पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१००१

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Qyt अब मैं थोडा सा हाल गिरिजाकुमार का बयान करेगा कि इसने दारोगा के साथ क्या किया । आप लागों को यह बात सुन कर ताज्जुब होगा कि मनोरमा असल में दारोगा साहब की रडी है इन्हीं की बदौलत मायारानी के दरबार में उसकी इज्जत बढी और इन्हीं की बदौलत उसने मायारानी को अपने फन्दे में फंसा कर बेहिसाव दौलत पैदा की। पहिले पहिल गिरिजाकुमार ने मनोरमा के मकान ही पर दारोगा साहब से मुलाकात भी की थी। दारोगा साहब मनोरमा से प्रेम रखते थे सही मगर इसमें कोई शक नहीं कि इस प्रेम और ऐयाशी को इन्होंने बहुत अच्छे ढग से छिणया और बहुत आदमियों को मालूम न होने दिया तथा लागों की निगाहों में साधू और ब्रह्मचारी ही बने रह। स्वय ताजमानिया में रहत थमगर मनोरमा के लिए इन्होंने काशी में एक मकान भी बनवा दिया था दसवें-बारहवें दिन अथवा जय कभी समय मिलता तंज घोडे पर या रथ पर सवार होकर काशी चले जाते और दस बारह घण्टे मनोरमा के मेहमान रहकर लौट जाते। एक दिन दारागा साहब आधी रात के समय मनोरमा के खास कमर में बैठे हुए उसके साथ शराब पी रहे थे और साथ ही साथ हॅसी दिल्लगी का आनन्द भी लूट रहे थे। उस समय इन दोनों में इस तरह की बातें हो रही थी दारोगा-जा कुछ मरे पास है सब तुम्हारा है, रुपये पैसे के बारे में तुम्हें कभी तकलीफ न होने दूंगा ! तुम बेशक अमीराना ठाठ क साथ रहो और खुशी से जिन्दगी बिताओ गोपालसिह अगर तिलिस्म का राजा हे तो क्या हुआ मै भी तिलिस्म का दारागाह, उसमें दो चार स्थान ऐसे हैं कि जिनकी खबर राजा साहब को भी नहीं मगर मै वहाँ बखूबी जा सकता है और यहाँ की दौलत को खास अपनी मिल्कियत समझता हू। इसके अतिरिक्त मायारानी से भी मैंने तुम्हारी मुलाकात करा दी है और वह भी हर तरह से तुम्हारी खातिर करती ही है फिर तुम्हें परवाह किस बात की है ? मनारमा-यशक मुझे किसी बात की परवाह नहीं है और आपकी बदौलत मैं बहुत खुश रहती हूँ मगर मै यह चाहती हूं कि मायारानी के पास खुल्लम खुल्ला मेरी आमदरफ्त हो जाय अभी गोपालसिह के डर से बहुत कुछ छिप कर और नखरे तिल्ल क साथ जाना पडता है ! दारोगा-फिर यह तो जरा मुश्किल यात है। मनोरमा-मुश्किल क्या है ? लक्ष्मीदेवी की जगह दूसरी औरत को राजरानी बना देना क्या साधारण काम था? सातो आपने सहज ही में कर दिखाया और इस एक,सहज काम के लिए कहते हैं कि मुश्किल है। दारोगा-(मुस्कुरा कर) सो तो ठीक है गोपालसिंह को मैं सहज में वैकुंठ पहुचा सकता हू मगर यह काम मेरे किए न हो सकेगा उस ऊपर मेरा हाथ न उठेगा। मनोरमा (तिनक फर) अब इतनी रहमदिली सतो काम न चलगा। उनके मोजूद रहने से बहुत बडा हर्ज हो रहा है आगर वह न रह तो बेशक आप जमानिया और तिलिस्म का राज्य कर सकते हैं मायारानी ता अपने को आपका ताबदार समझती है। दारोग-देशक ऐसा ही है मगर मनौरमा-और इसमें आपको कुछ करना भी न पडेगा सब काम मायारानी ठीक कर लेंगी। दारोगा-(चौंक कर ) क्या मायारानी का भी ऐसा इरादा है ? मनोरमा-जी हॉ, वह इस काम के लिए तैयार है मगर आपसे डरती है आप आज्ञा दें तो सब कुछ ठीक हो जाय। दारोगा तो तुम उसी की तरफ से इस बात की कोशिश कर रही हो? मनोरमा-येशक मगर साथ ही इसमें आपका और अपना भी फायदा समझती हूँ तब ऐसा कहती हूँ। (दारोगा के गले में हाथ डाल कर ) बस आप आज्ञा दे दीजिए। दारोगा-(मुस्कुरा कर) खैर तुम्हारी खातिर मुझे मजूर है मगर एक काम करना कि मायारानी से और मुझसे इस बारे में बातचीत न कराना जिसमें मौका पडे तो मै यह कहने लायक रह जाऊँ कि मुझे इसकी कुछ भी खबर नहीं। तुम मायारानी की दिलजमयी करा दा कि दारागा साहव इस बारे में कुछ भी न बोलेंगे तुम जो कुछ चाही कर गुजरो, मगर साथ ही इसके इस बात का खयाल रक्खा कि सर्वसाधारण को किसी तरह का शक न होने पावे और लोग यही समझें कि गोपालसिह अपनी मौत से मरा है। मै भी जहाँ तक हो सकेगा छिपाने की कोशिश करुंगा। मनोरमा (खुश होकर ) बस अब मुझे विश्वास हो गया कि तुम मुझसे प्रेम रखते हो। इसके बाद दोनों में बहुत ही धीरे धीरे कुछ बातें होने लगी जिन्हें गिरिजाकुमार सुन न सका । गिरिजाकुमार चोरों की तरह उस मकान में घुस गया था और छिप कर ये बातें सुन रहा था। जब मनोरमा ने कमरे का दरवाजा बन्द कर लिया तब वह कमन्द लगा कर मकान के पीछ की तरफ उतर गया और धीरे धीरे अस्तबल में जा पहुचा। अक्की दफे दारोगा यहाँ रथ पर सवार होकर अग्या था, वह रथ अस्तबल में था, घोडे बंधे हुए थे और सारथी रथ के अन्दर सो रहा चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २३