पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१००२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

था। इससे कुछ दूर पर मनोरमा के और सव साईस तथा घसियारे वगैरह पड़े खुर्राट ले रहे थे। बहुत होशियारी स गिरिजाकुमार ने दारोगा के सारथी को बेहोशी की दवा सुंधा कर बेहोश किया और उठा के वाग के एक कोने में घनी झाड़ी के अन्दर छिपा कर रख आया, उसके कपड़े आप पहिर लिए और चुपचाप रथ क अन्दर घुस कर सो रहा। जब रात घण्टा भर के लगभग याकी रह गई तव दारोगा साहब जमानिया जाने के लिए विदा हुए और एक लौडी ने अस्तबल में आकर रथ जोतने की आज्ञा सुनाई। नये सारथी अर्थात् गिरिजाकुमार ने रथ जात कर तैयार किया और फाटक पर लाकर दारोगा साहय का इन्तजार करने लगा। शराब के नशे में चूर झूमत और एक लोडी का हाथ थाम हुए दारोगा साहब भी आ पहुचे। उनके रथ पर सवार होन के साथ ही रथ तेजी के साथ रवाना हुआ। सुबह को ठढी हवा ने दारोगा साहब के दिमाग में खुनकी पैदा कर दी और वे रथ के अन्दर लेट कर बखयर सा गये। गिरिजाकुमार न जिधर चाहा घोडों का मुँह फेर दिया और दारोगा साहब को लेकर रवाना हो गया। इस तौर पर उसे सूरत बदलने की जरूरत न पड़ी। - नहीं कह सकते कि मनोरमा के बाग में दारागा का असली सारथी जव हाश में आया हागा ता वहा कैसी खलबली मची होगी मगर गिरिजाकुमार को इस बात की कुछ भी परवाह न थी. उसने रथ को रोहतासगढ की सड़क पर रवाना किया और चलते चलते अपने बटुए में से मसाला निकाल कर अपनी सूरत साधारण दग पर बदल ली जिसमें होश आने पर दारोगा उसकी सूरत से जानकार न हो सक इसके बाद उसने दवा सुघा कर दारोगा को और भी बेहोश कर दिया। जब रथ एक घने जगल में पहुचा और सुबह की सुफेदी भी निकल आई ता गिरिजाकुमार रथ को सड़क पर से हटी कर जगल में ले आया जहां सड़क पर चलने वाल मुसाफिरों की निगाह न पड़ा घोड़ों का खाल लम्बी यागडोर के सहारे एक पेड के साथ बाँध दिया और दारागा को पीठ पर लाद वहाँ स थोडी दूर पर एक घनी झाडी के अन्दर ले गया जिसके पास ही एक पानी का झरना मी बह रहा था। घाडे की रास से दारोगा साहब का एक पेड़ के साथ बाँध दिया और बेहोशी दूर करने की दवा सुंघाने के बाद थोडा पानी भी चहरे पर डाला जिसमें शराब का नशा ठठा हो जाय और तय हाथ में काडा लेकर सामने खड़ा हो गया। दारोगा साहब जव हाश में आये तो बडी परेशानी के साथ चारो तरफ निगाह दोडाने लगे। अपने को मजयूर और एक अनजान आदमी को हाथ में कोडा लिए सामन खड़ा दस कॉप उठ और बोल 'भाई तुम कौन हा और मुझे इस तरह क्यों सता रक्खा है ? मैन तुम्हारा क्या विगाडा है? गिरिजा-क्या करे लाचार हूँ, मालिक का हुक्म ही एसा है ! दारोगा-तुम्हारा मालिक कौन है और उसने ऐसी आज्ञा तुम्हें क्यों दी? गिरिजा में मनोरमाजी का नौकर हूँ और उन्होंने अपना काम ठीक करने के लिए मुझे ऐसी आज्ञा दी है। दारोगा (ताज्जुब से) तुम मनारमा के नौकर हौ !नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता मै उसके सव नोकरों को अच्छी तरह पहिचानता हूँ। गिरिजा-मगर आय मुझ नहीं पहिचानते क्योंकि मैं गुप्त रीति पर उनका काम किया करता हूँ और उनके मकान पर बराबर नहीं रहता। दारोगा-शायद ऐसा हो मगर विश्वास नहीं होता खैर यह बताओ कि उन्होंने किस काम के लिए ऐसा करने को कहा है? गिरिजा-आपको विश्वास हो चाहे न हो इसके लिए मै लाचार हू, हॉ उनके हुक्म की तामील किए बिना नहीं रह सकता। उन्होंन मुझे यह कहा है कि दारोगा साहब मायारानी के लिए इस बात की इजाजत दे गये है कि वह जिस तरह हो सके राजा गोपालसिह को मार डाल हम इस मामल में कुछ दखल न देंगे, मगर यह बात वह नशे में कह गये है कही ऐसा न हो कि भूल जायें अस्तु जिस तरह हो सके तुम इस बात की एक चीठी उनसे लिखा कर मेरे पास ले आओ जिसमें उन्हें अपना वादा अच्छी तरह याद रहे । अब आप कृपा कर इस मजमून की एक चीठी लिख वीजिये कि में गोपालसिह को मार डालन के लिए मायारानी को इजाजत देता है। दारोगा-(ताज्जुय का चेहरा बना कर ) न मालूम तुम क्या कह रहे हो! मैने मनोरमा से ऐसा कोई वादा नहीं किया ॥ गिरिजा-तो शायद मनोरमाजी ने मुझसे झूठ कहा होगा मै इस बात को नहीं जानता, हॉ उन्होंने जो आज्ञा दी है सो आपसे कह रहा है। देवकीनन्दन खत्री समग्र