पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

देखी तभी से इन पर जी जान से आशिक हा गये थे। उधर वे दोनों औरतें भी पूरी मुहब्बत की निगाह से उनको देखने लगी बल्कि इनको पाकर अपनी बिल्कुल तकलीफ भूल गई और सोच लिया कि अब जन्म भर इनका साथ कभी न छोडेंगी। तीनों किनार पर बैठ नरन्द्र न कहा उस भगेडी मसखरे की बातचीत में तुम दानों का हाल भी न सुना । एक औरत-क्या हर्ज हे लोडी तो साथ में हई है जब चाहे इसकी राम कहानी सुन लेना पर अब ता हाल कहने का मौका है नहीं। नरन्द - अच्छा हाल तो किसी दूसर वक्त सुन लेंग मगर अपना नाम तो इस वक्त बता दी। एक औरत - (जा पेड पर से उतारी गई थी ) जी मेरा नाम ता माहिनी है और इसका नाम गुलाब है जिस आपने जमीन से निकाल कर बचाया। नरन्ट - मोहिनी । अहा क्या सुन्दर नाम है। इतने में दूर से कुत्त के पूंकने की आवाज आई जिसे सुन नरन्द्र ने मोहिनी की तरफ देख के कहा 'मालूम होता है यहा पास ही काई गाव है क्योंकि कुत्ते सिवाय आदमी के पड़ोस के और कहीं नहीं रहत। अच्छी बात हो अगर हम लोग आज का दिन इत्ती गाव में काटें क्यांकि दिन की धूप इस खुली हुई छोटी किश्ती में नहीं बर्दास्त होगी। माहिनी-आपका कहना सच हे मगर हम लोगा का किसी छाट गाव में रहना उचित नहीं इसस तो दिन भर की धूप सह कर भी इसी किश्ती पर सफर करते रहना ठीक हागा। गुलाप-(इधर उधर दखकर दखा वह एक नाव का मस्तूल दिखाई देता है।(उठ के और गौर से देख कर )वाह वाह यह ता बडी भारी उप्परदार नाव है अगर इस किराये कर लिया जाय तो बहुत अच्छा हो। इसी पर सफर करते हुए हम लोग किसी शहर में बड़े आराम के साथ पहुच जायेंगे। नरेन्द - (खड होकर और उस नाव का देख कर ) हा ठीक ता हे। माहिनी -- बस ता फिर टर क्यों उसी नाव को ठीक कीजिय चलिये इसी किश्ती पर बैठकर वहा चल चल । नरेन्द्र -अभी तुम लोगों को वहा ल जाना ठीक न होगा। कौन ठिकाना वह नाव खाली है या किसी का माल लदा है अगर दूसर के किराये में हागी तो मुझ कैसे मिल सकेगी।तुम दानों अच्छे कपडे और गहने पहिरे हो कोई देखेगा तो क्या समझगा? कोइ एसी तर्कीय भी नहीं हो सकती कि तुम दानों का छिपा कर वहा तक ले चलूँ ओर अगर नाव भरी न हो तो उसी जगह किराय कर लूं। इस तरह बहुत आदमियों के बीच में तुम दोनों का कैसे ले चलूँ। गुलाब - चलिये नाव खाली हुई तो सवार हा लेंग नहीं तो आगे चल कर कहीं ठहरेंगे और आज का दिन डोंगी में ही बिता देंग। नरेन्द्र-आग दूर तक बालू ही बालू दिखाई पडता है कहीं पेड का नाम निशान तक नहीं है कहाँ ठहरेंगे? मोहिनी-तो फिर आपकी क्या राय है, नरन्द्र-मैं चाहता हूँ कि तुम दानों यहा ठहरा बहादुरसिंह मी तुम्हारे पास है बहुत जल्द जाकर उस नाव को देख आता हूँ। अगर खाली होगी तो तुम लागों का ले जाकर सवार कराऊँगा नहीं तो इसी जगह लौट कर हम लोग दिन पिलावेंग और रात को फिर चलेगा मोहिनी-नहीं नहीं अब में तुम्हारा साथ न छोडूगी क्या जाने तुम कहीं नरन्द - वाह में कहा चला जाऊँगा ? यात की बात में तो लौट के आता हूँ । माहिनी-(ऑख डबडबा कर ) मैं क्या नरेन्द्र ने माहिनी की आँखों में आंसू डबडवाते हुए देखा। जी वचैन हो गया हाथ थाम कर बोला हैंयह क्या? यह ऑसू कैसा? माहिनी का जी पूर तौर से उमड आया आँसुओं की तार बध गई हिचकी लेकर बोली न मालूम क्यों मेरा कलेजा काँप रहा है खुद रखुद रोने को जी चाहता है बस तुम मत जाओ इसी जगह दिन काटो जो कुछ होगा देखा जायेगा। खैर किसी तरह नरेन्द्र न बहुत तरह से मोहिनी का समझा बुझाकर इस बात पर राजी किया कि वे जा कर नाय का हाल दर्यापत कर आवें। हमारे यहादुरसिह अनी तक भग घोट रहे हैं। दीन दुनिया की कुछ खबर नहीं यह भी नहीं मालूम कि नरेन्द्र मोहिनी और गुलाब ने क्या क्या यातचीत हुई। दोनों पैरों से भग पीसने की नडी पकडे हुए नीचे के होठ को दाज्ञों से दवाये कभी बाई तरफ कभी दाहिनी तरफ झेटा घुमा घुमा कर भग पीस रहे है। नरेन्द्र न पुकार कर कहा · अजी ओ बहादुर भगी ! अभी तक तुम्हारी भग तैयार नहीं हुई ? दखो इधर खयाल रखा हन जाते हैं। वहादुरसिह ने गुस्स की निगाह से नरेन्द्र की तरफ देख कर कहा 'वस खबरदार!हमको भगी का कहना इतना दुरा मगलूभन हुआ जितना तुम्हार इस कहने का रज हुआ कि हम जाते हैं। क्या मजाल जो तुम कहीं जा सको । एक क्या दस करोड नरन्द्र वनकर आओ तब तो जाने ही नही दू !एक दफे तुम्हें अकेले छोड कर फल पा लिया अब क्या मैं उल्लू नरेन्द्र मोहिनी ११२३