पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१३२

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दि दोनों से तरह तरह की बातें पूछने लगे। कोई कहता है, 'क्यों साहब, आप किसके यहाँजायेंगे? हम लोग गयावाल के नौकर हैं। यहाँ आपका पण्डा कौन है? कोई कहता है "लालाजी भैया के हम आदमी है, हमारे साथ चलिये। कोई आयुस में चिल्ला कर कहता है- 'अजी यह पुरविये हैं हमारे जजमान है चलो हटो, तुम झूठे बखेडा मचाये हुए हो। कोई इन दोनों के पास आ के कहता है कि आप मेरे यहाँ चलिये, वहा टिकने का बड़ा आराम है और हम यात्रा पिण्डा भी बहुत अच्छी तरह करा देंगे, आइये यह रामसिला है, पहिले इसी का दर्शन करना चाहिए नहीं तो यात्रा सफल न होगी। कोई कहता है, "अभी तो यह आ ही लड़के है पिण्डा क्या देंगे। इसी तरह उन लोगों ने चारों तरफ से रम्भा और तारा को घेर लिया और अपनी अपनीयकवाद करने लगे। तराने उन सभों से कहा कि हम लोग यात्री नहीं है सौदागर के लडके हैं। मगर वे लोग कब मानने वाले थे. इन दोनों को यहा तक तग किया कि दोनों की आँखों में आसू डबडया आये और तारा ने झुझला कर कहा "तुम लोग बडे शैतान ई बात नहीं मानते और बेफायदे,तग कर रहे हो। हम लोग मुसलमान होकर पिण्डा सिण्डा क्यों देने लगे? मुसलमान का नाम सुनकर वे लोग पीछे हटे और बेहूदी बातों के साथ आवाजें कसने लगे ये दोनों आगे दी तब तारा ने कहा 'देखो बहिन ये लोग यात्रियों को कितना दिक्क करते है। अगर हम लोग अपने को मुसलमान नबताते तो इन लोगों के हाथ से बहुत तग होते तिस पर भी देखो अब ये लोग गालियों देने पर उतारू हुए है।' रम्भा ने कहा चुपचाप चली चला, नालायकों को वकने पो। अब मालूम हुआ कि यह गयाजी है, ताव नहीं कि यहा नरेंद्रसिंह से मुलाकात हो जाय। इतना कह रम्भा ने फिर कर देखा तो उन्ही शैतानों में से दो आदमियों को पीछे पीछे आते पाया । यह देख रम्भा बहुत घबडाई और तारा से बोली, अभी दुष्ट लोग पीछा किये चले ही आरहे है !बडी मुश्किल हुई। इन लोगों के मारे कहीं यह भेद न खुल जाय कि हम लोग औरत है और मर्दानी पोशाक केल अपने को छिपाने के लिए पहिरे हैं। अगर ऐसा हुआ तो इज्जत पर आ बनेगी और अपने हाथों अपना गला काटना पडेगा। तारा बोली "खैर कदम बढाये चलो। राम करे सो होय !कहीं सराय में चल कर डेरा डालेंगे, फिर देखा जायगा। पहर भर दिन बाकी था जब ये दोनों शहर में घुस कर खोजती फिरती एक सराय के दर्वाजे पर पहुंचीं ! भठियारी आगे आकर इन लोगों को खतिरदारी के साथ सराय में ले गई, एक अच्छी साफ कोठरी इन दोनों को रहने के लिए दी और चारपाई तथा बिछौने का इन्तजाम करके पूछा अगर कुछ बाजार से लाने की जरूरत हो तो ले आऊँ ? 'तारा ने कहा नहीं इस वक्त किसी चीज की जरूरत नहीं है। यह सुन भठियारी वहाँ से हट दूसरे मुसाफिरों की टोह में सराय से बाहर चली गई मगर इन दोनों के पास कोई असवाब न देख कर हैरान थी। गयावाल पण्डे के दोनों आदमी जो रम्भा और तठा के पीछे पीछे आ रहे थे इन दोनों को सराय के अन्दर जाते देख बाहर फाटक पर अटक गये। जब भठियारी इन दोनों को डेरा दिलवा कर फिर सराय के फाटक पर गई तब वे दोनों आदमी भठियारी से धीरे धीरे कुछ बातचीत करने लगे इसके बाद अपने कमर से कुछ निकाल कर भठियारी के हाथ में दे दिया जिसे लेकर उसने कहा 'आप बेपरवाह रहिये, मैं सब बन्दोबस्त कर दूंगी।" नौवां बयान रम्भा और तारा ने वह रात उदासी और तकलीफ के साथ बिताई। सवेरा होते ही बुढिया भठियारी उन दोनों के पास गई और सामने बैठ कर बातचीत करने लगी- भदियारी --कहिये रात को किसी तरह की तकलीफ ! आप लोगों को नहीं हुई? तारा- नहीं, हमलोग बड़े आराम से रहे। भठि-यहाँ आराम तो हर तरह का है मगर आपको तकलीफ जरूर भई होगी क्योंकि मर्द का भेष बना कर अपने को छिपाने के तरवुद में आप लोगों ने कुछ खान पीने का भी इन्तजाम नहीं किया न बाजार ही से जाकर कुछ सौदा लाये। तारा-(ताज्जुब और घबराहट से रम्भा की तरफ देख कर लो सुनो । बीवी भठियारी को हम लोगों पर कुछ और ही शक है ॥ भठि-(हॅस कर ) अभी आप इस लायक नहीं हुई कि मुझे धोखा दें। इसी शैतानी में मैने जन्म बिताया अपने लडकपन और जवानी के समय में मैंने कैसे कैसे ढग रचे कि अच्छे अच्छे चालाकों की नानी मर गई अभी आप लोगों की उम्र ही क्या है? तारा डर कर जी में सोचने लगी, "यह बुदिया तो हम लोगों को पहिचान गई. कहीं ऐसा न हो कि कोई आफत लावे ! यह खयाल करके अपने कमर से एक अशर्फी निकाल उस भठियारी के हाथ में रख कर बोली. 'भाई तुम्हें इन सब • बातों से क्या मतलब है हम लोगकिसी तरह मुसीबत के दिन काट रहे है। दोचार रोज इस शहर में भी रह कर और कहीं का रास्ता लेंगे। इज्जतदार है, आवारे और बदमाश नहीं है। तुमको चाहिए हर तरह से हमको छिपाओ और हमारी देवकीनन्दन खत्री समग्र ११३४