पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हूजा घडी घडी ऐसा ही करूँ7. नरेन्द्र - अब कुछ सुनता समझता भी है कि अपनी ही टाय टॉय किये जाता है । वहादुर - वस बस मै सब सुन चुका और समझ गया, बैठो सीधे होकर ! नरेन्द्र - अजी मैं नाव किराये करने जाता हूँ और कहीं नहीं जाता। बहादुर -- नाव ! नाव | केसी नाव ? यह क्या छकडा है? नरेन्द्र - ( हँस कर ) यह भी नाव है मगर मैं बडी नाव छप्पर वाली किराये करने जाता है। बहादुर - कहा है छप्पर वाली नाव 7 नरेन्द्र - ( हाथ से इशारा करके ) वह देखो। बहादुर - हॉ हे तो ( सोटा रख कर ) में भी तुम्हारे साथ चलता हूँ। नरेन्द्र - ( माहिनी और गुलाव को वृता कर ) तो इनके पास कौन रहेगा? बहादुर - तुम। नरेन्द्र -- ओर तुम किसके साथ जाओगे ? बहादुर - नरेन्द्र के साथ। वहादुरसिह की इस वात ने सबको हँसा दिया : मोहिनी नो उदास बैठी थी वह भी हस पड़ी। बहादुर-हसने की कौन बात है (कुछ रोचकर ) हा हा ठीक है मुझसे गलती हुई, मै भूल गया, अच्छा जाओ सीधे उस नाव की तरफ चले जाओ। मैं देख रहा हूँ, इधर उधर हटे नहीं कि मैने डण्डा फेंक कर मारा। अच्छा यही सही यह कह कर नरेन्द्र उस बडी नाव की तरफ रवाना हुए। मोहिनी और वहादुरसिह की निगाह बराबर नरेन्द्र की तरफ थी। चौथा बयान हमारा बहादुर नौजवान इन तीनों को उसी जगह छोड उस नाव की तरफ चला और यह इरादा कर लिया कि उसे किराये करके आराम से अपना सफर तमाम करेगा। पाठक इतना ता मालूम ही हो गया कि उसका नाम नरेन्द्रसिह है अस्तु अब हमका भी इसी नाम से इस उपन्यास में लिखना ठीक होगा। देखने में वह नाव बहुत पास मालूम देती थी मगर नरेन्द्रसिह के वहा पहुचते पहुचते पहर भर से ज्यादा दिन चढ़ आया। पास पहुंचकर उन्होंने किसी आदमी को उस नाव के ऊपर न देखा। इससबब से नाव के पास जाकर अन्दर की तरफ झॉका। यह नाव बहुत बडी थीं और इस लायक थी कि हजार मन से ज्यादा बोझ लाद सके । फूस का छप्पर उसके ऊपर था और चारों तरफ टट्टियों से घेरा हुआ था। दा चार खिडकियाँ भी दोनों तरफ इस लायक थी कि भीतर बैठा हुआ आदमी बाहर की तरफ दख सके। नरेन्द्रसिह को झॉकत देख एक आदमी अन्दर से बाहर निकल आया जिसकी सूरत देखन से मालूम होता था कि यह मल्लाह है। उसने इनसे पूछा, आप क्या चाहते हैं ? नरेन्द्र - क्या यह नाव किराये पर हो सकती है? मल्लाह- हा हाँ आप जरूर इसे किराये पर ले सकते हैं। नरेन्द्र - इसका मालिक कौन है ? यह सुन कर मल्लाह ने अन्दर की तरफ मुंह कर बिहारी, विहारी' करके आवाज दी। आवाज के साथ ही एक दूसरे मल्लाह ने बाहर निकल कर पूछा "क्या है?' पहिला मल्लाह - सर्कार नाव किराये किया चाहते हैं। दूसरा- (नरेन्द्र की तरफ देख कर ) कुछ माल लादा जायमा ? नरेन्द्र - नहीं हम दो तीन आदमी है जो इस पर सवार होकर सफर किया चाहते हैं। मल्लाह- कहा तक जाइयेगा? नरेन्द्र - हम लोग पटने तक जायेंगे। मल्लाह - तो आपके और साथी सब कहा है? नरेन्द्र - ( हाथ का इशारा करके ) उस तरफ थोड़ी दूर पर हैं, तुम बातचीत कर लो तो बुला लावें । मल्लाह - सवारी जनानी भी है या सब मर्दाने ही हैं २ नरेन्द्र--हॉजनानी भी है। मल्लाह'- अच्छा आइये यहा आकर भीतर से नाव को देख लीजिए।जनानी सवारी के सुबीते की भी जगह इसमें बनी हुई है। यह कह मल्लाह न एक काठ की सीदी नीचे गिरा दी और नरेन्दसिह का हाथ पकड़ कर ऊपर चढा लिया तब अपने देवकीनन्दन खत्री समग्र ११२४ ra