पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/११५

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॥ श्री॥ नरेन्द्र-मोहिनी पहला भाग पहिला बयान 'इस वक्त यह जंगल कैसा भयानक मालूम पड रहा है । इस चादनी ने तो और भी रग जमाया है। पेडों में से छन कर जमीन पर पड़ती हुई दूर तक दिखाई देती है। बीच बीच में कटे हुए पेडों की थुन्निया निगाहों के सामने पड कर मेर दिल के साथ क्या काम करती है इसे मै हो जानता हूँ !" धीर धीरे यह कहता हुआ वीस बाईस वर्ष के सिन का एक युवा बडे मारी और डरायो जगल में इधर से उधर घूम रहा है। गोरा रंग, हर एक अग साफ और सुडौल चहरे से जवामी और बहादुरी बरस रही है मगर साथ ही इसके फिक्र और उदापी भी इसके खूबसूरत चेहरे से मालूम पड़ रही है। घूमते घूमते इस नौजदान बहादुर के कान में एक रोने की दर्दनाक आवाज आई जिसे सुनत ही वह चौक उठा और इधर उधर ध्यान लगा कर देखने लगा मगर दूसरी बार वह आवाज सुनाई न पड़ी। यह दर्दनाक आवाज ऐसी न थी जिसे सुन कर कार्ड भी अपने दिल को सम्हाल सकता । हमारा यह यहादुर नौजदान तो एकदम ही परेशान हो गया क्योंकि वह जितना दिलेर और ताकतवर था उतना ही नेक और रहमदिल भी था आवाज कान में पडत ही गलूम हा गया था कि यह किसी कमसिन औरत की आवाज है जिस पर जरूर कोई जुल्म हो रहा है। आखिर इससे रहा न गया और यह आवाज की सीध पर पश्चिम की तरफ चल निकला। थोड़ी ही दूर जान पर फिर वैसी ही दर्दनाक आवाज इस बहादुर के बाई तरफ स आई जिस मुन कर यह वाई तरफ को मुडा और थोड़ी ही देर में उस जगह आ पहुचा जहाँ से पत्थर जैसे कलेज को भी गला कर बहा देने वाली यह आवाज आ रही थी। वहाँ पहुंचने पर इसकी तबीयत और घबराई खौफ ताज्जुब और गुस्से से अजब हालत हो गई और कलेजा धक धक करन लगा क्योंकि उस जगह पर ऐसा ही दृश्य नजर आया। जिस जगह यह जवान पहुँच कर खडा हुआ उसके सामन ही एक बड़ा सा पीपल का पेड था। आधी रात के इस सन्नाटे में हवा लगने से उस पेड़ की पत्तियाँ खडखड़ा रही थीं। उसी पेड की एक मोटी डाल के साथ एक लाश लटक रही थी जिसके पैर में रस्सी बधी हुई थी और सिर नीचे की तरफ था। इसी लाश को देख कर हमारे नौजवान वहादुर की वह दशा हुई थी जैसा कि हम ऊपर लिख चुके हैं ! उस लाश का दख कर नौजवान न म्यान से तलवार खैच ली जो उसके कमर में बधी हुई थी और आगे बढा। पास जाने पर यह मालूम हुआ कि यह लाश एक औरत की है। साडी उसकी जमीन पर लटक रही थी और कई जगह से यदन नगा हो रहा था दोनों हाथ भी नीचे की तरफ लटक रहे थे। वह बहुत गार स उस लाश को देखन लगा। इतने ही में हवा का एक तेज झटका आया जिसके सबब से पेड़ की तमाम छोटी छोटी डालियाँ हिल हिल कर झोका खाने लगी। वह डाली भी जो चन्द्रमा की रोशनी को उस लाश तक पहुचने नहीं देती थी जोर से एक तरफ को हट गई और चन्द्रमा की रोशनी बहुत थोडी देर के लिए उस लाश के ऊपर पडी। साथ ही नौजवान के विलकुल रोंगटे खडे हो गए क्योंकि उस औरत का चेहरा जो पेड के साथ बेहोश उल्टी लटक रही थी उस चाद से किसी भी तरह कमन था जिसकी राशनी ने क्षण भर के लिए उसके बदन पर पड कर उसकी हालत नौजवान को दिखला दी थी। नौजवान को चाद की इस रोशनी में एक बात और भी ताज्जुब की दिखलाई पडी। वह उल्टी लटकी हुई औरत बिल्कुल जड़ाऊ जेवरों से लदी हुई थी और इस बात को देख कर नौजवान के खयाल कई तरफ दौडने लगे। नरेन्द्र मोहिनी १११७