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विषय-प्रवेश


है'—मेरे इस प्रश्न का कि क्या अमरीका के लिए आप कोई सन्देश देंगे उत्तर है। यह ठीक वही है जो उन्होंने कहा था। यही मैंने छापा भी है।

"महात्मा गान्धी अब इस 'सन्देश' से भागना चाहते हैं और इसे शत्रु का आविष्कार बताते हैं। वे कहते हैं—'मुझे यह सन्देश देने की बात याद नहीं आती। उस समय केवल एक व्यक्ति ऐसा था जिसने कुछ बातें नोट की थीं। पर उसे भी इस 'सन्देश' का स्मरण नहीं है।'

परन्तु इस सन्देश के सम्बन्ध में वास्तविक बात क्या है? मदर इंडिया की समालोचना लिखते समय महात्मा गान्धी दौड़े पर थे। उस समय उनके पास मिस मेयो से उनकी जो बातें हुई थीं उनका लिखित विवरण नहीं था। पर मिस मेयो के 'लिबर्टी' में प्रकाशित लेख के उत्तर में उन्होंने २ फरवरी १९२८ के यंग इंडिया में जो लेख लिखा है उससे इस बात का खुलासा हो जाता है। महात्मा गान्धी लिखते हैं:—

"उसका अपने इस कथन पर दृढ़ रहना कि मैंने वह सन्देश दिया था यह सिद्ध करता है कि वह सत्य को पूर्ण रूप से दबाने की अपराधिनी है। सम्भवतः उसने सोचा होगा कि मेरे और उसके बीच में जो बातें हुई थी उसकी संशोधित प्रतिलिप मेरे पास न होगी। उसके अभाग्य से उसके लेखों की एक प्रतिलिपि मेरे अधिकार में सुरक्षित है। चर्खे के भन भन से सम्बन्ध रखनेवाला सम्पूर्ण अंश नीचे दिया जाता है:—

"इस चर्खे का भन भन शब्द-मात्र अमरीका के लिए मेरा सन्देश है। मुझे अमरीका की जो चिट्टियाँ और समाचारपत्रों की कतरनें मिलती हैं उनसे पता चलता है कि लोगों का एक दल तो अहिंसात्मक असहयोग के परिणामों का अत्यन्त अधिक मूल्य लगाता है और दूसरा उनका मूल्य ही नहीं गिराता बरन इस आन्दोलन से सम्बन्ध रखनेवालों के सिर सब प्रकार के दोष भी मढ़ रहा है। किसी भी प्रकार की अत्युक्ति न कीजिए। इच्छुक अमरीका-वासी पक्षपातरहित होकर धैर्य से इस श्रान्दोलन का अध्ययन करेंगे तभी यह सम्भव होगा कि रचयिता होने पर भी जिस आन्दोलन को मैं अद्वितीय समझता हूँ उसका कुछ ज्ञान अमरीका को हो जाय। कहने का तात्पर्य यह कि चर्खा हमारे आन्दोलन का संक्षिप्त रूप है। चर्खे में ही इसके सब प्रयोग केन्द्रीभूत हैं। मेरी समझ में गोला-बारूद का स्थान यही हो सकता है। क्योंकि यह करोड़ों भारतवासियों को आत्मावलम्बन और पाशा का सन्देश देता है। जब उनमें वास्तव में जाग्रति हो जायगी ते अपनी स्वतंत्रता