पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१३८

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इतना कह नरेन्द्रसिह पलग के नीच उतरे। श्यामा और भामा दोनों दिलोजान से खिदमत करने पर मुस्तैद हो गई। इनकी होशियारी और फुर्ती के साथ काम करने के सबब स नरेन्द्रसिह जरूरी कामों से छुट्टी पाकर दतुअन कुल्ला स्नान सध्या इत्यादि से बहुत जल्द निश्चित हो गए किसी यात की जरा भी तकलीफ न हुई। श्यामा और मामा जिस प्रेम के साथ उनकी खिदमत कर रही थी उसे देख कर यह दग हो गये और सोचने लगा कि ऐसी सलीके वाली लौडियाँ तो आज तक मैने नहीं देखीं। सिवाय इसके इन्हें लौडी कहते भी सकोच मालूम होता है। चाहे इनकी पाशाक यशकीमत न हो फिर भी बातचीत ओर चाल ढाल से य छाट दर्जे की औरतें नहीं मालूम होती। इन दोनों का रग कुछ सावला हे तो क्या हुआ मगर इनके रूपवान हाने में कोई शक नहीं तिसमें यह एक जा अपना नाम श्यामा बताती है परम सुन्दरी है और लक्षणों से मालूम हाता है कि अभी कुँआरी है। अहा ! क्या ही सुन्दर मुख और कैसी बड़ी बडी रतनार आँखें है । अभी तक मैंने इसकी सुन्दरता पर ध्यान नहीं दिया था मगर अब जो गौर करके दखता हूँ ता यही कहन का जी चाहता है कि यह श्यामा खूबसूरती में किसी तरह भो माहिनी से कम नहीं है बल्कि गुण और शील में उसस वढ कर है। इस तो सामने से जाने दने का जी नहीं चाहता न मालूम क्यों इसकी तरफ मेरा चित् खिचा जाता है। माहिनी आव ता यूछू कि ये दोनों कोन है? इसी तरह की बातें सोच रहे थ कि इतन ही में नींद से जाग जमुहाई लेती हुई माहिनी भी आ पहुंची। इसका खुमार अभी तक उतरा न था, आत ही नरेन्द्रसिह क पास बैट गई और गले में हाथ डाल कर बाली क्या अभी साकर उठे हा? स्नान न करोग? माहिनी के मुँह स शराब की एसी बुरी भभक निकली कि नरन्दसिह का जी रिगड गया। माहिनी का हाथ अपने गले से निकाल झट उठ खड हुए और बाल मै तुम्हारी इन दाना हाशियार लौडियों की बदौलत स्नान पूजा आदि सब चीजों से छुटटी या चुका हूँ। तुम शायद अभी साकर उठी हा।- मोहिनी का अपना हाथ गले में से निकाल कर एकाएक इस तरह नरेन्दसिह का उठ जाना बहुत ही बुरा मालूम हुआ और वह लाल लाल आँखें कर नरेन्द्रसिह की तरफ दखन लगी। नरेन्द्रसिह भी अपन दिल में साचने लग कि मोहिनी का यह क्या हो गया। यह तो बातचीत से बहुत नक और शरीफ खानदान की लडकी मालूम होती थी मगर इसका रग ढग बिल्कुल बदला हुआ देखता हूँ। जब मैने गुलाब का हाल इसस पूछा तो बाली कि वह मर गई । लकिन अभी मुझस इसका सग छूटे पन्द्रह दिन भी नहीं हुए ता क्या इसी बीच में गुलाब के मरने का गम इसके दिल से जाता रहा और यह हॅसी खुशी में दिन चिताने लगी? क्या किसी शरीफ खानदान की कुँआरी लडकी का एसा करना मुनासिव है ? यह ता विल्कुल असभ्य और कुलटा मालूम होती है। अगर इसकी चालचलन ऐसी ही है तो मैं इसकी मुहब्बन से बाज आया। मैं ऐसी बदचलन औरत से बात भी करना पसन्द नहीं करता। वाह मेरे गल में हाथ डालते इस जरा भी शर्म न मालूम हुई 11 थोड़ी देर तक दोनों अपने अपने मतलब की साचते रहे आखिर माहिनी से न रहा गया 1 वोली ‘क्यों साहब आपने तो मेरी बडी वेइज्जतीकी !!" नरेन्द्र - वह क्या ? मोहिनी--मैं आपकी मुहब्बत से आपके पास आकर बैतूं और आप इस तरह मुझे दुतकार कर उठ जायें क्या इसी को सभ्यता कहते हैं? नरेन्द्र - अगर औरतें सौ दफ इस तरह के नखरे करें तो कोई हर्ज नहीं मगर मर्द एक ही दफे के नखरे में खराव समझा गया ॥ वस नरेन्द्रसिह के इतना कहने स माहिनी का खयाल बदल गया और वह हँस के बोली- 'खैर तो आइये बैठिये नरेन्द - मरा कायदा है कि नहाने के बाद मैं उस आदमी के पास नहीं बैठता जो बिना नहाया हो। मोहिनी - क्या छूत लग जाती है ? नरेन्द्र - चाहे छूत न लग ता भी ऐसा कायदा रखने से बहुत कुछ फायदा है। मोहिनी – ( उठ कर ) खैर साहव मै जाकर नहा आती हूँ! नरेन्द्र - हॉ इसके बाद फिर हमसे बातचीत होगी। मोहिनी-(श्यामा की तरफ दख कर) मै नहाने जाती हूँ तक तुम इनके खाने पीने का कुछ बन्दोबस्त करो। श्यामा-बहुत अच्छा'r मोहिनी चली गई इसके बाद श्यामा न हाथ जोड कर नरेन्द्रसिह से कहा 'मुझे मालिक का हुक्म हुआ है कि आपके वास्ते खाने पीने का बन्दोवस्त करूँ मगर मेरा जी यहाँ से जाने को नहीं चाहता क्योंकि आपसे एक बात कहनी बहुत जरूरी है। अगर मै यहॉस जा कर आपके भोजन का बन्दोबस्त करूँ तो फिर बात करने का मौका न रहेगा क्योंकि तब तक यह फिर आ जायगी और मेरी बात ऐसी है कि सिवाय आपके अगर कोई दूसरा सुन ले तो मेरी जान जाने में कोई शक न रहे। देवकीनन्दन खत्री समग्र ११४०