पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१४५

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हरीसिह और जयसिह न मिल कर अपने बड़े बडे चिमटों से खोद के वह दर्वाजा साफ कर डाला। चौखट किवाड और बन्द ताला भी निकल आया। यह दर्वाजा बहुत बडा न था बल्कि ऐसा था कि विना अच्छी तरह झुके कोई उसके अन्दर नहीं जा सकता था। जयसिह ने ताला तोड डाला। जगजीत-चलो इसके अन्दर चल कर देखें कि क्या है? जय-ऐसा भूल के भी न कीजियेगा। हरी-क्यों? जय-हम लोग इसके अन्दर चले जायें उधर कोई डाकूयहाँ आवे और शक करके बाहर का दर्वाजा बन्द कर देतो बस हम लोग इसी के अन्दर ही सडा करें यह कोई बुद्धिमानी नहीं है ! जगजीत-यही सब सोचने के लिए तो तुम्हें साथ ले आये हैं। हरी-अच्छा आप दोनों आदमी खड़े रहिए मैं जाता हूँ। जय-विना रोशनी के भीतर जाकर क्या देखोगे? इस समय रहने दो फिर देखा जायगा। शाम हो गई। तीनों ने उस कुए पर आसन जमाया और अच्छी तरह सलाह कर ली कि अब क्या करना चाहिए। अभी अधेरा नहीं हुआ था कि एक देहाती उस कुएँ के पास पहुचा और जगजीतसिह को झुक कर सलाम करने के बाद हरीसिह और जयसिह को सलाम करके खड़ा हो गया। जगजीत - कहा क्या हाल है ? तुम्हारे और साथी सव कहाँ है? देहाती- सब इधर उधर फैले हुए है जब किसी को कुछ हाल मिलेगा तब वह आपके हुक्म मुताबिक इसी कुए पर पहुंचेगा। जय - तुम्हें क्या काई हाल मिला है जो यहाँ आये हा? देहाती-दो बातें मेरे देखन में आई हैं। जय - वह क्या? दहाती -- आप लोग तो चक्कर देते हुए इधर आए और मैं सीधा गयाजी चला गया। वहॉ से फल्गू पार हो पूरब तरफ चला। लगभग तीन कोस जाने के बाद जगल में एक भारी इमारत नजर आई. मैं उसी तरफ झुका और वहा पहुच कर उसके इर्द गिर्द घूमने लगा। जय-फिर? दहाती-जब रात हुई तो बहुत से आदमी उस मकान से बाहर निकले और सीधे दक्खिन का रास्ता लिया। मैं भी चक्कर दे उस भीड में मिल गया। देखा कि वे लोग कई लाशों को उठाए लिए जा रहे है। मैन सोचा किं विना कारण ही एक दम इतने नहीं मर सकते. इस मकान के अन्दर जरूर कुछ न कुछ खून खराबा हुआ है। आखिर वही बात निकली। वे लोग आपस में धीरे धीरे बातें करते जा रहे थे। कुछ बातें तो मरी समझ में नहीं आई। हॉ इतना मालूमहुआ कि उसी मकान में जिसमें से वे लाग निकले थ गया के जमींदार उसी हजारी सिह की लडकी रहती है जिसने हाजियों की लडाई में आपके पिता को मदद दी थी और वे सब आदमी हमारे नरेन्द्रसिह के हाथ से मरे है जिनकी लाश वे लोग उठाए लिए जा रह था जय - खाली यात स तुमने कैसे निश्चय कर लिया कि वे सब नरेन्द्रसिह के हाथ से मरे थे? देहाती-जी हाँ उन्हीं में से एक बोल उठा आखिर नरेन्द्रसिह बिहार के प्रतापी और बहादुर राजा उदयसिह का पुत्र है वह अगर मैदान पाता तो और भी कितनों ही की जान लेता। यह सुन दूसरा बोला नरेन्द्रसिह को गिरफ्तार कर लेना भी केतकी के हक में ठीक न होगा खैर यहाँ तक तो नमक की शर्त अदा कर दी अब ऐसे की नौकरी कभी न करूँगा इसके सिवाय और भी बहुत सी बातें सुनने में आई जिसस मुझ निश्चय हो गया कि वे सब नरेन्द्रसिह के हाथ भरे हे मगर इतनों को मारने के बाद आखिर में वे खुद भी गिरफ्तार हो गए। जग-पिताजी का यह खबर कहला भजनी चाहिए। जय - कोई जरूरत नहीं मालूम होती। देहाती – ताज्जुब नहीं कि उन्हें यह खवर लग गई हो। जय - मैं यही खयाल करता हूँ, क्योंकि उनकी चाल और नीति भी बड़ी ही टेढी है। जगजीत - अच्छा तो अब यहाँ ठहरना ठीक नहीं है। जय - जी हा चलिए हमलोग भी उसी तरफ चलें। (देहाती की तरफ देख के ) हरी दखो हम तुम्हें दो तीन काम सुपुर्द किये देते है जहाँ तक हो उन्हें जल्दी करना। जयसिह ने देहाती को जिसका नाम हरी जासूस था कई बातें समझाई और इसके बाद तीनों आदमी वहाँ से उठ कर क्तकी के मकान की तरफ रवाना हुए। हरी-जो हुक्म । नरेन्द्र मोहिनी ११४७