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दुखी भारत

हमने केवल थोड़े से उदाहरण दिये हैं। पुस्तक के भीतर इन पर और इसी प्रकार की अन्य बहुत सी बातों पर विचार करेंगे। पर क्या किसी ऐसी लेखिका की बातों पर जो इतनी अधिक मात्रा में ऐसे बेहूदा परिणाम निकालने में आनन्द लेती है, गम्भीर लोग गम्भीरता के साथ विचार कर सकते हैं?

[अनुलेख]

जनवरी में मिस मेयो ने 'शिकागो ट्रिब्यून' के अधीन 'लिबर्टी' नामक साप्ताहिक पन्न की चौदहवां संख्या में एक लेख लिखा है। इसमें उसने मदर इंडिया की कुछ समालोचनाओं का जवाब देने का प्रयत्न किया है। महात्मा गान्धी ने उसके पुस्तक की जो समालोचना लिखी थी उसी की और उसका विशेष लक्ष्य है। पीछे हम वह समालोचना दे आये हैं। बातें बनाने में वह बड़ी चतुर है।

वास्तविक विषय पर वह यह उत्तर देकर पर्दा डालना चाहती है कि मैंने यह नहीं कहा था कि महात्मा गान्धी जो कुछ भी कहते हैं उसे लिख लेने के लिए अपने साथ सदा दो मंत्री रखते हैं। 'यदि महात्मा गान्धी मेरी पुस्तक के २२२ पृष्ठ (इंगलिश संस्करण, २०२ पृष्ठ) पर देखें तो उन्हें मालूम होगा कि उन्होंने उसमें 'सर्वदा' शब्द अपनी ओर से बढ़ा दिया है।' यह कथन असत्य है। महात्मा गान्धी ने उसके लेख में कुछ नहीं जोड़ा। वे केवल इतना ही कहते हैं कि बिना 'सर्वदा' शब्द का प्रयोग किये मिस मेयो की बात का यह अर्थ निकलता है कि वह केवल उनका आश्रम देखने के अवसर का ही वर्णन नहीं कर रही है।

परन्तु यह तो एक अत्यन्त साधारण बात है। सन्देशवाली घटना अधिक महत्त्व की है। पर उसका उत्तर देने में मिस मेयो सफल नहीं हुई। वह लिखती है:—

"....महात्मा गान्धी के साथ बातचीत का संशेधित और परिवर्द्धित विवरण उन्हीं के हस्ताक्षर के साथ मुझे ठीक समय पर वापस मिल गया।

"इस समय यह लेख मेरे सामने है। इस छपे हुए कई पृष्ठों के लेख का पहला वाक्य—'इस चर्खे का भन भन शब्द अमरीका के लिए मेरा सन्देश