पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी द्वितीय भाग.djvu/६८

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द्वितीय खण्ड।



था।सप्त सुर मिलित बीणा आदि की ध्वनि आकाश में गन गना रही थी तदधिक कोकिल कंठी गाने वालियों की गीत अपसराओं के हृदय में लज्जा उत्पादन करती थी तिस पर ताल लय मिलित नाचने वालियों के पैर के धुंघुरू अपना प्रथक चमत्कार दिखाते थे।

और देखो,मानों कमलवन में हंसिनी शीतल समीर स्पर्श से उन्मत होकर नाचती हैं,प्रफुल्ल कमलबदनी सब धेरे बैठी"हैं। उस नील पटवाली को देखो जिसके दुपट्ट के सितारे उड़गण की भांति चमकते हैं।देखो उसके नेत्र कैसे बड़े२हैं।उसको देखो जो हीरे का तारा लगाये बैठी है।देखो उसका ललाट कैसा चोड़ा है!क्या बिधना ने इस ललाट में यही विलासघर का वास लिखा था?उस पुष्पा भरण वाली को देखो!उसने कैसा उत्तम शृंगार किया है? उस कोमल‌ किंचित रक ओष्टवाली को देखो कैसा‌ मन्द मन्द हंस रही है।देखो उसके झाले ओदने से उसके शरीर का रङ्ग कैसा झलक रहा है।मानो निर्मल नीलाम्बु में से पूर्ण चन्द्र की ज्योति झलक रही है।उसको देखो जो गर्दन झुकाये हंस २ कर बातें कर रही है देखो उसके कान का बाला कैसा हिल रहा है? यह सुन्दर केशवाली कौन है? उसने अपने बाल पेटी पर्यन्त क्यों छिटकाये हैं?क्या शिव के मस्तक पर नागिनियों की जटा बनाती है?

और वह सुन्दरी कौन है जो कतलूखां के समीप बैठी हेम पात्र में सुरा ढाल रही है?वह कौन है जो सबको छोङ कर कतलूखां बार २ अतृप्त लोचन से उसी को देख रहा है? वह तो व्यर्थ अपनी कटाक्षों से उसके हदय को बेध रही है।हां ठीक है वह विमला है।इतनी सुरा क्यों दाल रही है?बाल