पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/११९

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he आवाज - जाता है कि नहीं ! नरेन्द्र -- राम राम इसने तो दिक कर डाला | भला यह ता बताओ तुम उतरते क्यों नहीं? आवाज -- भाई जान, तुम रज क्या हो गये हा? जानते ही हो कि मैं कितना फूंक फूंक कर पैर रखता हूँ। नरन्द- तो इस वक्त तुम्हें किस बात का डर है? आवाज- यही कि कहीं नजर न लग जाय। नरेन्द्र --किसकी नजर? आवाज-य दानों औरतें मेरी जवानी और पहलवानी पर नजर लगा देंगी। इतना सुनते ही नरेन्द्र एक दम खिलखिला कर हँस पडा बल्कि वे दानों औरतें भी जो अभी तक डर के मारे कॉप रही थी हंस पड़ी मगर फिर सोचने लगी 'यह कौन है ? क्या सचमुच कोई भूत है ! अगर यह भूत है तो नरेन्द्र भी कोई पिशाच ही होंगे ! नहीं नहीं ऐसा नहीं साचनाचाहिए। नरेन्द्र बहादुर और लासानी आदी है, और फिर अगर भूत प्रेत या पिशाच होते ता इनकी परछाहीं जो चन्दमा की राशनी स इस किश्ती में पड़ रही है न पडती होती और इनके आँखों की पलकें भी नीचे न गिरती खैिर यह सब तो ठीक है मगर वह कौन है जो पेड पर चढ़ा हुआ बोल रहा है और नीचे नहीं उतरता !" नरेन्द्र ने बहुत कुछ कहा मगर वह शैतान पड स नीचे न उतरा। आखिर नरेन्द्र हॅसते हुए किश्ती से नीचे उतरे और पड के पास जाकर माले उतरता है या काट डालूं पेड को? यह कह कर एक हाथ तलवार का उस पेड पर लगाया साथ ही इसके पड़ के ऊपर वाला शैतान चिल्लाया हॉहॉ हॉ हाँ! ऐसा काम कभी मत करना ! पेड मत काटना नहीं तो मैं गिर कर मर जाऊगा । लो मैं आप ही उतरता हूँ तुम दिक मत करा ! नरन्द्र - अच्छा ता फिर उतर जल्दी! आवाज – उतरता हूँ घबडाते.क्यों हो ? क्या जल्दी में गिर कर जान दे दूँ ? आखिर धीरे धीरे वह शैतान नीचे उतरा और नरेन्द ने उसका हाथ पकड क किश्ती पर ला बैगया इसके बाद विश्ती को किनारे स हटा गहरे जल में ले जा कर बहाव पर छोड़ दिया। नरेन्द्र ने जब उस शैतान का किश्ती में लाकर बैठाया तभी से उसकी शक्ल दख दानों औरतों की अजय हालत हा रही थी। मार हॅमी के लोटी जा रही थीं क्योंकि पेड़ पर से वह जिस दिलावरी और डरावनी आवाज से बोलता था नीचे उतरन पर यह वैसा न पाया गया बल्कि उसकी सूरत एसी थी कि जो कोई देखे जरूर हँसने लगे। परीस तीस वर्ष का सिन नाटा कद छाट छाट हाथ पर सीतला-मुँह दाग एक आँख गायब लाल रग की धोती लालहीरग का कुरता और टोपी जिसमें गोटा टका हुआ था काँधे पर एक अगोछा बगल में एक बटुआ हाथ में भाग घोंटने का डण्डा भाग पीसन की कूडी टापी के नीचे। एसी सूरत देख क मला किस हेंसी न आवगी ?दानों आरतों न मुश्किल से हसीरोककर भरेन्द्र को हाथ के इशारे से अपने पास बुलाया और धीरे से पूछा- 'यह कौन है जिसे बडी चाह से तुम इस किश्ती पर लाये हो ? नरन्द्र - यह हमारा लडकपन का साथी है। औरत - क्या तुम्हारा एसे ही लोगों से साथ रहता है ? नरेन्द्र-नहीं नहीं, हम तो दिल बहलाने के लिये इसे अपने साथ रखते है, बडा खैरखाह है और जान से ज्यादे हमको मानता है कुछ थाडा सा बेवकूफ तो है मगर वाजे दफे इसे दूर की सूझती है। अव ता यह साथ ही है, इसका याकी हाल तुमका रास्ते में मालूम हो जायगा । ओरत - इसका और तुम्हारा साथ कद छूटा नरेन्द्र-मै तो घर स अकला निकला था यह शायद मुझ ढूँढता हुआ आ पहुँचा! देखो मै इससे हाल पूछता हू, आप . ही सप मालूम हो जायगा। औरत - इसका नाम क्या है? नरन्द - इसका नाम सभों न बहादुरसिह रक्या है। यहादुरसिह का नाम सुनकर फिर उन दानों का हँसी आ गई। बहादुर-क्यों जी नरन्द यह दोनों औरतें घडी घडी मुझका देख देख कर हँसती क्यों है ? कहीं मुझे भी गुस्सा आ जाय तो क्या हो? नरेन्द्र -- मला इसमें रज होने की कौन सी बात है जो कोई तुम्हें दख कर खुश हा उससे रज होना क्या मुनासिब ? वहादुर - नहीं मैन कहा कि शायद अगर इन दानों का किसी बात की शेखी होता मै अभी तैयार हूँ, आवे कुश्ती लड नरेन्द्र मोहिनी ११२१ ७१