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पृष्ठ:दृश्य-दर्शन.djvu/४८

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बनारस


पास था। पीछे से नगर का मध्य भाग वरुणा नदी के उत्तर, कहीं पर, रहा। वर्तमान नगर के उत्तर की ओर जो जगह ख़ाली पड़ी है उसमें मन्दिरों और मसजिदों आदि के भग्नावशेष अभी तक पाये जाते हैं। इससे हालूम होता है कि मुसल्मानों के समय तक बनारस वरुणा के दक्षिणी किनारे पर था। इस समय बनारस ठीक गङ्गा के तट पर है। उसकी शकल अर्द्धचन्द्राकार अथवा धन्वाकार है। दशाश्वमेध घाट से नाव पर सवार होकर राजघाट के पुल की तरफ़ जाने में, विशेष कर के सुबह, शहर का दृश्य अच्छी तरह देख पड़ता है। गंगा तट पर नगर की धन्वाकार बस्ती उस समय अच्छी तरह आँखों के सामने आ जाती है।

बनारस में मकान सब पत्थर के हैं। कोई कोई मकान पांच पांच छः छः खण्ड के हैं। गलियां बहुत तंग हैं; बस्ती बेहद घनी है। यात्रियों की हमेशा आमद रफ़्त रहती है। ग्रहण, मेले-ठेले, उत्सव और पर्व आदि में बाहर से आने वाले आदमियों की संख्या बहुत बढ़ जाती है। बस्तो घनी और गन्दी होने और काशीवास करने के इरादे से अनेक लूले, लंगड़े, अन्धे और बीमार आदमियों से भर जाने के कारण, बनारस की आबोहवा बिगड़ी रहती है। मन्दिर, गली-गली में हैं। बंगाली, नैपाली, महाराष्ट्र आदि हिन्दुस्तान के प्रायः सब प्रान्तों के लोग यहां रहते हैं। उनके महल्ले अक्सर अलग अलग हैं। शहर से पश्चिम और गंगा से कोई तीन मील की दूरी पर एक जगह का नाम सिकरौल है। वहीं बनारस की छावनी और सिविल-लाइन्स वगैरह है।