पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१४०

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अपना हिस्सा अलग कर लेना चाहा। नरेन्द - क्या और कोई इनका बड़ा बुजुर्ग नहीं था? श्यामा - कोई नहीं। नरेन्द्र - अच्छा तब। श्यामा-हिस्सा देना केतकी को बहुत बुरा मालूम हुआ। कई बदमाशों से मिल कर वह मोहिनी और गुलाब दोनों को धोखा देकर जगल में ले गई जहाँ सुनते है कि दोनों को फॉसी देकर मार डाला मगर ताज्जुब यही है कि अगर वे दोनों मर ही गई तो आपने उन्हें कैसे देखा? नरेन्द्र - मोत से उन्हें मैने ही बचाया था । श्यामा-ठीक है। खैर यह केतकी अपने बाप की बेहिसाव दौलत ऐयाशी में उड़ान लगी। यह मकान उसके बाप ही का बनवाया हुआ है। अब यह ज्यादेतर इसी में रहा करती है. यहा इसने कई आदमियों का साथ किया और थोडे थोडे दिन बाद सभों की जान लेती गई। बस इसके सिवाय और मैं कुछ नहीं जानती। हाँ आप मोहिनी का हाल कहिए कि वह क्योंकर बची? नरेन्द्र - मोहनी का हाल कहने के पहिले मुझे अपना हाल भी कहना पड़ेगा कि घर से क्यों बाहर निकला। श्यामा- नहीं वह तो मैं जानती हूँ कि आप शादी के खिलाफ होकर ठीक बारात वाले दिन भाग निकले थे नरेन्द्र -(ताज्जुब से ) यह तुम्हें कैसे मालूम हुआ ? श्यामा-मेरा घर । उसी शहर में है और उस दिन मैं भी आपके ससुराल में ही थी। बदकिस्मती से यहाँ तक की नौबत पहुँची : अच्छा अब आप मोहिनी का हाल कहिये। नरेन्द्र - मैं घर से भागा हुआ जगल जगल घूमता फिरता रात के वक्त वहाँ पहुँचा जहाँ एक पेड के साथ मोहिनी उलटी लटकी हुई थी। उसे उतारा जब होश में आई तब उसी की जुबानी मालूम हुआ कि गुलाब भी उसी जगह गाडी गई है अस्तु उसे भी निकाला । सन्दूक में रख कर वह गाडी गई थी इसलिये बच गई। वहाँ से पास ही एक नदी थी, और एक किश्ती भी किनारे मौजूद थी। हम लोग उस पर सवार होकर वहाँ से रवाने हुए। सुबह होने पर मैंने किश्ती किनारे पर लगाई। वहा पर मेर लडकपन के एक साथी बहादुरसिह से मुलाकात हुई। वहाँ से कुछ दूर पर एक बडी नाव दिखाई पडी, बहादुरसिंह को मोहिनी और गुलाब की हिफाजत के लिए छोड मै वह नाव किराये करने गया मगर वहा से जब लौटा तो तीनों में से किसी का भी न पाया न मालूम वे सब कहा गायब हो गए थे। उन्हीं को खोजता खोजता यहाँ तक आ पहुंचा हूँ। इससे ज्यादा और कुछ बात न होने पाई क्योंकि उसी समय केतकी आ पहुँची जिसे देख नरेन्दसिह ने अपनी कहानी का सिलसिला तोड दिया और मुस्कुरा कर केतकी से कहा, आइये मैं आप ही की राह देख रहा हूँ केतकी- क्या बात है जो श्यामा और भामा सवेरे ही से आपके पास अडी है ! नरेन्द्र - ये दोनों बेचारी बडी नेक है और दिल से मेरी खिदमत कर रही है इनके रहने से मुझे बडा आराम मिला। तुम्हारे जाने के बाद अकेले बैठा क्या करता, इन्हीं से बातचीत करता रहा। केतकी - तो क्या आपने अभी तक भोजन नहीं किया ? नरेन्द - भोजन करने की इच्छा नहीं हुई इसीलिए मना कर दिया। केतकी - और ये दोनों भी आफत की मारी चुप हो रही ! नरेन्द्र - तो क्या करती ? मुझी को भूख न थी तो इनका क्या दोष ? - केतकी-(श्यामा की तरफ देख कर ) जाओ भोजन ले आओ। श्यामा-बहुत अच्छा। नरेन्द्र - नहीं नहीं, मैं अभी कुछ न खाऊँगा। केतकी- यह तो न होगा। नरेन्द्र - मेरी तबीयत आज ठीक नहीं है । तुम्हारी खोज में बहुत दूर तक पैदल घूमना पडा । आदत तो थी नहीं, इससे पैरों में बहुत दर्द है और कुछ कुछ पेट भी दुख रहा है। इस समय अगर मैं कुछ भी खाऊँगा तो जरूर बीमार पड जाऊगा। तीन चार घटे मुझे और छोड दो जब थोडा दिन बाकी रह जायगा तब मैं भोजन करूगा। तुम मेहरबानी करके इन दोनों को हुक्म दो कि जल्द भोजन कर आवें क्योंकि मैं अपनी खिदमत के लिए इन्हीं दोनों को पसन्द करता हूँ। केतकी-जैसी मर्जी आपकी ! (श्यामा और मामा की तरफ देख कर ) अच्छा जाओ तुम लोग जल्दी अपनी छुट्टी करके आओ। श्यामा और भामा भोजन करने चली गई। अब केतकी और नरेन्द्रसिह में बातचीत होने लगी। नरेन्द्र --- हा मोहिनी, अब मौका बहुत अच्छा है अब अपना हाल कहो। मोहिनी- नहीं. पहिले आप ही अपना हाल कहिए। नरेन्द - नहीं नहीं पहिले तुम्हीं को कहना पडेगा । हा बोलो जगल में तुम्हारी जान किसने बचाई? -- देवकीनन्दन खत्री समग्र ११४२