पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१०२

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शि 42 चन्द्रकान्ता सन्तति चौबीसवां भाग पहिला बयान दिन घटे भर से ज्यादे चढ चुका है। महाराज सुरेन्द्रसिह सुनहरी चौकी पर बैठे दातुन कर रहे है और जीतसिह, तेजसिह इन्द्रजीतसिह आनन्दसिह, देवीसिह, भूतनाथ और राजा गोपालसिह उनके सामने की तरफ बैठे हुए इधर उधर की बातें कर रहे हैं। रात महाराज की तबीयत कुछ खराब थी, इसलिये आज स्नान सन्ध्या में देर हो गई है। सुरेन्द्र-(गोपालसिह से) गोपाल, इतना तो हम जरूरफहेंगे कि गद्दी पर बैठने के बाद तुमने कोई बुद्धिमानी का काम नहीं किया बल्कि हर एक मामले में तुमसे भूल ही होती गई ।। गोपाल-नि सन्देह ऐसा ही है और उस लापरवाही का नतीजा भी मुझे वैसा ही भोगना पड़ा। वीरेन्द-धोखा खाये बिना कोई हाशियार नहीं होता। कैद से छूटने के बाद तुमने बहुत से अनूठे काम भी किये हैं। हाँ यह तो बताओ कि दारोगा और जैपाल के लिये तुमने क्या सजा तजबीज की है? गोपाल-इस बारे में दिन रात सोचा ही करता हू मगर कोई सजा ऐसी नहीं सूझती जो उन लोगों के लायक हो और जिससे मेरा गुस्सा शान्त हो। सुरेन्द-(मुस्कुरा कर) मै तो समझता हू कि यह काम भूतनाथ के हवाले किया जाय, यही उन शैतानों के लिए कोई मजेदार सजा तजवीज करेगा। (भूतनाथ की तरफ देख के ) क्यों जी, तुम कुछ बता सकते हो? भूत-(हाथ जोडके ) उनके योग्य क्या सजा है इसका बताना तो बडा ही कठिन है, मगर एक छोटी सी सजा मैं जरूर बता सकता है। गोपाल-वह क्या? भूत-पहिले तो उन्हें कच्या पारी खिलाना चाहिये जिसकी गरमी से उन्हें सख्त तकलीफ हो और तमाम बदन फूट जाय, जब जख्म मजेदार हो जाय तो नित्य लेल मिर्च और नमक का लेप चढाया जाय। जब तक वे दोनों जीते रहे तब तक ऐसा ही होता रहे। सुरेन्द-सजा हलकी तो नहीं है, मगर किसी की आत्मा गोपाल-(बात काट कर खैर उन कम्बख्तों के लिए आप कुछ न सोचिये, उन्हें मैं जमानिया ले जाऊगा और उसी जगह उनकी मरामत करूँगा। बीरेन्द्र-इन सब रञ्ज देने वाली बातों का जिक्र जाने दो, यह बताओ कि अगर हम लोग जमानिया के तिलिस्म की सैर किया चाहे तो कैसे कर सकते है? गोपाल-यह तो मैं आप ही निश्चय कर चुका हूं कि आप लोगों को वहा की सैर जरूर कराऊगा। इन्द्रजीत--(गोपाल से ) हा खूब याद आया, वहाँ के बारे में भी दो एक बातों का शक बना हुआ है। गोपाल-वह क्या? इन्द्र-एक तो यह बताइए कि तिलिस्म के अन्दर जिस मकान में पहिले महिल आनन्दसिह फंसे थे, उस मकान में बेवकीनन्दननी समय