पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१४२

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नरेद्र - उसकी तस्वीर कहाँ है. मुझो दिखाओ। श्यामा - उसको देख कर आप क्या कीजियेगा, आपको तो औरतों से नफरत ही है। नरेन्द्र -भला देखें तो सही कि वह कैसी है जिसने मेरी इतनी कदर की। श्यामा-खेर उसने जो मुनासिब समझा किया, आपको तो उसकी गरज ही नहीं है फिर तस्वीर दय कर क्या कीजियेगा। नरेन्द्र --तुमने उसका हाल मुझे ऐसा सुनाया कि मेर रोंगटे खड़हा गय। मैं तुम्हारा बड़ा ही अहसान मा दूंगा अगर तुम उसकी तस्वीर मुझे दिखा दोगी। श्यामा - (भामा की तरफ देखकर ) अच्छा वहिन रम्मा की तस्वीर लाकर इन्हें दिखा दो। भामा वहाँ से चली गई और बहुत जल्द रम्भा की तस्वीर ले कर आई। धवराइट के मारे नरेन्दसिंह ने खुद उठ कर बल्कि कुछ आगे बढ़ कर रम्भा की तस्वीर भामा को हाथ सले ली और एक निगाह उस पर डाली। वह तस्वीर धी या कोई आफत कि देखत ही नरेन्द्रसिंह की हालत बदल गई चारपाई पर बैठना भूल गये और उसी जगह जमीन पर बैठ तस्वीर देखने और आंसू बहाने लगाकई सायत के बाद बोले- 'अहा !क्या यही वह रम्भा है जिसको मैने एकदम त्याग दिया और जिसके साथ शादी करने से इनकार कर लिया। हाय इस दुनिया में कोई मेरे ऐसा कम्बख्त न होगा जिसने आती हुई लक्ष्मी को लात मारी। आह. यह खूबसूरती ! इतना बदा-चढा हुस्न तिस पर इतनी नेक और पतिव्रता " हाय ! बदनसीब नरेन्द्र तिने बहुत बुरा किया जो ऐसी को सताया। जरूर इसी पाप का फल भोग रहा है। विना देख और जाथै किसी की बेकदरी करना बड़ी भारी भूल है। क्या ऐसी गुणवाली औरत तुझे कहीं मिल सकती है? हाय ! अगर मेरी आखों में शील और मुरौवत और हृदय में दया होती तो इसके सामने किसी का कभी नाग भी न लेता मगर नहीं, उसका ययाल अगर दूर कर दूंगा तो पक्का येईमान और वेभुरोवत कहलाऊंगा और दुनिया में मेरी कुछ भी कदर न रहगी। मगर क्या मोहिनी को रम्भा ऐसी नेक औरत की खिदमत करने में कुछ जज होगा? कभी नहीं ! वैर जो कुछ होगा देखा जायगा अब तो रम्भा को योजना ही मेरा पहला काम हुआ ! अच्छा अगर यह न मिली तो में क्या करूँगा? इसके कहन की कोई जरूरत नही. किसी दूसरे का नहीं ता अपनी जान का तो मैं मालिक हूँ! इसी तरह की बातें घण्टों तक नरेन्द्रसिह कहते तथा चकते शफते राते कलपते और अफसास करते रहे 1 दूर ही से श्यामा और भामा इनकी दशा देय मुस्कुराती रहीं। मगर आखिर श्यामा स न रहा गया. जी उमउ आया बडी मुश्किल से अपने को सम्हाला और नरेन्द्रसिंह के सामन आकर बोली आप यह क्या कर रहे है बिल्कुल बनी बाई बात बिगाड़ना चाहते हैं ! कही केतकी आ जाय और इस तरह पर आपको देखें तो कहिए क्या हो? अब उसके आने का वक्त्त भी हो गया है. लाइये यह तस्वीर मुझे दीजिए। लेकिन आप घबराइये नहीं. मैं वादा करती हूँ कि आपको रम्मा से मिला दूंगी। मैं उसका बहुत कुछ हाल जानती हूं और यह भी जानती हूँ कि इस समय वह कहां है।' नरेन्द-(सिर उठा के श्यामा की तरफ देखकर ) क्या तुम जानती हो कि इस समय रम्भा कहा है और वादा करती हो कि मुझे उससे मिला दोगी! श्यामा-- हाँ हाँ में जानती हू और वादा करती हूं कि आपको रम्भा से मिला दूंगी मगर इस शर्त पर कि जो कुछ मैं कहूँ आप उससे इन्कार न कीजिये। नरेन्द्र - मुझसे कसम ले लो मै कभी तुम्हारे कहने के खिलाफ चलू । हाय इस वक्त तुम भी मुझको भली मालूम होती हो क्योंकि (तस्वीर देखकर ) रम्भा की बहुत सी बातें तुममें पाई जाती है। श्यामा - (भामा की तरफ देख कर और मुस्करा कर ) यहिन जरा इनकी बातें तुम भी याद रखना ! भामा -- मुझे तो यही डर है कि कहीं केतकी न आ पहुंचे। नरेन्द्र-केतकी भला मेरा क्या कर लेगी? क्या मै मर्द हो कर औरत से डरूंगा? केतकी की मजाल है जो मुझे रोक सके। श्यामा- राम राम, ऐसा न कहिये चाहे कतकी आपका कुछ न कर सके मगर उसफा बन्दोबस्त ऐसा है कि आप ऐसे दस को भी वह कुछ नहीं समझती। इसका हाल तो मैं जानती हूँ। लाइये यह तस्वीर मुझे दीजिए और चारपाई पर आकर लेटिए। अब तो मैं इस बात का बीड़ा ही उठा चुकी हूँ कि आपका रम्भा से मिला दूंगी फिर क्या है ? अगर आप मेरी बात नहीं सुनते तो लीजिए फिर में जाती हूँ, आप जानिए आपका काम जाने ! नरेन्द्र - नहीं नहीं तुम जो कहोगी मैं वहीं करूँगा लो तस्वीर लो मगर फिर जब मै मोंगू तव दे दना । श्यामा-हॉ यह हो सकता है। नरेन्द्रसिह ने रम्भा की तस्वीर श्यामा के हाथ में दे दी और पलग पर आकर लेट रहे मगर उनकी क्या दशा थी यह वही जानते होंगे। थोड़ी ही देर में सीढी पर चढते हुए किसी आदमी के आने की आहट मालूम हुई। तीनों की निगाह दरवाजे पर जा लगी, देखा तो केतकी आ रही है। -- 1 - देवकीनन्दन खत्री समग्र ११४४