पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी द्वितीय भाग.djvu/२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
२१
द्वितीय खण्ड।



या जैसे हो उसने उनको स्थान दिया और एक ओर दीप जला कर पठान और उसके साथी लेटे।

उन दिनों काशी में लड़के बहुत चोरी जाते थे। मैं छ: वर्ष की थी मुझको सुध नहीं है किन्तु माता के मुंह से जैसा सुना है कहती हूं।

रात को दीप जल रहा था कि एक चोर सेन देकर पठान के बालक को ले चला। मेरी आंख खुली और मैंने चोर को देखा। उसको बालक ले जाते देख मैं चिल्लाई और सब जाग पड़े।

पठान की स्त्री ने देखा कि शय्या पर बालक नहीं है और चिल्लाने लगी। चोर उस समय चारपाई के नीचे था पठान ने उसका बाल पकड़ कर खींच लिया। जब चोर ने बहुत बिन्ती की तो उन्होंने तरवार से उसके कान में छेद करके छोड़ दिया।

यहां तक पढ़ कर उसमान में विमला ने पूछा 'तुम्हारा कभी और भी कोई नाम था?'

विमला ने कहा हां था पर वह मुसलमानी नाम था इसलिये पिताने दूसरा नाम रक्खा।

'वह नाम क्या था? माहरू!'

विमला ने विस्मित होकर कहा 'आप कैसे जानते हैं?'

उसमान ने कहा 'मैं वही बालक हूं जिसको चोर लिये जाता था।'

विमला को बड़ा आश्चर्य हुआ उसमान फिर पत्र पढ़ने लगे।

दूसरे दिन जाते समय पठान ने माता से कहा 'तुम्हारी कन्या ने जैसा मेरा उपकार किया है उसके प्रति उपकार करने की हम को सामर्थ नहीं है। परन्तु तुमको यदि कोई