पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१०३

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e h . कोई और था जिसे मैं नहीं जानती। दारोगा ने बहुत सोच विचार कर विश्वास कर लिया कि यह काम मूतनाथ का है। इसके याद उन दोनों में जो कुछ बातें हुई उनसे यही मालूम हुआ कि गोपालसिह जरूर मर गये और दारोगा को भी यही विश्वास है, मगर मरे दिल में यह बात नहीं बैठती. खैर जो कुछ हो! उसके दूसरे दिन मनोरमा के मकान में से एक कैदी निकाला गया जिसे बेहोश करके जैपाल नबेगम के मकान में पहुचा दिया। मैने उत्त पहिचानने के लिए बहुत कुछ उद्योग किया मगर पहिचान न सका क्योंकि उसे गुप्त रखने में उन्होंने बहुत कोशिश की थी, मगर मुझे गुमान होता है कि वह जरूर बलभद्रसिह होगा। अगर वह दो दिन भी वेगम के मकान में रहता तो मैं जरूर निश्चय कर लेता मगर न मालूम मिस वक्त और कहा वेगम में उसे पहुचवा दिया कि मुझ इस बात का कुछ भी पता न लगा, हा इतना जरूर मालूम हो गया कि दारोगा भूतनाथ को फंसान के फेर में पड़ा हुआ है और चाहता है कि किसी तरह भूतनाथ मार डाला जाय । ‘इन कामों से छुट्टी पाकर दारोगा अकेला अर्जुनसिह के मकान पर गया, इनसे वडी नरभी और खुशामद के साथ मुलाकात की और देर तक मीठी मीठी बातें करता रहा जिसका तत्व यह था कि तुम दलीपशाह को साथ लेकर मेरी मदद करी और जिस तरह हो सके भूतनाथ को गिरफ्तार करा दो अगर तुम दोनों को मदद से भूतनाथ गिरफ्तार हो जायेगा तो मैं इसके बदले में दो लाख रुपया तुम दोनों का इनाम दूगा, इसके अतिरिक्त वह आपके नाम का एक पत्र भी अर्जुनसिह को दे गया। अर्जुनसिह ने दारोगा का वह पत्र निकाल कर मुझे दिया, मेन पढ़ कर इन्द्रदेव के हाथ में दे दिया और कहा इसका मतलब भी वही है जो गिरिजाकुमार न अभी बयान किया है परन्तु यह कदापि नहीं हो सकता कि में भूतनाथ के साथ किसी तरह की बुराई करूँ हा दारोगों के साथ दिल्लगी अवश्य करूंगा। 'इसके बाद कुछ देर तक और भी बातचीत होती रही। अन्त में गिरिजाकुमार ने कहा कि मेर इस सफर का नतीजा कुछ भी न निकला और न मेरी तबीयत ही भरी, आप कृपा करके मुझे जमानिया जाने की इजाजत दीजिये। गिरिजाकुमार की दरखास्त मैने मजूर कर ली। उस दिन रात भर हम लोग इन्द्रदेव के यहा रहे, दूसरे दिन गिरिजाकुमार जमानिया की तरफ रवाना हुआ और मैं अर्जुनसिह को साथ लेकर अपने घर मिर्जापुर चला आया। घर पहुच कर मैन भूतनाथ की स्त्री शान्ता को दखा जो बीमार तथा बहुत ही कमजोर और दुवली हो रही थी मगर उसकी सब बीमारी भूतनाथ की नादानी के सबब से थी और वह चाहती थी कि जिस तरह भूतनाथ ने अपने को मरा हुआ मशहूर किया था उसी तरह वह भी अपने और अपने छोट बच्चे के बारे में मशहूर कर। उसकी अवस्था पर मैं बडा दुःखी हुआ और जो कुछ वह चाहती थी उसका प्रयन्ध मैने कर दिया। यही सबब था कि भूतनाथ ने अपने छोटे बच्चे क विषय में धोखा खाया जिसका हाल महाराज तथा राजकुमारों को मालूम है, मगर सर्वसाधारण के लिए मैं इस समय उसका जिक्र न करूंगा। इसका खुलासा हाल भूतनाथ अपनी जीवनी में बयान करेगा। खैर-' घर पहुच कर मैंने दिल्लगी के तौर पर भूतनाथ के विषय में दारोगा से लिखा पढी शुरू कर दी मगर ऐसा करने से मेरा असल मतलब यह था कि मुलाकात होने पर मै वह सब पत्र जो इस समय हरनामसिह के पास मौजूद है भूतनाथ को दिखाऊ और उसे होशियार कर दू अस्तु अन्त में मैने उस (दारोगा को ) साफ साफ जवाब दे दिया। यहा तक अपना किस्सा कह कर दलीपशाह ने हरनामसिह की तरफ दखा और हरनामसिह ने सब पत्र जो एक छोटी सी सन्दूकडी में वन्द थे महाराज के आगे पेश किये जिसे मामूली तौर पर सभों ने देखा। इन चीठियों से दारोगा की बेईमानी के साथ ही साथ यह मी साबित होता था कि भूतनाथ ने दलीपशाह पर व्यर्थ ही कलक लगाया। महाराज की आज्ञानुसार वह चीठिया कम्बख्त दारोगाके आगे फेक दी गई और इसके बाद दलीपशा ने फिर इस तरह बयान करना शुरू किया - 'मेर और दारोगा के बीच जो कुछ लिखा पढी हुई थी उसका हाल किसी तरह भूतनाथ को मालूम हो गया था वह शायद स्वय दारोगा से जाकर मिला और दारागा ने मेरी चीठिया दिखा कर इसे मेरा दुश्मन बना दिया तथा खुद भी मेरी बर्बादी के लिए तैयार हो गया। इस तरह दारागा की दुश्मनी का वह पौधा जो कुछ दिनों के लिए मुरझा गया था फिर से लहलहा उठा और हराभरा हो गया और साथ ही इसके मैं भी हर तरह से दारोगा का मुकाबिला करने के लिए तैयार हो गया। कई दिन के बाद गिरिजाकुमार जमानिया से लोटा ता उसकी जुबानी मालूम हुआ कि मायारानी का दिन बडी खुशी और चहल पहल के साथ गुजर रहा है। मनोरमा और नागर के अतिरित्त धनपति नामी एक औरत और भी है जिसे मायारानी बहुत प्यार करती है मगर उन पर मद होन का शक हाता है। इसके अतिरिक्त यह भी मालूम हुआ कि दारागाने मेरी गिरफ्तारी के लिए तरह तरह के वन्दोवस्त कर रक्खे है और भूतनाथ भी दो तीन दफे उसके पास आता जाता दिखाई दिया है मगर यह बात निश्चय रूप से मैं नहीं कह सकता कि वह जरूर भूतनाथ ही था। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २४ १००५