पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१३४

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R ' यह कह तारा नीचे उतरी दर्वाजा खुला हुआ था। दर्वाज के बाहर लट्ठ लिए हुए कई आदमी दिखाई पडे जिनमें व दोनों भी थे जो रामसिला पहाडी से रम्भा और तारा के पीछे पीछे आये थे और दूसरी दफे सवार के साथ सराय में दिखाई पडे थे। तारा इन सभों को दरवाजे पर देख कर घबडा गई और कई तरह की बातें सोचने लगी। अन्दर स दरवाजा बन्द करना चाहा मगर न हो सका क्योंकि वह जजीर टूटी हुई थी जिससे दरवाजा पहिली मत बन्द किया था। अब वह और घवडाई इतन में दर्वाज के बाहर बैठे हुए कई आदमियों में से एक ने कुछ हॅस कर कहा 'अब यह दरवाजा भीतर से धन्द/ नहीं हो सकता। यह सुन तारा के होश जाते रहे । दौडी हुई ऊपर आई और रम्भा से बोली, 'लो बहिन, गजब हो गया । इज्जत बचने की कोई सूरत नजर नहीं आती। हरामजादी भठियारी ने पूरा धोखा दिया। अब हम लोगों को चाहिए कि अपने को कैदी समझें और जान से हाथ धो बैठं ! रम्भा ने घबडा कर पूछा क्यों क्यों क्या हुआ? इसके जवाब में घबडाई हुई तारा ने जल्दी से सब हाल कहा जिसे सुन कर रम्भा का कलजा धक-धक कॉपने लगा और दोनों आँखों से आसुओं की बूंदे टपाटप गिरने लगी। तराने इस पर कहा बहिन अव रोने से कोई काम न चलगा जान बचाने की कोई फिक्र करनी चाहिए। रम्भा-जान बचाने की फिक्र क्या की जाय? तारा- जहाँ तक हो खूब चिल्लाना चाहिए जिसमें इधर उधर से आदमी इकट्ठे हो जाय और हम लोगों को अपना दुख कहने का मौका मिले। रम्भा - यह मकान ऐसी गली में है कि सड़क तक आवाज भी न जायगी। तारा - तो भी पडोस के कुछ आदमी तो इकट्ठे हो ही जायंगे। रम्भा- दजा तो इस लायक उन्होंने नहीं रक्खा कि चन्द किया जाय मगर सीढी की किवाडियों का या विगडा है। उन्हें तो चन्द कर दो फिर रोन चिल्लाने की सोचना। 'हाँ यह तो मुझे याद हीन रहा।" यह कहती हुई तारा दौड़ गई और सीढ़ी के किवाड़खूब मजबूती से बन्द कर आई। इतने ही में धमधमाते हुए कई आदमी नीचे के चौक ( आँगन) में आ पहुँचे। तारा ने सौंक कर देखा कि वही गयावाल पण्डा जिसे सराय में देखा था कई और आदमियों को लिए जिनमें वे दोनों भी थे जिन्होंने रामसिला पहाड़ी से रम्भा और तारा का पीछा किया था आ पहुंचा है और समों को नीचे छोड आप ऊपर चला आ रहा है। सीढी के किवाड़ बन्द थे इसलिए वह यकायक इन लोगों के पास न पहुँच सका और जजीर खोलने के लिए आरजू मिन्नत करने लगा। यह देख रम्भा और द्वारा मकान की छत पर चढ़ गई। इस मकान के साथ ही सटा हुआ एक दूसरा मकान देखा जिसकी छत इससे नीची थी। ये दोनों उसी मकान में कूद पड़ीं। दसवां बयान दोपहर का समय है। एक छोटे से जगल में घने पड के नीचे आठ दस आदमी बैठे आपुस में कुछ बातचीत कर रहे हैं। ये सब कौन है इसके लिए साफ ही कह देना ठीक है कि ये लोग वे ही मल्लाह है जिनसे नरेन्द्रसिह से उस समय बातचीत हुई थी जय वे माहिनी गुलाब और बहादुरसिंह को छोटी किश्ती के पास छोड बडी नाव किराये करने गये थे।, इन लोगों में एक बहुत बुडदा है जिसे नरेन्द्रसिंह ने पहिले नहीं देखा था शायद यह उन सभी का सरदार हो। एक - बडी भूल तो यह हो गई कि नरेन्द्रसिह को न पकड लिया। दूसरा- हाँ अगर उनको भी गिरफ्तार कर लेते तो बस चारों ही को ठिकाने पहुंचा देते फिर कोई पूछने या पत्ता लगाने वाला भी न रहता अब तो एक चिन्ता-सी लगी रह गई। बूढा- अजी ईश्वर ने अच्छा किया जो उस समय तुम लोगों को नरेन्द्रसिह के पकड़ने का हौसला न दिया नहीं तो ऐसी हालत में जब कि हमारे साथी को भुलावा देकर बहादुरसिह ले गया है बड़ी मुश्किल होती। हम लोगों का खौफ तो इस समय भी बहुत कुछ है क्योंकि नरेन्दसिह का बाप बडा ही जालिम है भोला और यहादुरसिह जरूर उससे जाकर सब हाल कहेंगे और हम लोगों का पता देंगे। चौथा - इसमें तो कुछ भी शक नहीं। फिर क्या करना चाहिए? पाँचवा -हम लोगों का तो जमा पूजी से मतलव था, सो दोनों औरतों के गहने उतार ही लिये, इतनी भारी रकम जन्म से आज तक हाथ न लगी थी अब उन दोनों को जमीन के अन्दर पहुँचाइये बस हो गया। बूढा- न मालूम तुम लोगों की बुद्धि कहाँ चरने चली गई है। दोनों औरतों को मार कर क्या अपनी जान बचा लोगे? नरेन्द्रसिंह तुम लोगों को छोड देगा? नहीं जानते कि उसके यहाँ कैसे कैसे वेढव पता लगाने वाले जासूस मौजूद है ? नरन्द्रसिंह को उतने गहनों की परवाह नहीं है जो हम लोगों ने उन दानों औरतों के उतार लिए है मगर उनकी जानों पर आफत आते ही हम लोगों की जड बुनियाद तक बाकी न रहेगी इसे खूब समझ लेना । देवकीनन्दन खत्री समग्र ११३६