पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१०००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

hen जानता है कि ईश्वर भी कोई चीज है। दारोगा-( क्रोध भरी आँखें दिखा कर ) फिर वही बात !! मैं-हॉ वही बात । गोपालसिह के पिता वाली बात ! गुप्त कमेटी वाली बात ! गदाधरसिह की दोस्ती वाली मात । लक्ष्मीदेवी की शादी वाली बात । और जो बात कि आपके गुरुभाई साहब को नहीं मालूम है वह यात !! दारोगा-(दाँत पीस कर और कुछ देर मेरी तरफ देख कर)और अब इस बहुत सी बात का जवाब लात ही से दिया जायगा। मैं-बेशक. और साथ ही इसके यह भी समझ रखिए कि जवाब देन वाले भी एक दो नहीं है, लातों की गिनती भी आप न सम्हाल सकेंगे। दारोगा साहब जरा होश में आइए और साच विचार कर बात कीजिए। अपन को आप ईश्वर न समझिए बल्कि यह समझ कर बातें कीजिए कि आप आदमी हे ओर रियामत चौलपुर के किसी ऐयार से बात कर रह है। दारोगा-(इन्द्रदेव की तरफ गुरर कर ) क्या आप धुपचाप देठ तमाशा देखेंगे और अपने मकान में मुझे वेइज्जत करावेंगे। इन्ददव--आप ता खुद ही अपनी अनोखी मिलनसारी से अपन का येइज्जत लरा रहे हैं इस बार धान की आपको जरुरत हो क्या थी? आप दानों के बीच में नहीं बाल समता क्योगिदलीपराह को भीजपना गई गमझता और इज्जत की निगाह से देखता हू | दारोगा तो फिर जैस बने हम इनसे निपट ले ! इन्ददेव-हा हाँ! दारोगा-पीछे उलाहना न देना क्योंकि आप इन्हें अपना भाई सगरते हैं! इन्द्रदेव-मैं कभी उलाहना न दूमा । दारोगा-अच्छा ता अब में जाता है, फिर कनी मिलूगा दो बातें बगा। इन्द्रदेव ने इस बात का गुछ भी जवाब न दिया, हा जब दानेगा साहब विदा हुए तो उन्हें दरवाजे तक पहुचा आये। जब लौट कर कमरे में मेरे पास आये ता मुस्करात हुए बोले 'आज तो तुमने इसकी खुब खपर ली: जो बात गुन्धार गुरु भाई साहब का नहीं मालूम है यह बात', इन शब्दों ने तो उसका कलेजा छेद दिया होगा। मगर तुमस वैतरह रज होकर गया है इस बात का खूद खयाल रखना ! म-आप इस बात की चिन्ता न कीजिए देखिये में इन्हें कैसा छकाता हू! मगर वाह र आपका कलेजा ! इतना कुछ हो जाने पर भी आपने अपनी जुबान से कुछ न कहा बल्कि पुराने बर्ताव में बल तक न पडन दिया। इन्ददेव-मैने तो अपना मामला ईश्वर के हवाले कर दिया है। मै-खेर ईश्वर भी इन्साफ करेगा। अच्छा तो अब मुझे भी विदा दीजिए क्योंकि अब इसके मुकाबले का बन्दोबस्त शोध करना पड़ेगा। इन्द-यह तो मैं कहा कि आप वेफिक्र न रहिए। थोडी देर तक और बातचीत करने बाद मै इन्ददेव स विदा होफर अपन भर आया और उसी समय से दारोगा के मुकाबल का ध्यान मेरे दिमाग में चक्कर लगाने लगा। घर पहुच कर मैने सब हाल अपनी स्त्री से ज्यान किया और ताकीद की हर दम होशियार रहा करना। उन दिनों मरे यहाँ कई शागिर्द भी रहा करते थे जिन्हें मैं ऐयारी सिखाता थाउनस मी यह सब हाल कहा और हाशियार रहन की ताकीद की। उन शामिर्दो म गिरिजाकुमार नाम का एक लडका बडा ही तेज और चचल था. लोगो को धोये में डाल देना तो उसके लिए एक मामूली यात थी बातचीत के समय वह अपना चेहरा ऐसा बना लता था कि अच्छे अच्छे उसकी बातों में फंस कर बेवकूफ बन जाते थे। यह गुण उसे ईश्वर का दिया हुआ था जो बहुत कम ऐयारों में पाया जाता है। अस्तु गिरिजाकुमार ने मुझसे कहा कि गुरुजी यादे दारोगा वाला मामला आप मेरे सुपुर्द कर दीजिए तो मैं बहुत ही प्रसन्न होऊ और उसे ऐसा छकाऊँ कि वह भी याद करे जमानिया में मुझ कोई पहिचानता भी नहीं है अतएवमें अपना काम बड़े भने में निकाल लूगा। मैंने उसे समझाया और कहा कि कुछ दिन सब्र करो जल्दी क्यों करते हो, फिर जेसा मोका होगा किया जायग] मगर उसने एक न माना। हाथ जोड के खुशामद करके, गिडगिड़ा के जिस तरह हो सका उसने जाज्ञा ले ही ली और उसी दिन सब सामान दुरुस्त करक भरे यहाँ से चला गया । देवकीनन्दन खत्री समग्र