पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१४७

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अव सिर्फ नरेन्द्रसिह इस मकान में रह गए सा भी इस हालत में कि न कहीं जा सकते हैं और न कुछ कर सकते हैं क्योंकि हाथ पैर कैदियों की तरह बँधे हुए थे। चारो तरफ जगल के बीच में यह मकान तो था ही तिस पर इस सन्नाटेने और भी गजब किया ऊपर से रम्भा की जुदाई न तो मौत की ही सूरत दिखा दी जो उनके ( नरेन्द्र के ) देखते देखते जबर्दस्ती माल असदाब की तरह उन लुटेरों के हाथ पड गई थी ! क्या वे लोग डाकू थे? नहीं अगर डाकू हाते ता सिफ माल असबाब से मतलब रखते, रम्मा और तारा को उठा ले जान स वास्ता? शायद औरतों को भी उन्होंने माल ही समझा हो और उन्हें येच कर रुपये वसूल करने की नियत हो? नहीं नहीं, अगर ऐसा होता तो केतकी को क्यों छोड जाते ? केतकी के सिवाय उसकी कई सखिया भी तो इस मकान में थीं उनको भी ले जाते विशक रम्भा और तारा के ले जाने का कोई खास मतलब है। हाय. रम्भा के सच्च प्रेम नेता मुझे और भी दुख में डाल दिया । उस बेचारी न मेरे लिए कितनी तकलीफें उठाई बापमा को छोड़ा तनोवदन की सुध भुला दी अपने देश और वाधों को लात मार मेरी खोज में चल खड़ी हुई | किसी तरह मुझ तक पहुँची भी तो हाय, किस्मत ने एक नया ही गुल खिलाया । आज उसकी मुसीबत का क्याकुछ ठिकाना होगा । इन्हीं बातों को सांच सोच कर नरन्द्रसिह ऑसू बहा रह थे। थोडी थाडी दर पर लम्बी सॉसों से कलेजा ठण्डा किया चाहते थे मगर क्या हा सकता था। ज्या ज्यों आसमान के तारे घसके जा रहे थे त्यो त्यो इनके जिगर की चिनगारियों में भी चमक बढती जा रही थी यहाँ तक कि सुबह की नर्म ठण्डी और खुशबूदार हवा च्लन लगी। आफत क मारे बेचारे नन्दसिह क सर पर से अब तारों ने भी अपना साया हटा लिया और गम की फौज का लाल झण्डा पूरव तरफ के आसमान पर दिखाई देन लगा। अभी सूर्य अच्छी तरह नहीं निकला था कि फिक्र के दरिया में गात खाते हुए नरन्द्रसिह को किसी आने वाल के पैरों की आहट ने सहारा दिया 1 मुँह फेर कर देखा तो तीन साधुओं पर नजर पड़ी जिनमें एक की उम्र बहुत कम थी। इस कम-उन साधू नदौड कर नरेन्द्रसिह क हाथ पैर खोल और गले से लिपट कर रोन लगा। नरन्द्रसिह के ऑसू भी न रुके क्योंकि खून ने जोश में आकर कह दिया कि यह तेरा छोटा भाई जगजीतसिह है जो तरी खोज में न मालूम कब से और कहा कहा घूम रहा है ? थोडी देर में दोनों अलग हुए और बातचीत होने लगी- जग भाई आपने तो एक दम ही हम लोगों से मुँह फेर लिया ! नरेन्द्र - क्या कहें अफसास बडी मूल हो गई। जग खैर अब घर चलिए। नरेन्द्र -- अब हिम्मत और मर्दानगी के साथ साथ किसी की सच्ची मुहब्बत ने मुझे इस लायक ही नहीं रक्खा कि घर जाऊँ । जब तक तुम मेरा हाल न सुन लो मेरे बारे में कुछ राय नहीं दे सकते । जग- मै वहाँ तक आपका हाल सुन चुका हूँ जब बहादुर सिह और दो औरतों को दरिया के किनारे छोड आप दूसरी नाव किराए करने चले गए थे। आगे का हाल मुझे कुछ नहीं मालूम | नरेन्द्र - वह हाल तुमस किसन कहा? जग - बहादुरसिह ने। नरेन्द्र - क्या वहादुर घर पहुंच गया ? तो वे दोनों औरतें भी उसके साथ होंगी? जग-जी नहीं । वे दानों ओरतें और वहादुरसिह डाकुओं की कैद में फंस गए थे। बहादुर तो निकल भागा मगर उन दोनों का हाल कुछ नहीं मालूम । अब आप घर चलें किसी तरह उन दोनों का भी मैं पता लगाऊंगा। नरेन्द्र - अगर सिर्फ उन्हीं दोनों औरतों का खयाल रहता ता मैं बेशक तुम्हारे साथ चला चलता मगर मुझे तो उस सायत ने मार डाला जिस सायत में मैरज हो कर घर से निकल भागा था। मैं नहीं जानता था कि रम्भा पतिव्रता कहाने में एक ही हागी। जग-वेशक रम्भा ऐसी ही थी। आपके यारात स चले जाने क बाद उसके बाप ने दूसरे के साथ उसकी शादी करनी चाही मगर उसने मन्जूर न किया और जबर्दस्ती के खौफ से न मालूम कहाँ निकल भागी अफसोस । नरेन्द्र -- यही ता रञ्ज हे रम्भा मेर लिए घर से निकल भागी और मुझसे मिली भी मगर किस्मत को काई क्या करे। इसके बाद नरेन्दसिह ने अपना कुल हाल जगजीतसिह से कहा जिसे सुन उन्हें भी जोश चढ आया और वे बड गभीर भाव से बोले- जग-- माई मै जान गया कि बेचारी रभा पर जुल्म करने वाला कौन है। मुझे यह भी मालूम हो गया कि इस वक्त रम्मा कहाँ होगी। अब मैं आपका यह न कहूंगा कि घर चलिए और न मैं खुद ही घर जाऊँगा जब तक रम्भा को तुष्टों के हाथ सन छुडा लूँगा। क्या हमारी जिन्दगी रहते रम्भा को कोई दूसरा ले जायगा ? मैं उसी दिन अपने को मर्द और दुनिया में मुंह दिखाने लायक समयूंगा जिस दिन अपने घर में रम्भा को 'भाभी' कह के पुकारूँगा। अब आप उठिए और मेरे साथ चलिए इस बारे में जो कुछ में जानता या समझता हूँ रास्ते में कहूँगा। आप यह न समझिये कि मै सिर्फ (हाथ नरेन्द्र मोहिनी ११४९