पृष्ठ:दुखी भारत.pdf/६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४८
दुखी भारत


को पुनः प्राप्त करने के लिए उन्हें छोटी सी उँगली उठाने की भी आवश्यकता न रहेगी। लूट-खसोट को सेवा के भाव में बदल देना ही वास्तव में चर्खे का सन्देश है। पश्चिम में इस समय उच्च स्वर से जो गीत गाया जा रहा है वह स्वार्थ का गीत है। मेरी यह इच्छा नहीं है कि मेरा देश भी इसी भाव या इसी गीत का अनुकरण करे।'

"मुझे हास्यास्पद बनाने के लिए मिस मेयो ने अपर के अंश का केवल प्रथम वाक्य दिया है और उसकी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण व्याख्या नहीं दी। आशा करता हूँ कि पूरे पैराग्राफ ने मेरे सन्देश के तात्पर्य को साफ और समझने योग्य बना दिया है......। अस्तु मेरा दावा है कि ऊपर पूरे पैराग्राफ में जो सन्देश उद्धृत किया गया है वह मेरे यंग इंडिया में लिखे उस लेख से, जिसे मिस मेयो ने उखाड़ने का प्रयत्न किया है, भिन्न नहीं है।"

इतना तो स्पष्ट हो गया कि मिस मेयो ने उस सन्देश को गढ़ा नहीं था। पर उसका अपराध जैसा पहले था वैसा ही अब भी बना है। क्योंकि उसने सन्देश को जो मिथ्या और हास्यास्पद रूप दिया वह उसके पूरे आविष्कार से किसी दशा में भी अधिक आदर के योग्य नहीं हो सकता। कोई समुचित उत्तर न होने से इस बार भी उसने बातें ही बनाई हैं। तिस पर भी वह इस कथा को 'व्यर्थ की बकवास' कह कर अपने 'लेख पर लिखी महात्मा गान्धी की समालोचना पर आगे विचार करने की आवश्यकता' से छुटकारा पा जाती है।

मदर इंडिया में वर्णित सेसून-अस्पताल की चीर-फाड़-सम्बन्धी कथा के विरोध में महात्मा गान्धी ने जो कहा था कि वह अत्यन्त असत्य मार्ग की ओर ले जानेवाली है, उस पर उसने ध्यान ही नहीं दिया। क्योंकि वह तो महात्मा गान्धी की समालोचना पर आगे विचार करने की आवश्यकता से छुटकारा पा गई थी।

और फिर केसर्लिंग की पुस्तक में टैगोर के लेख के साथ उसने जो मनमानी की उसका क्या उत्तर है? यदि मिस मेयो ने किसी प्रकार टैगोर के प्रति किये गये अपराध को सुधारने की चेष्टा की हो या अपनी उस मनमानी की रक्षा के लिए जो कि असम्भव है, कोई बात बनाई हो तो वह हमें उसके लेख में कहीं देखने को नहीं मिली।