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दृश्य-दर्शन

में गये। तिस पर भी प्रजा उसपर खुश थी। पढ़े लिखे आदमियों की उसके यहां कद्र थी। कविता और इतिहास सुनने का उसे शौक था। हिन्दुओं को उसने बड़े-बड़े ओहदे दिये थे। उसके कोई लड़का न था। तीन लड़कियां थीं। उनको उसने अपने भाई के तीन बेटों से व्याहा। उनमें से अनीमा खानम के बेटे सिराजुद्दौला को उसने गोद लिया।

अँगरेज़ और कुछ हिन्दुस्तानी इतिहास-लेखकों ने भी सिराजुद्दौला को काम-कर्दम का कीड़ा, निर्दयता का समुद्र, दुर्टसनों का शिरोमणि,अर्थ लोलुप और नरपिशाच आदि मधुरिमामय विशेषणों से विभूषित किया है। पर बाबू अक्षय कुमार मैत्रेय ने बँगला में सिराजुद्दौला का जीवन चरित लिख कर उसकी इस कलङ्क-कालिमा को धो कर प्रायः बिलकुल ही साफ़ कर दिया है। इस किताब को पढ़ने से यह धारणा होती है कि सिराजुद्दौला के समान सहनशील, राजनीतिज्ञ, बात का सच्चा, निर्भय, शान्ति प्रिय और रक्तपात द्वेषी शायद हो और कोई राजा या बादशाह हुआ हो।प्रायः सब कहीं अँगरेज़ों ही के लोभ,प्रतिज्ञा भजन,अन्याय, प्रतिहिंसक-स्वभाव,अनाचार,विश्वासघात आदि का परिचय मिलता है। इस पुस्तक में यह बात खूब दृढ़ता से साबित की गई है कि कलकत्ते के अन्धकूप, अर्थात् कालकोठरी, या ब्लैक होल की हत्या की कहानी बेसिर पर की एक औपन्यासिक गढन्त मात्र है। उसका कहीं इतिहास में पता नहीं। अँगरेज़ वणिकों के अत्याचार के कारण जब विलायत में हाहाकार और छी थू होना शुरू हुआ तब उस बात को भुला देने और ईस्ट इण्डिया कम्पनी के ,