पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१३३

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Com इज्जत का ध्यान रक्यो बुढिया अशर्फी पाकर खुश हो गई और बोली नहीं नहीं भला यह कैसे हो सकता है कि हमारे सबब से आप लागों का किसी तरह की तकलीफ हा । क्या मजाल है कि किसी का आपका भेद मालूम हो जाय - इतनी बातें हो ही रही थीं कि सराय के अन्दर घाड पर चढा हुआ एक लडका वीस बाईस वर्ष के सिन का खूबसूरत । और वेशकीमत भडकीली पोशाक पहिर आता दिखाई पड़ा जिसे देखते ही भठियारी उठ खडी हुई। रम्भा और तारा की निगाह मी उस पर पड़ी। दखा कि हाथ में लम्बे-लम्ब लट्ठ लिए कई आदमी भी उसके साथ है जिसमें वे दोनों आदमी भी है जो कल उन दोनों के पौछ-पीछ आये थ और भटियारी स बातचीत करके उसके हाथ में कुछ दे गये थे। यह देखते ही रम्भा और तारा का माथा ठनका।तरह तरह के शक उनक दिल में पैदा होने और डर क मारे कलेजा कॉपने लगा । वह सवार बराबर वहाँ तक चला आया जहाँ रम्भा और तारा कोठरी के दरवाजे पर बैठी थीं। वह सवार इन दोनों की तरफ गौर से देख कर मठियारी से वोला मुझे टिकने के लिए कोई जगह दो। भठि - आपके रहने लायक जगह इस सराय में कहा? चलिए कोई उम्दा निराला मकान आपके रहने के लिए दूं। भठियारी उनको साथ ले सराय के बाहर चली गई और घटे भर तक न आई। जब भठियारी फिर सराय में लौटी तो सीधे रम्मा और तारा के पास चली गई और बैठ कर कहने लगी यह बहुत बडे भादमी है, साल में दो तीन दफ हमारे यहा आकर टिका करते है अमीरों और रईसों के टिकने के लिए मेन कई मकान भी बनवा रक्खे हैं जिनमें सजा हुआ कमरा ओर हर तरह का सामान भी दुरुस्त रहता है उन्हीं मकानों में से किसी में इन्हें टिकाया करती हूँ। यह जब तक रहते है एक अशर्फी राज देते हैं। तुम भी किसी आली खानदान की लडकी मालूम होती हा अगर कहो तो तुम्हें भी एक अला मकान टिकने के लिये दूं और बाजार से सौदा वगैरह लाने के लिए किसी हिन्दू मपूरनी का भी बन्दोबस्त कर दूं क्योंकि इस जगह आप लोगों को हर तरह की तकलीफ होगी और भेद खुलने का खौफ भी बराबर बनारहेगा. आखिर सवेरे सवेरे आपने मुझे एक अशर्फी दी है उसी की बदौलत एक और अमीर का डेरा मेरे यहाँ आया, सो मुझे भी चाहिए कि जहाँ तक बने आप लोगों के आराम के साथ रहने का बदोबस्त करूँ। तारा ने कहा इस साहब के पियादों में कई आदमी ऐसे हैं जिन्हें में पहिचानती हूँ क्योंकि फल शहर के बाहर पहाडी सं यहा तक वे लोग हमार पीछे पीछे आये थे। भडि-हॉ,व गयावालपण्डों के नौकर है उनका काम ही है कि शहर के बाहर की उस पहाड़ी के नीचे जिसका नाम रामसिला है बैठे रहते हैं और जब कोई मुसाफिर आता है तब उसे अपने मालिक का जजमान बनाने के लिए कोशिश करते हैं। इन्हें अपना जजमान बना आज इन्हीं के साथ वे लोग आये होगे जिन्हें कल आपने देखा था। तारा - खैर अगर हम लोगों के लायक कोई उम्दा मकान हो तो दो। यह सुन कर भठियारी वहा से उठ सराय के बाहर चली गई और घडी भर के बाद फिर लौट कर तारा स बोली 'चलिए सब दुरूस्त कर आई हूँ तारा और रम्भा को साथ ले भठियारी सराय के बाहर हुई और थोड़ी दूर जाकर एक सुनसान गली में घुसी। कई मकान आगे बढ वह एक छोटे से मकान के बन्द दवाजे पर खड़ी हो गई और चाभी से उसका ताला खोला जो उसके आचल के साथ बंधी हुई थी। दोनों को लिए हुए मकान के अन्दर घुस गई।यह मकान अन्दर से भी बहुत साफ और सुथरा था कुल चीजें जरूरत की इसमें मौजूद थीं एक कमरे में कई शीशे लगे हुए थ जमीन पर फर्श और उसके ऊपर दो चारपाइयाँ बिछी हुई थीं जिनके बिछौने की चादर सब्ज रेशम की डोरियों से खूब कसी हुई थीं। रम्भा और तारा को ज्यादे चीजों की जरूरत न थी मगर इस मकान को देख कर खुश हो गई। तारा ने भठियारी से कहा 'मकान तो तुमने बहुत अच्छा दिया, अब एक हिन्दू मजदूरनी का भी वन्दोवस्त कर दो तो पानी वगैरह का भी इन्तजाम हो जाय और वह दो चार जरूरी बर्तन भी बाजार से खरीद कर ले आवे। मठियारी दौडी हुई गई और थोड़ी ही दर में एक हिन्दू मजदूरनी भी ले आई जो गले में तुलसी की कण्ठी पहिरे हुए थी। भठियारी चली गई। जिन जिन चीजों की जरूरत थी सब मजदूरनी की मार्फत बाजार से मगवा ली गई।इस मकान में कुऑ न था इसलिए पानी भी बाहर ही से मगवाना पड़ा। दोनों ने स्नान किया इसके बाद खाना बना कर भोजन करने के बाद मकान का दर्वाजा बन्द कर पलग पर जा लेटी। नींद आ गई। जब थोडा दिन बाकी रह गया तब उठी। रम्भा ने तारा से कहा 'बहिन आज रात को मर्दाने भेष में घूम कर नरेन्द्रसिह की टोह लगानी चाहिए। तारा ने कहा जरूर आज रात को हम लोग घूमेंगे। हाथ मुँह धोने के लिए पानी की जरूरत पड़ी, मजदूरनी को पुकारा वह मौजूद न थी। तारा ने रम्भा से कहा, 'देखो हमने उस नालायक से कह दिया था कि बिना पूछे बाहर न जाइयो मगर वह चली गई. मै पहिले जा कर दर्वाजा बन्द कर आऊँ। नरेन्द्र मोहिनी ११३५