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दुखी भारत


शिक्षा प्राप्त की हो किसी भी विषय पर, बिना अपने किसी निश्चित मत के व्यर्थ विचार करने बैठ जाती हैं। स्त्रियों में इस ज्ञानाभाव की अहंमन्यता से उनकी आत्मा का बहुत गहराई तक परिचय मिलता है। और इससे उस भयङ्करता का भी परिचय मिल जाता है जो बौद्धिक जीवन में स्त्रियों की प्रधानता से उपस्थित हो सकती है।

मिस मेयो जानना चाहती है कि एक बारह वर्षीय कन्या 'हाड़ और रक्त में एक दयनीय शरीर का नमूना' क्यों है? इसके कारण हो सकते हैं:—(क) पैतृक संस्कार (ख) अपर्याप्त भोजन (ग) जीवन की अस्वास्थकर स्थिति (घ) निरक्षरता और अज्ञान। केवल (क) को छोड़कर क्या कोई कह सकता है कि (ख) (ग) और (घ) पर राजनैतिक परिस्थिति का प्रभाव नहीं पड़ता। यह एक मानी हुई बात है कि निर्बल माता पिताओं से उत्पन्न बच्चे भी यदि बाद में सावधानी से पाले जायँ तो अपनी पैतृक दुर्बलता की कमी बहुत कुछ पूरी कर सकते हैं। यदि पैतृक दुर्बलता पर राजनैतिक दासता और आर्थिक सङ्कट से उत्पन्न होनेवाली असमर्थता की भी मार हो तो ऐसे बच्चों की ईश्वर ही रक्षा करे। राष्ट्र का यह देखना कर्तव्य है कि प्रत्येक नवजात शिशु की भली भांति देख-रेख की जाती है और यदि माता-पिता इतने निर्धन हों कि स्वस्थ वायुमण्डल में उसका पालन-पोषण न कर सकें और उसको नागरिक के कर्तव्यों के योग्य न बना सकें तो पूरा उत्तरदायित्व राष्ट्र का हो जाता है। इसी सिद्धान्त को लेकर असमर्थ माता पिताओं से उत्पन्न बच्चों के लिए इस युग में राष्ट्रीय धाई-गृहों की स्थापना हुई है। और सब बच्चों को उनके माता पिताओं के सम्बन्ध में बिना कुछ विचार किये निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए राष्ट्र की ओर से सार्वजनिक स्कूल खोले गये हैं। स्वतन्त्र और उन्नतिशील देशों में देखने में आता है कि बच्चों को मज़दूरी नहीं करने दिया जाता, सब नागरिकों को अनिवार्य्य रूप से स्वास्थ्य-सम्बन्धी शिक्षा दी जाती है। जिन बालकों को घर पर अपर्याप्त भोजन मिलता है उन्हें सरकार या नगर-समितियों की ओर से उचित भोजन दिया जाता है, समय समय अनिवार्य्य रूप से स्वास्थ्य-परीक्षा होती है और बेकारी तक दूर करने के