पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१४६

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JA तेरहवां बयान अब हम फिर नरेन्द्रसिह और केतकी का हाल लिखते है । जब उनको केतकी की शैतानी का हाल मालूम हुआ तब यह सोच कर कि गुलाब और मोहिनी के दुख का कारण यही है, उन्हें उसके ऊपर बहुत ही गुस्सा आया। उसी समय श्यामा और भामा की जुबानी रम्भा के प्रेम का हाल सुन उनकी और ही दशा हो गई और उस रम्भा से मिलने का शोक हद्द से ज्यादे पैदा हुआ। जब गिरफ्तार होते समय श्यामा ने कहा कि मै ही रम्भा हूँ तब तो उनकी आँखों में खून उतर आया और अपनी जान से हाथ धो केतकी के आदमियों से लड गए, मगर क्या हो सकता था यह अकेले और वे बहुत थे आखिर कई आदमियों को मार कर खुद भी गिरफ्तार हो गए। हरामजादी केतकी नरेन्दसिह रम्भा और तारा के खून की प्यासी बन बैठी। उसने तीनों को कैद में डाल दिया मगर कई दिनों तक नरेन्द्रसिह को समझाती और कहती रही कि मोहिनी गुलाय और रम्भा का ध्यान छोड मेरे साथ शादी कर लो बल्कि मेरे सामने अपने हाथ से रम्भा का सिर काट डालो तो तुम्हें कैद से छुट्टो मिल जायगी मगर नरेन्द्रसिह इसे कब मजूर करने लगे. जवाब में सिवाय चुप रहने के ये और कुछ भी न बोले । आखिर लाचार हो केतकी ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि आज रात को अपने हाथ से नरेन्द्रसिह रम्भा और तारा का सिर काट कलेजा ठडा करेगी। यह केतकी लडकपन ही की शैतान थी। इसी तरह इसने कई आदमियों को फंसा फंसा कर अपने हाथ से मार डाला था। इसने पहले तो सोचा कि थोडे दिन तक और भी नरन्द्रसिह को कैद रख कर समझावे बुझावे मगर यह ख्याल करके कि यदि यह भेद राजकर्मचारियों को मालूम हो गया तो बडी मुश्किल होगी, उसने ज्यादा दिनों तक इनको कैद रखने का हौसला न किया। एक दिन चाँदनी रात में छत पर बैठी बाग की बहार देख रही थी, उसकी सखियाँ भी पास ही बैठी हुई थी और नरेन्द्रसिह की खूबसूरती पर रहम खा उन्हें छोड देने के लिए समझा रही थीं, मगर इस सगदिल का दिल नरम न हुआ और इसने झुझला कर कैदी नरेन्द्रसिह को हाजिर करने का हुक्म दिया। यह मकान जिसमें केतको रहती थी शहर से बहुत दूर था। यहाँ से गयाजी लगभग तीन चार कोस के होगी, पास में और कोई दूसरा शहर या कसबा न था। इस मकान के चारों तरफ कोसों तक जगल ही जगल था यहा तक के किसी आदमी के पहुंचने का बहुत कम मौका पडता, इसलिए वह यहां बहुत ही स्वतन्त्रता से रह कर देखौफ अपना दिन ऐयाशी में बिताया करती थी। नरेन्द्रसिह केतकी के सामने लाये गये। उसने अपने हाथ में तलवार ले ली और उन्हें धमकाना शुरू किया, मगर उसी समय पूरब तरफ से शोरगुल की आवाज आती सुन वह ठिठक गई और खड़ी होकर देखने लगी। मालूम हुआ कि सैकड़ों आदमीगरजते हुए इसके मकान की तरफ ही चले आ रहे हैं। देखते ही देखते उन सभों ने जो अन्दाज में पाँच सौ से कम न होंगे पास पहुच कर चारों तरफ से इस मकान को घेर लिया। केतकी के सिपाहियों ने इन्हें रोकना चाहा मगर ऐसा कब हो सकता था। वे पचास से ज्यादे न थे और घेरा डालने वाले पाच सौ से भी ज्यादा । आखिर आये हुए आदमियों के हुक्म से उन्हें फाटक से हट ही जाना पड़ा। लगभग सौ आदमियों के नगी तलवारें लिए कोठी पर चढ गये। जो कुछ माल असबाब या हर्वा उस मकान में पाया सब लूट लिया,एक पैसे की जमा या छटाक भर लोहा उस मकान में न छोडा, यहाँ तक कि केतकी और उसकी सखियों के बदन से भी कुल जेवर उतार लिए और जाती समय रोती चिल्लाती रम्भा और तारा को भी लेते गये मगर रस्सियों से जकड़े हुए नरेन्द्रसिह को ज्यों का त्यों छोड़ गए। इन सभों के मुंह पर नकाब पड़ी हुई थी इसलिए कुछ भी जान न पडा कि ये कोन थे, कहाँ से आए थे या केतकी के साथ इनकी कब की दुश्मनी थी। चौदहवां बयान हम ऊपर लिख आये हैं कि टोकी के मकान पर बहुत से आदमी चढ गए और सब कुछ लूट लिया यहाँ तक कि जाती समय रम्भा और तारा को भी लेते गये। इन लुटेरों के पहुचने और इस तरह की कार्रवाई करने से केतकी की अजब हालत हो गई। जान बची इसी को उसने गनीमत समझा और कहीं फिर वे लोग पहुच कर कुछ और दुख न दें इस खौफ से वहाँ ठहर भी न सकी। नरेन्द्रसिह को उसी हालत में छोड नीचे उतर आई और यह कहती हुई मकान के बाहर निकल गई कि 'जिसको मेरा साथ देना मजूर हो चला आवे, अब मैं इस मकान में एक सायत भी नहीं टिक सकती।' उसकी कुछ सखियों और दो चार सिपाहियों ने तो साथ दिया, बाकी सभों ने अपना अपना रास्ता लिया क्योंकि इसकी चालचलन से सभी नाराज थे मगर उन लोगों को लाचारी थी जिनको कल के लिए खाने का ठिकाना न था और तनखाह भी कम पाते थे, इसलिए ऐसों ही ने इसका साथ दिया। देवकीनन्दन खत्री समग्र ११४८