पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/११६

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Gami जल्दी से उस लाश के पास जाकर देखने लगा कि इसमें कुछ दम है या नहीं नाक पर हाथ रक्खा सास चल रही थी जिससे मालूम हुआ कि यह नाजुक औरत अभी तक जी रही है अब इसकी तबीयत कुछ खुश हुई और इसने इस बात पर कमर बॉधी कि जिस तरह भी हो सकेगा इसे उतार कर इसकी जान बचाऊँगा और उस शैतान के बच्चे को पूरी सजा दूंगा जिसने इसके साथ ऐसी बुराई की है। यह सोच कर वह बहादुर नौजवान पेड पर चढ़ गया और बहुत होशियारी के साथ उस रस्से को खोला जिससे वह औरत लटक रही थी। उसे धीरे धीरे जमीन पर छोडा और तब आप भी नीचे उतर आया और उसके पैर से रस्सीखोल उसे सीधा कर पेड के साथ खड़ा कर दिया मगर हाथ से थामे रहा जिसमें उसके बदन का तमाम खून जो बहुत देर तक उल्टे रहने के सबब से सिर की तरफ उतर आया था लौट कर तमाम बदन में फैल जाय। कुछ देर बाद उस औरत ने आँख खोली और बैठना चाहा। वहादुर नौजवान ने धीरे से पेड के सहारे उसे बेठा दिया और पूछा ' अब मिजाज कैसा है ? ' जिसके जवाब में वह कुछ न बोली हॉ आँख उठा कर चन्द्रमा की तरफ देखा फिर सिर नीचे करके बहुत धीरे धीरे बोलने लगी- औरत --आपने मेरी जान बचाई | इसका बदला मैं किसी तरह पर नहीं दे सकती । अगर जन्म भर में आपके जूठे बर्तन मौजूं तो भी पूरा नहीं हो सकता। नौजवान - इसके कहने की कोई जरूरत नहीं मैने तुम्हारे साथ कोई नेकी नहीं की बल्कि मैने अपनी भलाई की कि अपने को पाप का भागी होने से बचाया। मैने अपनी जान लडा कर तुम्हारी जान बचाई, राह चलते इस जगह आ पहुंचा और तुमको इस हालत में देख कर जो कुछ हो सका किया। मैं तो क्या कोई पत्थर के कलेजे वाला भी इस जगह आकर तुम्हारी सी औरत को ऐसी दशा में देखता तो बिना बचाए भला कहीं जा सकता था? तिस पर जो जरा भी जानता होगा कि ईश्वर कोई चीज है उससे तो स्वप्न में भी कभी ऐसा न होगा इसलिए मैंने अपनी ही भलाई की कि अपने को राक्षस कहलाने से बचाया। इस बीच में कई दफे हवा के झोंके आये जिन्होंने उन पीपल की डालियों को हटा कर चन्द्रमा की रोशनी को उन दोनों तक पहुँचने दिया जिससे एक को दूसरे ने कुछ अच्छी तरह देखा। हर दफे उस नाजुक औरत ने मीठी मीठी बातें कहते उस नौजवान की सूरत को देखा मगर देख देख सिर नीचा कर लिया तथा वात खत्म होने पर यह जवाब दिया - औरत-मुझे इतनी बुद्धि नहीं है कि आपकी इन बातों का जवाब दूं क्योंकि आखिर तो औरत हू, हों में इतना जरूर कह सकती हूँ कि आपने मेरे साथ जो कुछ किया है उसे मैं ही जानती हूँ कहने की सामर्थ्य नहीं और बहुत बातें करने का यह मौका भी नहीं क्योंकि अगर हम लोग यहाँ देर तक रहेंगे तो जरूर हम तीनों ही की जान बुरी तरह जायगी। नौजवान-(ताज्जुब से) यहाँ पर तो सिवाय हमारे और तुम्हारे तीसरा कोई भी नहीं है ! तब तुमने यह कैसे कहा कि हम तीनों की जान जायगी? औरत-(ऊँची साँस लेकर) हाय मेिरी बहन भी इसी जगह है। नौजवान -- (चौक कर ) है यहाँ पर तुम्हारी बहन भी है । कहाँ है ? जल्दी बताओ जिसमें उसके भी बचाने की फिक्र की जाय। औरत -(हाथ से बतला कर ) इसी जगह गडी है। नौजवान - अगर जमीन में गडी है तो वह कब की मर गई होगी ! औरत-(चन्द्रमा की तरफ देखकर नहीं नहीं उसे गडे बहुत देर नहीं हुई है, मुझको लटकाने के बाद बदमाशों ने उसे गाडा है। सिवाय इसके वह एक बहुत लम्बे चौडे सन्दूक में रख कर गाडी गयी है अस्तु जरूर अभी तक जीती होगी। इतना सुनते ही वह नौजवान उठ खडा हुआ और उस औरत की बताई हुई जमीन को खजर से खोदने लगा, वह नाजुक औरत अपने हाथों से वहाँ की मिट्टी हटाने लगी। सन्दूक बहुत नीचे नहीं गाडा गया था इसलिए उसके ऊपर वाला तख्ता बहुत जल्द निकल आया । सन्दूक में ताला नहीं लगा था। नौजवान ने आसानी से उसका पल्ला उठा कर किनारे किया और तब दोनों ने मिलकर उस औरत को सन्दूक से बाहर निकाला जो उसके अन्दर बेहोश पड़ी हुई थी। इसके बदन के भी कुल गहने जडाऊ थे और साडी भी बेशकीमती थी। चेहरा साफ नजर नहीं आता था तो भी कुछ कुछ पडती हुई चन्द्रमा की रोशनी उसकी खूबसूरती को छिपा रहने नहीं देती थी। सन्दूक के बाहर निकलने और ठण्डी हवा लगने पर दो घडी के बाद कहीं जाकर उसे होश आया। तब तक वह नौजवान और वह नाजुक औरत अपने रूमाल और आचल से उसके मुंह पर हवा करते रहे। होश में आते ही उस औरत ने चौक कर उस नौजवान तथा उस नाजुक औरत की तरफ देखा और धीरे से बोली, "बहिन मेरी यह दशा कैसे हुई? उसने जवाब दिया, "यह वक्त इन सब बातों के पूछने का नहीं है। इस समय हम लोगों को यही चाहिए कि सिवाय भागने के और कुछ न करें बल्कि जब तक दूर न निकल जाय बात तक न करें, हॉ जब ईश्वर हम लोगों को किसी हिफाजत की जगह पर पहुचा देगा तब सब कुछ कह सुन लेंगे।' देवकीनन्दन खत्री समग्र १११८