पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दि & मगर इस समय केतकी का रग बदला हुआ था। गुस्से के मार उसका गारा मुँह सुखं हो रहा था आँख लाल नजर आती थी और बदन कॉप रहा था। आते ही वह कडक कर बोली- "क्यों रे श्यामा ! क्या तूने मुझका छाकडी समझ लिया? अरे तेर ऐसे पचास का मै चरा के रख दें, क्या मुझस चालाकी खेलेगी? वाह री लौडी ! अच्छा खिदमत करन के बहाने मुझ पर बिजली गिराने लगी। वह दिन याद नहीं कि बैठने का ठिकाना तुझको नहीं मिलता था? मैंने अपने यहाँ रख लिया यह क्या तरे साथ कोई बुराई की? मगर पाँच ही सात दिन में तेरे गुन जाहिर हो गये ! मैं नहीं समझती थी कि तू आस्तीन की नागिन बन जायगो । अर शैतान की बच्ची ! तुझको जरा भी मरा डर न हुआ !क्या तू नहीं जानती थी कि में कौन हूँ ! क्या तुझे यह खयाल न हुआ कि केतकी अगर कहीं छिपके सुनती होगी तो मेरी क्या दशा करेगी? अरे मै ता पहले ही ताड गई थी कि इनक पास तेरा इतना बैठना उठना और खिदमत करना बसवब नहीं है जरूर कुछ दाल में काला है। अगर मैं छिपके सब यात न सुनती तो मुझे भला क्या मालूम होता कि त जहर की बुझी कटारी है यह खूबसूरती और यह कसाईपना अरे मैंने तो समझा था कि यह किसी बड़े खानदान की नेक लडकी है. किसी आफत के सबब मारी मारी फिर रही है इसे रख लो, मै क्या समझती थी कि तू मेरे ही लिए काल हो जायगी? अच्छा तैने तो मेरा भण्डा फोड ही दिया अब ले तू भी क्या याद करेगी कि किसी से काम पड़ा था। इतना कह फुर्ती से नरन्द्रसिह की बगल से तलवार उठा ली और श्यामा के ऊपर चलाई मगर नरेन्द्रसिह ने झपट कर उसकी कलाई थाम ली और इतना उमेठा कि तलदार का कब्जा उसके हाथ से छूट गया, इसके बाद एक लात एसी मारी कि वह दूर जाकर धम्म से गिर पड़ी और बडे जार से चिल्लाई। केतकी के चिल्लात ही पचासों सिपाही नगी तलवारे हाथों में लिए हुए इस तरह आ पहुंचे मानो वे लोग सीढी पर तैयार ही थे और केतकी की आवाज की राह पर देख रहे था इनको देखते ही नरेन्द्रसिह ने झट तलवार उठाली और देखने लगे कि ये लोग क्या करते हैं। उन सिपाहियों में से दत्त तो श्यामा और भाना की तरफ झुक और बाकी नरन्द्रसिह के अगल बगल हो गए। जव श्यामा और भामा की मुश्के कसी जाने लगी तब श्यामा ने आँखों में आंसू भर कर नरेन्द्रसिह की तरफ देखा और कहा- प्राणनाथ! अव ता मै जाती हूँ, लेकिन आप रम्भा जी की खोज में दुख न उठाइयेगा क्योंकि आपकी दासी वह कम्बख्त रम्मा मैं ही हूँ और प्यारी सखी तारा यही मरे साथ है। मैं चाहती थी कि किसी अच्छे मौके पर अपना नेद खोलें मगर हाय विधाता तैन कुछ करन न दिया । इतना सुनत ही नरेन्द्रसिह को जोश चढ आया। गरज कर जवाब दिया कि क्या मजाल है किसी की जो मेर जीते जी रम्भा को सता सका। इतना कह दसों सिपाहियों पर टूट पडे जो रम्भा और तारा (श्यामा और मामा की मुश्क बाँध फर उठा ले जाया चाहते थे। फुर्ती से दो आदमियों का सिर धड़ से अलग किया इतने में सब के सब नरन्दसिह पर टूट पडे। इस समय नरेन्द्रसिह की बहादुरी देखने लायक थी जैसे शेर बकरियों के झुण्ड में उछलता हो वही हालत इनकी थी। इनके बदन में कई जख्म लगे मगर इन्होंने देखते देखते दस बारह आदमियों को काट के गिरा दिया जिससे कुल सिपाहियों क हौसले पस्त हा गये। मगर इतने ही में गिरी हुई एक तलवार उठा कर केतकी ने पीछे से नरेन्द्रसिह की पीठ पर मारी जिसक साथ ही नरेन्द्रसिह ने पीछ फिर के दखा। उसी वक्त एक सिपाही ने ऐसी तलवार इनके सिर में मारी कि यह ठहर न सके और चक्कर खाकर जमीन पर गिर पड़े। बारहवां बयान रम्भा के भाई अर्जुनसिंह क्या हुए ? रम्भा और तारा गयाजी से यकायक इस शैतान की बच्ची केतकी के यहा कैसे आ पहुँची ? नरन्द्रसिह की अब क्या गति होगी ? वहादुरसिंह इस समय कहाँ और किस फिराक में है। बेचारी माहिनी और गुलाब कहॉ टक्कर मार रही है ? रम्भा जब घर से निकल काशीजी रवाना हुई तो उसके घर में क्या धूम म्ची? नरेन्द्रसिह के भाई जगजीतसिह उनकी खोज में निकले थे वह कहा गए २ इत्यादि बहुत सी बातें जानने के लिए इस समय पाठक उत्कवित हा रहे होंगे इसलिए हम नरन्द्रसिह रम्भा तारा और केतकी को इसी दशा में छाड दूसरी तरफ झुकते है और पहिले जगजीतसिह की कथा सुनाते हैं। जगजीतसिह न भाई की खोज में जाने के पहिले ही यहादुरसिह स सब हाल पूछ लिया था और उस तहखाने का भी पता मालूम कर लिया जिसमें बहादुरसिह कैद थे। बहादुरसिह से जुदा हाकर जगजीतसिह कई आदमियों का साथ लिये बनदेवी के मन्दिर में ण्हुँचे और माई का दशन कर बडी देर तक प्रार्थना करते रहे। इसके बाद मन्दिर के बाहर आकर अपनी मामूली पोशाक उतार दी और साधुओं के कपड़ेजा घर से लेते आव थे पहन लिए बदन में सिर से पैर तक विमूति मल ली लगाटा कस कर एक छोटी नरेन्द्र मोहिनी ११४५