पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१२

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8 - 1 वात स्पष्ट देखी जाती है । बल्कि प्रेमी को दुःख झेलना होता है । श्रेष्ठ पति या पत्नी अनेक बाधाओं से प्राप्त होते हैं। सभी कथानकों के मूल में प्रेम है। प्रेमास्पद को पाने के लिये ही कथा सृष्टि होती है । इसे रूप तत्व कहा जा सकता है । रूप लोभी कुटिल पात्र या खलनायक मौजूद हैं । उनके व्यवहारों मे कंथा विकसित होती है। दूसरा तत्व है धन । राज्य । धन या राज्य के लिए संघर्ष होते हैं। राजा शिवदत्त. इसके अच्छे उदाहरण हैं । स्वयं भूतनाथ के भ्रष्टाचार के मूल में धन है । राज्य से पदच्युत कर धन प्राप्त करने के लिए राजा गोपालसिंह को अनेक कष्ट दिये जाते हैं । राजाओं और जमींदारों के होने वालों पड्यंत्रों तथा उनसे प्रभावित जीवन को ये उपन्यास अच्छे ढंग से व्यक्त करते हैं। राज्य का सुख भी है। अपहरण, जेल और हत्या की काली चादर इन्हें घेरे भी रहती है। औरत-पुरुप सब वदल दिये जाते हैं। धन के लोभ में स्त्रियाँ व्यभिचारिणी भी बनती हैं। क्रूरता करती हैं। किंतु अंत में विजय सत्य की होती है । खत्री जी अपने पात्रों में शील, शक्ति और सौंदर्य चाहते हैं । वीरता, वचन की कद्रता, प्रजावत्सलता आदि गुण हैं ! पुरुष के समान ही स्त्रियाँ भी घोड़े की सवारी करती हैं। हथियार चलाती हैं। फिर भी नैतिक स्तर पर खत्री जी का विरोध हुआ । यह विरोध इस विधा का था। पंचतंत्र और हितोपदेश आदि के मुकाबले निश्चय ही खत्री जी की कथा उपदेश प्रधान न होकर मनोरंजन से जुड़ी थी। केवल मनोरंजन भारत के साहित्य का कभी उद्देश्य नहीं रहा । खत्री जी की कथा से उपदेशात्मक साहित्य को धक्का लगा। उपदेश सुनते-सुनते ऊबे लोगों ने ललक कर खत्री जी के साहित्य का स्वागत किया। खत्री जी की प्रेमकथाओं ने रीतिकाल के पुनः लौटने का भय भी पैदा किया। इससे नैतिकतावादियों के कान खड़े हो गए । खत्री जी के पात्र चाहे जितने भी पवित्र और शालीन क्यों न हों किंतु पाठक उन्हें आदर्श व्यक्ति नहीं मानता। वे चरित्र बनाने में हमारी मदद नहीं करते । किसी भी साहित्य का यह क्या कम अपराध है कि वह मनुष्य को उठाने की जिम्मेदारी से मुक्त रहे । पूरी कथा मनुष्य के बहिरंग का खेल है। चंद्रकांता में तीन स्त्रियाँ प्रमुख हैं-चंद्रकांता, चपला और चम्पा । इनमें सबसे होशियार चपला है। तीनों 'च' वाली हैं। तीनों चपल हैं। इन स्त्रियों में कहीं न कहीं महफिली अंदाज है । लेखक कहता है 'चपला कोई साधारण औरत न थी । खूबसूरती और नजाकत के सिवाय उसमें ताकत भी थी। दो चार आदमियों से लड़ जाना या उनको. गिरफ्तार कर लेना उसके लिए एक अदना काम था, शस्त्रविद्या को पूरे तौर से जानती ऐयारी के फन के अलावे और भी कई गुण उसमें थे । गाने और बजाने में उस्ताद, नाचने में कारीगर, आतिशबाजी बनाने का बड़ा शौक । इसीलिये लोगों में इन्हें आदर्श हिंदू नारी मानने में झिझक होती थीं। पूरी कथा में हिंदू-मुसलमान संघर्ष न होकर भी मुसलमानों के प्रति अविश्वास और अलगाव स्पष्ट है। चंद्रकान्ता संतति के आनंद का बयान है-"यह तो हो ही नहीं सकता कि मैं इसे चाहूँया प्यार करूं । राम राम मुसलमानिन से और इश्क ! यह तो सपने में भी नहीं होने का ।...मुसलमानिन के घर में अन्न जल कैसे ग्रहण करूँगा? पहला भाग छठवां वयान । इसका सबंब इश्क विबाह का पूर्व रूप है। और विवाह तो नहीं हो रहा है । हिंदू से हिंदू लड़ता है । किंतु मुसलमान के सामने आते ही वह बेगाना लगने लगता है । नाजिम और अहमद क्रूरसिंह को मुसलमान बनाना चाहते हैं । वह तैयार भी हो गया । - ये सब बातें उस समय की मनोभूमि के विरुद्ध थीं। लोग मुसलिम संस्कृति से ऊब रहे थे। अहमद और नाजिम को आसानी से मार दिया जाता है जबकि ऐयार को मारने की प्रथा न थीं । खत्री एक तरफ मसलमान विरोधी हैं । दूसरी ओर मुगलिया सामंती संस्कृति । ! आज 1 । (xiii)