पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१०७

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Gori जाय क्योंकि इन दाना मित्रों को प्रारब्ध क साथ उद्योग पर बहुत कुछ भरासा या। उसके धावव दिन राजा इन्दनाथ की राजधानी में एक रावहरी के घर जाका पड़ा और राजा के कर्मचारियों न सीन डाकुओं को और एक चौदह वर्ष की उन के लडक को गिरफ्तार मिया । उन तीन आकुओं में एक अपनी मण्डली का सदार था और वह नौउम्र लडफा भी उसी का धा। जब व चारो दर महाजिर किय गएता उस समय राजा कुवरसिह के पिता भी उसी दवार में मौजूद थ। इस जगह हमें यह भी कह देना आवश्यक है कि राजा इन्दनाथ के पिता और कुवरसिह क पिता भी आपुस म बडे मित्र थे और प्राय मिला जुला करत था जयदोनी राजाओं ने उन डा का हाल सुना और डाकुओं ने भी अपना दोष स्वीकार कर लिया तो राजा इन्द्रनाथका पिता को उस डाकू लड़क के जीवट पर क्या ही आश्चय हुआ। तीनों डाकुओं को ता प्राणदण्ड की आज्ञा द दो और उस लडक के पियम अपन मित्र कुवरसिह क पिता से राय ली । कुपरसिह के पिता ने कहा कि जब यह लडका चौदह 4 की उम्र में इतना दिलर और निडर है ता भविष्य में बडा ही शैतान और खूनी निकलगा और सिवाय डाकूपन क कोई दूसरा काम न करेगा अतएव इस लडकको भी प्राणदण्ड ही देना चाहिय छाड दन में भलाई की आशा नहीं हो सकती। यह विचार जब उस डाकू सदार न सुना जिसका वह लड़का था तो वह बड़े जोर से चिल्लाया और बोला महाराज। हम लागों को प्राणदण्ड की आज्ञा हा चुकी है खेर काइ चिन्ता नहीं हम लाग अपना जिन्दगी का यहुन बङा हिन्सा एस दा आराम में बिता चुके हैं किसी बात की हवस वाकी नहीं है मगर इस बच्च ने अभी दुनिया का कुछ भी नहीं दया है अतएव आप कृपा कर इस छोड दं हम इस लउक को कसम देकर कह दत है कि भविष्य के लिये यह आवृत्ति का छोड ओर काई दूसरा रोजगार करक जीवन निवाह करे । डाकू सर्दार न बहुत कुछ कहा मगर महाराज ने कुछ भी न सुना और उस लडक का मा फांसी की आज्ञा दे दी। बस उसी दिन से डाकुओं क साथ दुश्मनी की जड पेदा हुई और उन चारों के सी साथी डाकुओं ने उत्पात मचाना आरम्भ किया। दानों राजाओं को भी इस बात की जिद्द हा गई कि जहाँ तक बन पडे खाज खोज डाकुओ को मारना और उनका नाम निशान मिटाना चाहिए। उस जमाने में डाकुओं की बडी तरक्की हो रही थी और भारतवप मे चारो तरफ वे लोग उत्पात मचा रह था धीरे धीर बदनसीवी के तीस दिन बीत गए और दस दिन बाकी रहै. तब इन्द्रनाथ और कुबेरसिंह दानो मित्रा न विचार किया कि आज काल डाकुओं स बडी लागडाट चल रही है और डाकू लोग भी दोनों राजाओं का मार डालन की फिक्र में लगे हुए है एसी अवस्था में ज्यातिष की बात सच हो जाय तो कोई आश्चर्य नहीं अस्तु काई एसी तर्फीब निकालनी चाहिये कि आज से पन्द्रह दिन तक दानों राजा घर में ही बैठ कर बदनसीवी क दिन बिता दे। कुवरसिह की राय हुई कि अपने अपने पिता को इस बात स होशियार कर देना चाहिये। यद्यपि यह बात इन्द्रनाथ का पसन्द न थी मगर सिवाय इसक और कोई तर्कीच भी न सूझी आखिर जेसा कुवरसिह ने कहा था वैसा ही किया गया अर्थात् दानों राजा ज्योतिष के भविष्यत्फल से सचत कर दिए गए। यद्यपि दोनों राजा जानते थे कि उनके लडके ज्योतिष विद्या में होशियार और दक्ष है तथापि उन्होंन लडकों की बात हसकर उडादी और कहा हमें इन बातों का विश्वास नहीं है, और यदि हम लडाई में मारे ही गये तो हर्ज क्या है ? क्षत्रियों का यह धर्म ही है 1 लाचार हो दोनों मित्र चुप हो रहे और किसी से लडाई न होने पाये छिप छिपे इसी बात का उद्योग करने लगा उनतालीस दिन मज में बीत गय चालीस दिन बाहर ही बाहर राजा इदनाथ के पिता अपने मित्र से मिलने के लिए तेजगढ की तरफ जा रह थे जब रास्ते में सुना कि उनके मित्र शिकार खेलने के लिय शेरघाटी की तरफ आनही रवाना हुए है। यह सुन इन्दनाथ के पिता भी शेरघाटी की तरफ घूम गए और शाम हाते हाते बीचही में उमजा मिला दोनों का डरा एक जगल के किनारे पड़ा और वहॉ हजार बारह सौ आदमियों की भीड भाड हो गई। पहर रात गई होगी जब उन दानों को खबर लगी कि कई आदमी जो पोशाक और रग ढग से डाकू मालूम पड़त है इधर उधर घूमते दिखाई पड़े है। राजा लागों ने इस बात पर विशेष ध्यान न दिया और अपने आदमियों को हाशियार रहन की आजादकर युप हो रहा दोपहर रात से ज्यादे जा चुकी थी जव डाकुओं के एक भारी गिराह न उस डरे पर छापा मारा जिसमें दागे राजा दो खूबसूरत पलॅगड़ियों पर सो रहे थे और चारो तरफ कई आदमी पहरा दे रहे थ। फौजी सिपाही भी वहा का मगर जान से हाथ धा कर लड़ने वाले डाकुओं की उनग का रोक न सके। दानो महाराज भी तलवार लेकर मुस्तैद हा गये और चार पाच डाकुओं को मार कर खुद भी उसी लडाई में मारे गय। इस लड़ाई में बहुत स डाकू मार गए जिनमें चार कुसुम कुमारी ११०९