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दृश्य-दर्शन

एक कोने में गणेश का एक मन्दिर है। सुब्रह्मण्य मन्दिर के होते में कई छोटे छोटे मण्डप हैं। उनमें भिन्न भिन्न देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं।

शङ्कर का प्रधान मन्दिर तालाब से ३० गज़ दक्षिण की ओर है। पार्वती का मन्दिर दक्षिण-पश्चिम की ओर है । शङ्कर की मूर्ति दिगम्बर है। वह चतुर्भुजी है। भुजायें ऊपर को उठी हैं । दाहना पैर पृथ्वी पर रक्खा है;और बायां एक तरफ ऊपर को उठा है । मन्दिर की छत सुनहले गिलट किये हुए तांबे की चादर से मढ़ी हुई है। फरगुसन साहब कहते हैं कि यहां पर हिन्दुस्तान की एक बहुत ही प्राचीन और बहुत ही सुन्दर कारीगरी का नमूना है। वह एक छोटा सा मण्डप है जिसके अप्रभाग को ६ फुट ऊँचे दो खम्मे थामे हैं। इस मण्डप में कई मूर्तियां नृत्य करती हुई दीख पड़ती हैं। वे इतनी भव्य और ऐसी सुपर हैं कि दक्षिणी हिन्दुस्तान में उनसे अधिक सुडौल और कोई मूर्ति नहीं देखी गई। इस मण्डप के दोनों तरफ रथों के चित्र हैं। उनके पहिये और घोड़े चित्रित करने में ऐसी कुशलता दिखलाई गई है कि उनका रङ्ग कहीं कहीं फीका पड़ जाने पर भी उनकी मनोहरता कम नहीं हुई है।

१७६० ईसवी में अँगरेजों ने पहले पहल इस मन्दिर को अपने अधिकार में किया। परन्तु १७८१ ईसवी में ३००० आदमी लेकर हैदरमली ने उसे घेर लिया। अँगरेजों की सेना के नायक सर आयर कूट थे। उनको मन्दिर छोड़कर भागना पड़ा। भागने में उनकी एक तोप भी हैदरमली के हाथ आई। श्री रङ्गपत्तन विमय होने तक