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मिस मेयो के तर्क


विचारों की उत्पत्ति के कारण बतलाये हैं। अपनी एक पुस्तक में उन्होंने यह बतलाया है कि राज्य के अधिकार बढ़ने के साथ साथ किस प्रकार जन-साधारण के प्रति उसके उत्तरदायित्व भी बढ़ गये हैं; और उन सिद्धान्तों की विवेचना की है जिनको लेकर सर्व-साधारण को काम देने और वृद्धावस्था में पेन्शन आदि द्वारा उनके निर्वाह के प्रबन्ध करने का उत्तरदायित्व राज्य को अपने सिर पर लेना पड़ा है। उन्होंने गरीबों के लिए कानूनों की जांच-समिति के सामने अल्पसंख्यक दल की गवाही का उल्लेख किया है, जिसमें इस बात की शिफ़ारिस की गई थी कि 'श्रमसमितियां स्वयं राज्य का एक अंङ्ग बनकर लोगों को काम दिलाने की व्यवस्था करें और काम के अभाव में प्रत्येक स्वस्थ और कामकाजी पुरुष या स्त्री के निर्वाह का समुचित प्रबन्ध करें।' आधुनिक राज्य के कर्तव्यों के सम्बन्ध में प्रोफ़ेसर हाबहाउस लिखते हैं :—

"स्वेच्छापूर्वक आलस्य में लिप्स मनुष्य को समाज का भार बनकर रहने की आज्ञा न होनी चाहिए। उसका व्यर्थ के कामों के लिए इधर-उधर फिरना या भीख माँगना ठीक नहीं है। उसे अपने स्त्री-बच्चों को चिथड़े पहनाने, बुरे घरों में रखने और अपर्याप्त भोजन देने से रोकना ही चाहिए। बच्चों की देखभाल अवश्य होनी चाहिए। और माँ, यदि वह उनके प्रति अपने कर्तव्य का पालन कर रही है तो वह एक स्त्री का काम कर रही है और बिना किसी प्रकार का बदला चुकाने की बात सोचे अपने निर्वाह का दावा कर सकती है। और वह मनुष्य नियंत्रणपूर्वक शिक्षा देने का पात्र है। उसे काम सीखने का कोई क्षेत्र मिलना चाहिए। वहाँ वह काम सीखे और जब तक औद्योगिक प्रतिद्वन्दिता का भार वहन करने की शारीरिक और मानसिक योग्यता प्राप्त न कर ले, वहां से निकलने न पावे।"

इसी वेग में वे भिन्न भिन्न प्रकार के और भिन्न भिन्न अवस्था के लोगों के प्रति राज्य के कर्तव्यों की व्याख्या करते हैं। उनकी विवेचना का सारांश यह है कि 'अब राज्य ने, जीवन के बड़े बड़े विभागों का संयोजक बनकर, अपना काम बहुत बढ़ा लिया है। इनमें सबसे मुख्य काम सार्वजनिक शिक्षा की व्यवस्था करना है । वे कहते हैं—'जो पुराने लोग अभी जीवित हैं उनके जीवन-काल में शिक्षा के सम्बन्ध में ग़रीबों के लिए कुछ हज़ार रुपये लगा देने से ही राज्य के कर्तव्यों का भलीभांति पालन हो जाता था। मेरे जीवन-