, उनकी सत्यता की जांच करने और उनको प्रमाण स्वरूप उपस्थित करने की अपेक्षा किसी विषय पर एक मौलिक निबन्ध लिखना अधिक सरल है। पर मेरा सम्बन्ध एक पराधीन जाति से है और मैं, जो मिथ्या और भद्दी बातें घृणित उद्देश्यों को लेकर रची गई हैं और सारे संसार में फैलाई गई हैं, उनकी असत्यता सिद्ध करने के लिए और उनसे अपनी मातृभूमि को बचाने के लिए यह किताब लिख रहा हूँ इसलिए मुझे लिखित प्रमाणों का सहारा लेना ही पड़ेगा।

इस पुस्तक में थोड़ी ही बातें ऐसी हैं (मैं तो एक के भी होने में सन्देह करता हूँ) जिनके समर्थन में सर्वमान्य और विश्वस्त प्रमाण न दिये गये हों। पतित हुए को गाली देना सरल है। उसको उठाना कठिन। यही बात कि वह पतित है उसके विरोध के लिए यथेष्ट है। अपने बचाव में विदेशियों द्वारा सिद्ध की गई बातों को उपस्थित करने की आवश्यकता पड़े तो इससे अधिक लज्जा की बात और नहीं हो सकती। यह ढङ्ग ही अपनी लघुता स्वीकार कर लेने का है। पर इस बात को छिपाने से कोई लाभ नहीं कि पश्चिम की गोरी जातियाँ सिवाय अपने वर्ण या जाति के लोगों के और किसी की सम्मति पर विश्वास करने और उसे मानने को तैयार नहीं हैं। यह पुस्तक मुख्यतः उन्हीं के लिए लिखी गई है। इसलिए उन्हीं की आवश्यकताओं को ध्यान में रखना उचित भी था। विदेशी संस्करण इससे ज्यादा बड़े होंगे और उनमें बातें भी अधिक होंगी। कई कारणों से उन सबका समावेश इस पुस्तक में नहीं हो सका।