पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१२७

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कैसे मिले? वहादुरसिह ने कहा "नरेन्द्रसिह के चले जाने के बाद उदास होकर बिना सर्कार से कहे मैं भी उनकी खोज में निकला। कई दिन तक खोजता फिरता एक नदी के किनारे पहुँचा। दूर से एक छोटी सी किरती आती दिखाई पड़ी. डर के मार में एक घने पेड़ पर चढ गया जो उसी नदी के किनारे पर था। जब वह किश्ती पास आई तब मालूम हुआ कि हमारे चॉके नरन्द्रसिह दो खूबसूरत और जवान औरतों को जो सिर से पैर तक जडाऊ जेवरों से लदी हुई थी साथ बैठाये हॅसते बोलते चले आ रहे हैं। देखते ही मेरी तबीयत खुश हो गई मैंने पुकारा, जब वह किनारे पर आये मुलाकात हुई मैं खुशी खुशी उनके साथ हो लिया !" सवैरा होन पर किश्ती किनारे लगाई गई। में भग पीसने लगा उन दोनों औरतों को मेरे सपुर्द कर नरेन्द्रसिह दूसरी नाव किराये करने चले गये जो बडी थी और वहा से दिखाई भी दे रही थी " नरेन्द्रसिह के आन में बहुत दर हुई इधर कई डाकुओं ने आकर हम लोगों को गिरफ्तार कर लिया और हमारी आँखों पर पट्टी बाँध अपने घर ले गये। यह तो मालूम नहीं कि उन दोनों औरतों को कहा कैद किया और उन पर क्या गुजरी हॉ मुझे एक जल खाने में कैद कर दिया और पहरे पर इस नालायक को वैठा दिया। यह नरेन्द्रसिह की दौलत लेने मेरे साथ आया है पूछो इस हरामजादे से कि इससे मुझसे कब की मुहष्यत थी जो बेचारे नरेन्द्रसिह की दौलत मैं इसे दे दता । + था। इसके बाद मालासिह को धोखा देने का हाल बहादुरसिह ने सुनाया जिसे सुन जगजीतसिह बहुत ही हॅसे। भोलासिह पेड़ के साथ बँधा हुआ सुन सुन कर चिढता और ही जी में गालियाँ जगजीतसिह ने भालासिह से पूछा तुम कौन हा तुम्हारे सगी साथी कहॉ रहते हैं और उन दोनों औरतों को कहाँ कैद कर रक्खा है? मगर सिवाय चुप रहने के भोलासिह एक बात भी न बोला, एक दम गूगा बन बैठा। पूछते पूछते थक गये मगर अपनी बात का कुछ भी जवाब न पाया बल्कि गुस्स में आकर भोलासिह को कई लात भी लगाये मगर उसका भी कोई नतीजा न निकला । आखिर लाचार होकर वहादुर से बोले- 'तुम इसी जगह ठहरा मै इस नालायक को ले जाकर कैदखाने में डाल आता हूँ और खान पीने के सामान के साथ दो चार साथियों को भी ले आता हूँ तव नरेन्द्र भाई का पता लगाने और उन दोनों औरतों को डाकुओं की कैद से छुडाने के लिये चलूंगा।" वहादुरसिह ने कहा बहुत अच्छा ।' शाम होते होते अपने दो तीन साथियों के साथ कुछ खाने पीने का सामान लिए और सफर की तैयारी किये हुए जगजीतसिह फिर आ पहुचे। वहादुरसिह भी भूख से दुखी हो रहा था। उसे भोजन कराया इसके बाद उससे कहा 'तुम अब घर जाओ और हम लोग नरेन्द्रसिह की खोज में जाते है क्योंकि तुम् न तो हम लोगों के साथ ही चल सकते हो और न लडने भिडने में ही साथ दे सकते हो। बहादुरसिह ने कहा "इसमें काई शक नहीं है कि मैं आपके बराबर नहीं चल सकता और लडाई से तो सौ कोस भागता हूँमगर नरेन्द्रसिह को खोकर मुझसे घर पर न बैठा जायगा तुम लोग अपना काम करो मैं भी चुपचाप इधर उधर घूम कर उन्हें खोजूंगा। उन्होंने जवाब दिया, 'खैर जो मुनासिब मालूम हो करो मगर मुझे ठीक ठीक पता दो कि उन्हें तुमने कहाँ छोडा और तुम कहाँ कैद रहे? वहादुरसिह जगजीतसिह को पूरा पूरा पता बता कर वहाँ से दूसरी तरफ रवाना हो गया । सातवां बयान आधी रात का वक्त है। चाँदनी खूब खिली हुई है। इस खूबसूरत और ऊँचे मकान के पिछवाडे वाली दीवार पर चाँदनी पडने से साफ मालूम होता है कि इसमें तीन बडी बडी दरीचिया है और बीच वाली दरीची (खिडकी) में दो औरतें बैठी आपुस में बातें कर रही है। नीचे की तरफ एक पाईबाग हे जिसमें कि खुशबूदार फूलों की महक ठण्डी ठण्डी हवा के साथ मिल कर इस दरीची में आ रही है जहाँ वे औरतें बैठी बातें करती हुई घडी घडी उस बाग की तरफ देखती और ऊँची सास लेती हैं। इन दोनों में से एक की उम्र तेरह चौदह वर्ष के लगभग होगी। चाँद सा गोरा मुख देखने से यही मालूम होता था कि नस मामली चॉद के अलावे यह दूसरा चाँद इस मकान की दरीची से निकला चाहता है। दर्वाजे के साथ ढासना लगाये अपना दाहिना हाथ दरीची के बाहर निकाले है जिसमें अनमोल हीरे की जडाऊ चूड़ियाँ और अगूठियों पड़ी हुई है। वात बात में ऊँची सॉस लेती और ऑसू टपका टपका कर अपने ठीक सामने की तरफ बैठी हुई उस दूसरी औरत से बातें कर रही हैं जो खूबसूरती और गहने कपड़ के लेहाज स इसकी प्यारी सखी मालूम हाती है। नरेन्द्र मोहिनी . ११२९