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दृश्य-दर्शन



जिस समय १७९४-१८०५ में दौलतराव सेन्धिया का अधिकार ग्वालियर पर हुआ उस समय उसने अपना लश्कर (पड़ाव) किले के दक्षिण तरफ़ डाला। कुछ दिनों में सेना के तम्बू तो उखड़ गये पर पड़ाव वहाँ पर वैसे ही पड़ा रहा। धीरे धीरे वहां पर एक शहर बस गया। उसीका नाम लश्कर पड़ा। महाराष्ट्र लोग ग्वालियर को लश्कर ही कहते हैं। लश्कर ही इस समय सेन्धिया की राजधानी है। इस शहर का सराफ़ा बाज़ार देखने लायक है। उसकी सड़क बहुत चौड़ी है और दूर तक चली गई है। उसके दोनों ओर पत्थर के ऊंचे ऊंचे मकान हैं। फूलबाग नामक एक बहुत ही सुन्दर उद्यान में महाराजा सेन्धिया का नया महल है। वह शहर से बिलकुल मिला हुआ है। लश्कर के बीच में बड़ा यानी पुराना महल है। बड़े बड़े सरदारों और राजकर्मचारियों के मकान भी वहीं आस पास, हैं।

नई इमारतों में विक्टोरिया-कालेज, डफ़रिन-सराय, मेहमान-घर (Guest House), महाराजा सेन्धिया का महल और जयेन्द्रभवन नामक प्रासाद देखने को चीजें हैं।

ग्वालियर के पास एक जगह मुरार है। वहां पर पहले अंगरेज़ी छावनी थी। पर गवर्नमेंट ने उसके बदले झाँसी लेकर, मुरार सेन्धिया को दे दिया। मुरार एक बहुत छोटी, पर बहुत साफ़ और स्वास्थ्यकर, जगह है।

ग्वालियर का नाम लेने से जुदे जुदे तीन शहरों का बोध होता है। मुरार, लश्कर और पुराना ग्वालियर। इनमें से लश्कर की दैनन्दिन उन्नति हो रही है और ग्वालियर की अवनति। पुरानी चीज़ की