पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१२६

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GY - दो दिन तक दोनों जगह जगह पर टिकते और दम लते बराबर चले गए तीसरे दिन यदानों एक छोटी सी नदी के किनारे पहुंचे जिसके दोनों तरफ घना जगल और किनारे पर बड़े बड़े साखू के दरख्त थे। यहाँ पर यहादुरसिह ने अपना घोडा रोका और भालासिंह से कहा- "बस अब हम लोगों को इससे आगे न बढ़ना चाहिये । नरेन्द्र की जमा पूंजी इसी जगह से हाथ लगेगी।" भोला - कहाँ पर है ? बहादुर -- पहिले यह बताआ कि जमीन कैसे खोदागे? काई फरसा या कुदाली है । भोला – फरसा या कुदाली तो साथ लाये नहीं । - यहादुर फिर आये क्या करने ? यहा ता आठ नौ पुरसा जमीन खोदनी पडगी। भोला - वहाँ कहते तो हम यह भी साथ ले लिये होते ! बलदुर - क्या मैने नहीं कहा था कि जमीन खाद के दौलत निकालनी पड़गी? भोला- हाँ हो कहा ता था. खैर अब क्या किया जाय ? बहादुर – किया क्या जाय बस इस जगह ( हाथ से बता कर ) खोदा। भाला -- यहाँ से शहर भी ता पास ही मालूम होता है कहा तो जाकर कुदाली ले आऊँ? बहादुर - अच्छा जाओ ले आओ। मगर सुनो तो क्या मुझे अकेल छोड जाआगे? भोला- जैसा कहा। पाठक यहादुरसिह इस दुष्ट भोलासिह को धोखा द यहा तक ताल आये। अब ये दोनों अपनी अपनी चालाकी में लगे है। भोलासिह सोचता है कि कहीं ऐसा न हो कि बहादुरसिह घपला देकर चलता बन । पीछे हम किसी लायक न रहेग, हमारी मडली वाले भी वईमान समझकर अपने साथ न मिलावेगा मगर लालच न उस पूरे तोर सफसा लिया था और वह कुछ वेवकूफ भी था। उधर यहादुरसिह सोचते थे कि इस नालायक का यहाँ तक तो ले आय और हम हर तरह से भाग के जानी सकत है मगर असल काम तो उन दाना औरतों को इन हरामजादों की कैद से छुझाना है। अगर यह लौट कर फिर वहाँ चला जायेगा जहाँ से आया है तो मुश्किल होगी अपने साथियों से कह सुन कर उन औरतों को किसी दूसरी जगह हटवा देगा तो बड़ा तरवुद होगा जिस तरह हो इस यहीं गिरफ्तार करना चाहिए। लेकिन असल में बादुरसिह इसे अपने करने में ले ही आय क्योंकि इस वक्त जहा दानों खड है यह वह जगह है जहॉ नरेन्द्र के छोटे भाई घोडे पर सवार होकर रोज आया करते है और यहा से नरेन्द्र का मकान भी बहुत करीब है। . यहादुरसिह और भालासिह खड यातचीत कर ही रहे थे कि सामने से एक सवार हाथ में नजा लिए आता हुआ दिखाई पड़ा जा वहादुरसिह को देख तेजी के साथ लपक कर इनके पास पहुंचा और बोला, "बहादुर !तूको चला गया था? और यहाँ खडा क्या कर रहा है ! कुछ भाई नरेन्द्र का पता भी लगा? यही नरेन्द्रसिह के छोट माई जगजीतसिंह है। उन इनकी अभी अट्ठारह वर्ष की है। खूबसूरत और नाजुक हाने पर भी यह अपने शरीर को बहुत मजबूत बनाये रहते है । घोडे पर चढन हो चलान और शिकार खेलने का शौक लड़कपन ही से है। इसके सिवाय हर तरह की विद्या में अपने को निपुण बनाये रहने का भी यहुत ज्यादा ध्यान रहता है। यह शौकीन भी बहुत थे मगर जब स नरन्द्रसिह चले गये है तब से इनका अपन शरीर का ध्यान ही जाता रहा। अच्छे अच्छे कपड़े पहिरने शिकार खेलन घूमन फिरने बल्कि दुनिया से भी य उदास हा गय दिन रात यही सोच है कि भाई नरेन्द्र मुझे क्यों छोड़ गये । क्योंकि इनको और नरेन्द्र की मुहब्बत को जो कोई देखता वह यही कहता कि इससे बढ के भाइयों का प्रेम दुनिया में न होगा। इस समय वह घोडे पर सवार हवा खान या शिकार खेलने नहीं आये है। यहाँ से पास ही एक बनदेवी का स्थान है उनके नित्य दर्शन का इन्होंने प्रण वाँधा हुआ है। कुछ दिन रहे घोड़े पर सवार हा अपने घर से दो कोस चल कर राज वनदेवी का दर्शन करने आत है। जब तक घर रहेंगे नेम न टूटेगा, चाई पानी बरसे. पत्थर पड़ आफत आवे मगर यह विना दर्शन किये न रहेंग। यही सबब है कि उनसे मुलाकात होने की उम्मीद में बहादुरसिह उनके रास्ते पर आ जमा है। बहादुरसिह ने कहा हा हा पता जानते है { भाला की तरफ हाथ से इशारा करके ) मगर पहिल इस दुष्ट को पकडो जिसकी बदोलत नरेन्द्रसिह सकट में पडे है।" यहादुर की बात सुनते ही वह नया बहादुरभोलासिह की ओर झुका । अब भालासिह को मालूम हो गया कि यहादुरसिह उसके साथ चालाकी खेल गये धोखा देकर यहां तक ले आये और अब फसाया चाहते है। उनको अपनी तरफ लपकते देख भालासिह ने झट म्यान स तलवार खेंच ली और इस जोर से उनके ऊपर चलाई कि अगर वह चालाकी से पैतरा बदल कर हट न जाते तो साफ दो टुकडे नजर आते।मगर इसक बाद उन्होंने भी अपने नजे को घुमा कर बडी खूबसूरती के साथ एक बार भोलसिंह की टाग पर किया जिसके लगने से वह खडा न रह सका और फौरन जमीन पर गिर पडा। जमीन पर गिरते ही उसे कैद कर लिया और कमरबन्द खोल उसके हाथ पैराकम्हएक पेड के साथ बाँध दिया। इसक बाद बहादुरसिह से बोले "हॉ अब कहा क्या हाल है ! हमारे नरेन्द्र भैया कहाँ है और तुम उनसे देवकीनन्दन खत्री समग्र ११२८