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नेपाल

बात की वहाँ कमी है। पर हाथी अनेक हैं। दूसरे सभ्य देशों ने नये नये शस्त्र बनाने और युद्ध विद्या में उन्नति करने के इरादे से नये नये आविष्कारों की सृष्टि की है। पर इन बातों में नेपाल बहुत पीछे है। अतएव योरप के किसी सभ्य देश की सेना के सामने नेपाल की सेना अधिक देर तक नहीं ठहर सकती। सर टेम्पल अपनी किताब के पढ़ने वालों से कहते हैं कि ये बातें याद रखने लायक हैं।

नेपाल में एक अँगरेज़ी दूत रहता है। उसे रेज़िडेंट कहते हैं। उसीकी मारफत नेपाल राज्य और हिन्दुस्तान की गवर्नमेंट में, आवश्यकतानुसार,लिखा-पढ़ी होती है। अँगरेज़ी वनिज-व्यापार का वही रक्षक है। रजिडेंट साहब का वहां अच्छा रोब है। उनको ताज़ीम देने के लिये नेपाल के महाराजाधिराज तक अब उठ खड़े होने लगे हैं। गत एप्रिल में एक दरवार हुआ था। उसमें नेपाल नरेश ने अपने आसन से उतर कर रेज़िडेंट की अभ्यर्थना की थी । नेपाल-नरेश महाराजधिराज कहलाते हैं और उनके मन्त्री महाराज । वहाँ मन्त्री ही राज्य के कर्ता,हर्ता और विधाता हैं।

नेपाल का राज्य बहुत पुराना है। वहाँ कलियुग के भी पहले जो राजा हुए हैं उनका पता नेपाली पुस्तकों में लगता है। पहले नेपाल में नेवार जाति की प्रभुता थी । नेपाल की दरी में इसी जाति के चार छोटे छोटे राजा राज्य करते थे। उनको राजधानियां काठमा- ण्डू,पाटन,कीर्तिपुर और भटगांव में थी। भटगाँव को छोड़ कर ये सब शहर एक दूसरे से सिर्फ चार चार पांच पांच मील के फासले पर हैं। सिर्फ भटगांव काठमाण्डू से ७ मील है। तेरहवीं सदी में मुसलमानों के