पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१३७

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! दूसरी- उनको यह पूरा विश्वास हो गया कि मोहिनी तुम ही हो। तीसरी- इनकी शक्ल सूरत भी मोहिनी की सी है, फर्क इतना ही है कि उससे यह उम्र में सात वर्ष बडी है। मोहिनी - अब मुझे यह फिक्र है कि कल अपना हाल क्या कहूँगी? एक - पेड़ से लटकी हुई मोहिनी और जमीन में गडी हुई गुलाब की जान जरूर इन्होंने बचाई है या इनस उन दोनों की किसी तरह मुलाकात हो गई है। दूसरी- जरूर एसा ही हुआ है लेकिन उससे क्या जो जी में आवे बना कर अपना हाल कह देना। तीसरी - अगर मोहिनी पहले अपना हाल कुछ कह चुकी होतब? मोहिनी- नहीं मोहिनी ने अपना हाल कुछ नहीं कहा क्योंकि बात ही बात में यही दरियाफ्त करन के लिए मैंने पूछा था कि मुझसे जुदा होकरमी मेरा हाल तुम को मालूम नहीं हुआ? जिसके जवाब में वे बोले कि कुछ भी नहीं। इसक इलावे पहिले ही उन्होंने कहा था कि मुझे अभी तक यह नहीं मालूम हुआ कि तुम कौन हो' इन सब बातों का रथाल करके मैं समझती हूँ कि मोहिनी अपना हाल कुछ कहने न पाई और फिर इनसे अलग हो गई। एक - तुम्हारा सोचना बहुत ठीक है ! मोहिनी-मुझे तो इनका नाम भी नहीं मालूम दूसरी-कल तुम उन से कहना कि तुमने भी तो अपना ठीक ठीक नाम और हाल अभी तक नहीं बताया तब वे खुद ही कहेंगे कि मेरा नाम ठीक फलाना ही है और अपना हाल भी कुछ कहेंगे। इतने में एक सखी ने शराब का गिलास भर कर मोहिनी के हाथ में दे दिया और कहा, 'लो आज बडी खुशी का दिन है. रोज से दूनी पीनी चाहिए पीयो और हमलोगों का भी कुछ ख्याल रक्खो। ईश्वर ने इनको यहाँ भेज दिया है तो ऐसा न हो कि इनके आने का सुख अकेली तुम ही लूटो। इसके जवाब में मोहिनी ने हँस कर कहा क्या मैं तुम लोगों को रोकती हूँ? इसमें मेरा बस है या उनका ? थोडी देर तक हंसी खुशी की शैतानी दिल्लगी रही इसके बाद लौड़ियाँ खाने पीने का सामान उस जगह ले आई तब मिल कर खाने और शराब पीने लगी, यहाँ तक कि नशे में मस्त होकर जमीन पर लेट गई और किसी को तनोबदन की सुध न रह गई। मोहिनी की इन सखियों में दो ऐसी थीं जो शराब को हाथ से भी नहीं छूती थीं और हर तरह से नेक और दयालु थीं। - दिन रात का ज्यादे हिस्सा ईश्वर के भजन और ध्यान ही में गॅवाती थीं। यह शैतान मण्डली उन्हें भलो नहीं मालूम होती थी मगर क्या करें लाचार हाकर साथ रहना पड़ा था। इनका नाम श्यामा और भामा था । मोहिनी तो अपनी सखियों के साथ शराब के नशे में ऐसी बेहोश पड़ी कि पहर दिन चढे तक तनोबदन की सुध न रही मगर बेचारी श्यामा और भामा कुछ रात रहते ही उठी और जरूरी कामों से छुट्टी या नहा धो साफ कपडे पहिर नरेन्द्रसिह के पास पहुंची और दिलोजान से उनकी खिदमत करने लगी। मोहिनी की सूरत में फर्क क्यों पड़ गया !सूरत ही नहीं बल्कि चालचलन निगाह चितवन बातचीत सभी दूसरे ही ढग की नजर आती है।आँखों में उतनी हया भी नहीं है। सिवाय इसके शहर छोड जगल में रहना इसने क्यों पसन्द किया ? और अन्दाज से यह भी मालूम होता है कि मुझसे जुदा होकर इसने मेरी खोज बिल्कुल नहीं की नरेन्द्रसिह ने इसी सोच और ख्याल में वह पूरी रात बिता दी और घडी घडी उठ कर देखते रहे कि सवेरा हुआ या नहीं। अभी अच्छी तरह आसमान पर सफेदी नहीं फैली थी यद्यपि एक तरह पर सवेरा हो चुका था। नरेन्द्रसिह पलग पर लेटे लेटे दर्वाजे की तरफ देख रहे थे कि हाथों में जल का लोटा लिये श्यामा और भामा वहां पहुंचीं। उसी रास्ते से होकर दूसरे कमरे में चली गई और लोटा रख कर लौट गई। थोड़ी देर बाद मुँह धोने के लिए दतुअन मजन और धोती गमछा इत्यादि कुल सामान लेकर आई और उसी कमरे में जिसमें जल कालोटा रख गई थी इन चीजों को भी रक्खा इसके बाद नरन्द्रसिह के पलय के पास पहुंची। इनको पास आते देख नरेन्द्रसिह ने जान बूझ कर आँखें बन्द कर ली और अपने को सोता हुआ सा बना लिया। श्यामा पैर दबाने और भामा पखा झलने लगी थोड़ी देर बाद नरेन्द्रसिह उठ बैठे और उन्होने पूछा 'सवेरा हो गया ? श्यामा -- जी हाँ उठिये मुंह हाथ धोइए। नरेन्द्र - ( उठ कर ) मोहिनी कहाँ है ? श्यामा - मोहिनी कौन? नरेन्द्र - तुम्हारी मालिक। श्यामा-जी हाँ वह अभी तक सोई हुई है। नरेन्द्र - बहुत देर तक सोया करती है ! श्यामा - अब उनके उठन का समय हो ही गया है तब तक आप चाहें तो स्नान सन्ध्या से छुटटी पा सकते है। नरेन्द्र - मै भी यही चाहता हूँ। नरेन्द्र मोहिनी ११३९