पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१०९

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६ इशारा करक) यह दखिये उसी जमाने की तस्वीर है, उन दिनों इन्दनाथ की स्त्री भी जो बडी पतिव्रता थी राजा साहब के साथ ही रहा करती थी और रनवीर के साथ खेलने के लिये व जसवन्त नामी एक लडके का भी साथ रखते थे। जसवन्त पर भी राजा साहब बडी कृपा रखते थे मगर उस कम्बख्त ने अन्त में ऐसी करनी की कि जो सुनेगा उसके नाम से घृणा करेगा अब ता वह मर ही गया उसका जिक्र करना फजूल है। जब ऊपर कही हुई यात का दो वर्ष बीत गये और राजा कुबरसिह न गुप्त रीति से सब बातों का पूरा पूरा बन्दोबस्त कर लिया तव यात्रा करने के बहाने अपनी स्त्री ओर कुसुम को तथा और भी बहुत स आदमियों को साथ लेकर काशी जी गये। कुवेरसिह का जो कुछ इरादा था उसकी खबर सिवाय उनकी स्त्री दीवान साहब और सर्दार चेतसिह के और किसी को भी न थी बल्कि और लोगों को यह भी मालूम न था कि राजा इन्द्रनाथ अपनी स्त्री और लड़के के सहित काशी पुरी में रहते है। मगर जिस रात उस मकान में जिसमें इन्द्रनाथ रहत थे गुप्त रीति से कुसुम का विवाह हुआ और विवाह करने के लिये काशी क एक पडित को बुलाया गया । उभी रात गोत्रोच्चारण के समय में उस पडित को मालूम हो गया कि वह साधु वास्तव में राजा इन्द्रनाथ है और उसी पडित की जुबानी जिसे इस विवाह में बहुत कुछ मिला भी था मगर जो पेट का हलका था धीरे धीरे कई आदमियों को इसकी खवर हो गई कि फला साधु या ब्रह्मचारी वास्तव में राजा इन्द्रनाथ है। (दीवार की तस्वीर दिखा कर) देखिये यह कुसुम के विवाह के समय की तस्वीर है। एक बात कहना तो हम भूल ही गए, देखिये इसी तस्वीर में राजा इन्द्रनाथ के पीछे सिपाहियाना ठाठ से एक आदमी खडा हे यह इन पडित जी का नौकर है जा विवाह करान आये थे। डरपोक पडित ने समझा कि कहीं ऐसा न हा कि विवाह कराने के बहाने ये लोग बेठिकान ले जाकर उन्हीं का कपडा लत्ता छीन लें जैसा कि काशी में प्राय हुआ करता है इसीलिये इस आदमी को अपने साथ लाये थे, राजा इन्द्रनाथ ने तो समझा था कि ब्राह्मण का आदमी है सीधा सादा होगा मगर वह बडा ही शैतान और पाजी निकला और उसी न रुपये की लालच में पड़ कर अन्त में इन्द्रनाथ का पता डाकुओं को दे दिया। कुसुम की शादी के थोडे ही दिन बाद कुसुम की माँ का दहान्त हुआ । उन दिनों कुवरसिंह बहुत उदास रहा करत थे और उसी उदासी के जमाने में ये तस्वीरें बनाई गई थी। इन तस्वीरों के बनाने में सर्दार चेतसिह ने बडी कारीगरी खर्च की है। यद्यपि ये मुसौवर नहीं थे मगर हम सब के काम को अपने हाथ से पूरा करने के लिए राजा कुबेरसिह की आज्ञानुसार इन्होंन बडी कोशिश से मुसौवरी सीखी थी। देखिये चारों तरफ की तस्वीरें कुवेरसिह और इन्दनाथ की दोस्ती और इनके लड़कपन के जमाने का हाल दिखा रही है। कुसुम की शादी के कई वर्ष बाद कुवेरसिंह ने कुसुम को गद्दी देकर दीवान साहब के सुपुर्द कर दिया और कुसुम कुमारी तथा और लोगों को यह कह कर कि मै बद्रिकाश्रम जाता हु सन्यास लेकर उसी तरफ कहीं रहूँगा। घर से बाहर हो गए। जाती समय बहुत सी बातें कुसुम को समझा गए जो उस समय कुछ होशियार हो चुकी थी तथा यह भी कह गए कि मेरी नसीहत को आखिरी नसीहत समझिया क्योंकि अब मै कदाचित लौट कर घर भी न आऊगा और यदि मेरे देहान्त की किसी तरह की खबर लगे तो क्रिया कर्म किया न जाय क्योंकि मैं यहाँ से जान के साथ ही सन्यासी हो जाऊगा। कुवरसिह जिस समय यहाँ से जाने लगे घर और बाहर चारो तरफ हाहाकार मच गया और सभों का जी बड़ा ही दुखी और उदास हुआ परन्तु कोई उनके इरादे का रोक नहीं सकता था अस्तु वह कार्य भी हो गया और तीन चार आदमियों को छोड़ के फिर किसी को कुवेरसिह का पता न लगा। कुधरसिह घर से निकल कर बदरिकाश्रम नहीं गए बल्कि सीधे अपने मित्र इन्द्रनाथ के पास काशी पहुचे और दोनों मित्र मिल जुल के रहज लगे। थोडे दिन बाद जगल की जड़ी बूटियों की सहायता से कुवेरसिह का रग रूप बदल दिया गया और इन्द्रनाथ ने अपने दीवान का जो उनका सब हाल जानता था और जिसे मरे आज कई वर्ष हो गए है बुलवाकर बहुत कुछ समझाया और कुबेरसिह को अपनी जगह राजा बनाने की आज्ञा देकर कुवेरसिह के सहित उसे विदा किया। उस दिन से कुवेरसिह ने अपना नाम नारायणदत्त रक्खा और विहार के राजा कहलाने लगे। इसके थोडे ही दिन बाद इन्दनाथ को मालूम हो गया कि डाकुओं को हमारा पता लग गया और वे लोग हमारी जान लेने की फिक्र कर रहे है। इन्द्रनाथ को अपनी जान प्यारी न थी मगर अपनी स्त्री और रनवीरसिह का बडा ध्यान था इसलिये अपनी स्त्री और लड़के को अपने मित्र कुबेरसिह के सुपुर्द करना चाहा परन्तु उनकी स्त्री ने स्वीकार न किया। उसने कहा कि लडके को चाहे भेज दो मगर मै आपका साथ न छोडूंगी इस सवव से रनबीर को कुचेरसिह के हवाले करने की कार्रवाई कुछ दिन के लिये रुकी रही। एक दिन रात के समय दो तीन डाकू सीध लगा कर उनके मकान में घुसे ईश्वर इच्छा से इन्द्रनाथ जाग रहे थे इसलिये जान बच गई मगर फिर भी उन डाकुओं के साथ लडना ही पडा उनकी स्त्री उसी दिन एक डाकू के हाथ से मारी गई मगर इन्द्रनाथ ने भी उन डाकुओं में से सिवाय एक के किसी को जीता न छाडा वह एक डाकू जो यच गया था इन्द्रनाथ की स्त्री के कपडे की गठरी लेकर माग गया, उस समय रनवीरसिह और जसवन्त चारपाई पर सो रहे थे जिन्हें इस लड़ाई की कुछ भी खबर न थी। अब इन्द्रनाथ इस फेर में पडे कि सवेरा होने पर जब इस डाके की खबर कुसुम कुमारी ११११