पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१३५

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पहिला-तब फिर क्या किया जाय? बूढा-- बस इस वक्त यहीमुनासिव है कि वे दोनों औरतें छोड दी जाये घूमती फिरती आप ही नरेन्द्रसिंह को मिल जायगी उनके मिलने पर फिर वे हम लोगों की इतनी खोज भी न करेंगे। इसके साथ ही वह मकान भी हम लोगों को खाली कर देना चाहिए उसे अब उजड़ा हुआ समझो। तीसरा - हम लोग तो हुक्म के मुताबिक काम करेगें, नफा नुकसान आप समझ लीजिए। बूढा-हम खूब सोच चुक इस काम में अव देर करना अच्छा नहीं है। इसके बाद सब उठ कर एक तरफ को रवाना ग्यारहवां बयान मल्लाहों का पता न लगन से मोहिनी और गुलाब के गम में नरन्द्रसिह बेहोश होकर गिर पडे।घण्टे भर के बाद उन्हें होश आया। उठ कर तलवार म्यान में की और नाव क नीचे उतरे । मोहिनी गुलाब और बहादुरसिंह के लिए तबीयत बचैन थी वहा से धीरे धीरे एक तरफ का रवाना हुए मगर यह नहीं जानते थे कि किस तरफ जा रहे है और आगे जगल मिलेगा या शहर। जगली फलों पर गुजारा करते हुए कई दिनों के बाद वे एक घने जगल के किनारे पहुचे। विना कुछ खयाल किए यह उस जगल में घुसे। जैसे आगे जाते जगल रमणीक और सुहावना मिलता जाता था यहा तक कि शाम होते होते वे एक ठिकाने जा पहुंचे जहाँ के जगल को लम्बा चौडा बाग ही कहना मुनासिब है। साखू आसन तेंद पारजात वगैरह खुदरी (आप से आप उगने वाले) दरख्तों के अलाव कायदे से हाथ क लगाए हुए खुशबूदार फूलों के पेड भी दिखाई पड़े और जमीन भी वहाँ की साफ और सुथरी नजर आई। दाहिनी तरफ कुछ दूर पर पेडों की झिलमिलाहट में एक सफेद इभारत, मो दिखाई पड़ी। इस जगह पहुँच कर हमारे नरन्द्रसिह अड गए और कुछ गौर करने लग! इतने में ही इनकी निगाह बाई तरफ जा पड़ी। देखा कि कुछ दूर पर कई कमसिन औरतें खूबसूरत लियास पहिने अठखेलियों करती इधर उधर टहल रही है। कनी धीरे धीर चलती है कभी दौड़ कर एक दूसरे का पकड़ती या धक्का देती है कभी कोई सीटी या ताली बजा कर खूब जोर से हस दती हैं। ऐस दुख की अवस्था में भी नरेन्द्रसिह का जी उस तरफ जा फंसा ! गौर के साथ देखने लगे, चाहा कि उधर न जाय मगर जी न माना, धीरे धीरे उसी तरफ बढे । जब उन लोगों के पास पहुंचे तो रुक गए। इतने में उसमें से कई औरतों की निगाह नरेन्दसिह पर जा पडी। सकपका कर इनकी तरफ देखने लगी यहा तक कि कुछ औरतों ने इन्हें ताज्जुब की निगाह से देखा और आपुस में इशारे स बातचीत करने लगी जिससे नरेन्द्रसिह को भी मालूम हो गया कि उनके आन पर सभों का आश्चर्य है। इनसमों में से एक औरत चाल दाल पोशाक जेवर और खूबसूरती के हिसाब से सभों में सर्दार मालूम होती थी। यों तो सभी चचल और खूबसूरत थीं मगर उसके मुकाबिले की एक न थी जिसने उदास और गमगीन नरेन्द्रसिंह का दिल भी अपनी तरफ खेच लिया क्योंकि नरेन्दसिंह को यह घोखा हुआ कि यह मोहिनी है। माहिनी का ख्याल यधते ही नरेन्द्रसिह उसकी तरफ लपके जिससे उन औरतों को और भी आश्चर्य हुआ? इन्होंने जल्दी से पास पहुच कर पूछा "क्यों मोहिनी तुम यहाँ कैसे पहुंची ? मैं कब से तुम्हारी खोज में परेशान हो रहा हूँ ! उस औरत ने इनकी बात का कोई जवाब न दिया और अपनी हमजोलियों की तरफ देख कर सिर नीचा कर लिया। नरेन्द्रसिह ने फिर पूछा क्यों चुप क्यों हो? वह फिर भी कुछ न वाली पर ऑखों से आँसू की बूंदें टपाटप गिराने लगी। ऐसी दशा देख नरेन्द्रसिह और भी बेचैन हो गये और बोले, 'क्या सबब है जो तुम अपना हाल कुछ नहीं कहती और से रही हो !तुम्हारी वह सूरत नहीं रही, चेहरे में भी फर्क पड गया मालूम होता है वर्षायाद मुलाकात हुई हो, मारे गम के तुम्हारी जदानी भी तुमसे रज हाने लगी मैं तो समझता था मुझसे मिल कर तुम खुश होगी मगर तुम्हें रोते देख जी और थेचैन हो रहा है। कहा गुलाव तो अच्छी तरह है, वह तुम लोगों के साथ दिखाई नहीं देती कहाँ है ? गुलाब का नाम सुन कर वह और भी रोने लगी बल्कि उसकी सहेलियों की भी ऑखें डबडया आई जिसे देख नरेन्द्रसिह को विश्वास हो गया कि जरूर गुलाब किसी आफत में फंस गई या जान ही से गुजर गई। नरेन्द्रसिह के कई मर्तबे यूछने और जिद्द करने पर वह अपने ऑचल से ऑसू पोंछ कर बोली - सब कुशल है गुलाब भी अच्छी तरह से है बाकी हाल में इस समय न कहूँगी। जल्दी क्या है आप भी थके मॉदे आय है. चलिए मकान में आराम कीजिए जो कुछ कहना है निश्चिन्ती में कहूँगी लेकिन पहिले आप जरा देर इसी जगह ठहरिए मैं अपनी सखियों को एक काम सौप लूं लव आपर्क साथ चलूँ। इतना कह नरेन्द्रसिह का उसी जगह छाड इशारे से अपनी सखियों को बुला कर एक किनारे चली गई और आधी नरेन्द्र मोहिनी ११३७ ७२