पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१४८

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दि का इशारा करके ) इन्हीं दोनों जयसिह और हरीसिह को साथ लेकर घर से निकला हूँमैं अपने पूरे वन्दोवस्त में हूँ और जो कुछ कर सकता हूँ या करूँगा वह आपसे कुछ छिपा न रहगा। अपने छोटे भाई की यह बात सुन नरेन्द्रसिह को बहुत ढाढ़स हुई और ये फौरन उठ खड़े हुए। इस केतकी के मकान के साथ अस्तबल भी था जिसमें अच्छे अच्छे घोड़े मौजूद थे। नरेन्द्रसिह जगजीतसिह जयसिह और हरीसिह चारो आदमी घोडों पर सवार हुए और जगजीतसिह की राय के मुताबिक तेजी के साथ एक तरफ रवाना हुए। पन्द्रहवां बयान पटने से पूरब सालिग्रामी नदी के उस पार किनार ही पर हाजीपुर आवाद है। इस समय तो यह एक कस्य की तरक्ष मालूम होता है मगर हम जय का हाल लिख रहे हैं उस जमाने में यह एक छोटे से मगर खूबसूरत शहर की तरह रोनक पर था। इसी जगह गण्डक के किनारे ही एक छोटा गगर सगीन और मजबूत किला भी था जिसमें वहाँ के राजा दौरतसिंह रहा करते थे। पहिले वे हाजीपुर के नामी जिमींदारों में थे मगर अपनी चालाकी और वहादुरी से अब वहा के राजा बन बैठ थे। इहीं के लड़के प्रतापसिह से नरेन्द्रसिह के चले जाने के बाद रम्भा की शादी होने वाली थी जिसके खौफ से वह वैचारी अपने चचेरे भाई अर्जुनसिह और तारा को साथ ले घर से बाहर निकल गई थी। इन सब बातों को जगजीतसिह जानते थे. और इसीलिए उन्हें यकीन हो गया कि केतकी का मकान लूट कर रम्भा और तारा को ले जाने वाले येशक राजा दौलतसिह क ही आदमी होंगे। घोडे पर सवार जाते जाते रास्ते में जगजीतसिह ने यह सब हाल मुख्तसर में नरेन्द्रसिंह से कहा और अपना खयाल जाहिर किया। नरेन्द- तुम्हारा ख्याल बहुत ठीक है । मुझे भी विश्वास होता है कि यह काम सिवाय दौलतसिह के दूसरे का नहीं, मगर ताज्जुब इस बात का है कि उसे पता कैसे लगा? जग-किसी तरह मालूम हा गया होगा, अपने जासूस चारों तरफ दौडा दिए होंगे और फिर यह भी तो सोचिए कि सिवाय दौलतसिह के इस तरफ ऐसा जबर्दस्त दूसरा और कौन है ? नरेन्द्र -वेशक यह उसी का काम है। जग - इसीलिए हम लोग हाजीपुर की तरफ चल रहे है, अभी ये लोग बहुत दूर न गए होंगे। चारो आदमी दोपहर तक बराबर घोड़ा फेंके चल गये। जब धूप बहुत तेज हुई कहीं ठहर कर सुस्ताने और घोडों को ठडा करने का इरादा किया और चारों तरफ निगाह दौड़ा कर देखने लग। सड़क के दाहिनी तरफ कुछ दूर पर आम की एक बारी थी जिसमें बहुत से फौजी आदमी उतरे हुए थ--कई धोडो पर चढ हुए इधर उधर घूम फिर रहे थे। पेडों में से छन कर ऊपर की तरफ उठते हुए धुएं से मालूम होता था कि वे सब रसोई बना रहे है। जगजीतसिह ने कहा, 'धेशक वे लोग इसी वारी में उतरे हुए है जिनकी खोज में हम लोग चले आ रहे है। नरेन्द - तुम तीनों आदमी साधुओं की सूरत बने हुए हई हो एक आदमी घोड़ा छोड़ कर चले जाओ और पता लगाओ। जग - (हरीसिह की तरफ देख कर ) घोडा इसी जगह छोड दो और जाकर देखो वे ही लोग है या दूसरे? हरी- बहुत अच्छा। सडक के किनारे पीपल का एक पेड़ था। तीनों आदमी उसके नीचे खड़े हो गए। हरीसिह ने अपना घोडा पेड के साथ याध दिया और बडा सा चिमटा हाथ में हिलाते हुए उस बाडी की तरफ चले गए। थोड़ी ही देर बाद लौट आकर वे वोले 'हा वे ही लोग है और दो डोलिया भी उनके साथ है जिनके अन्दर से रोने की आवाज आ रही है। नरेन्द्र - (जयसिह की तरफ देख कर ) अब क्या इरादा है ? जयसिह-बिना लडे भिडे काम चलेगा नहीं और हम लोगों के पास कोई हर्बा नहीं तीन आदमियों के पास सिर्फ बडे बडे चिमटे है जिन्हें साधुओं का भेष बनाने के लिए रख छोड़ा है, और आपके पास यह भी नहीं। केतकी के मकान में इन लुटेरों ने कोई हर्वा छोडा ही नहीं जो साथ ले लेते, इसलिए अपना सामान दुरुस्त करने के लिए हमको एक दिन अर्थात् कल तक और सब करना चाहिए । नरेन्द्र - कल तक क्या बन्दोबस्त कर सकोगे? जग-बन्दावस्त होना कोई मुश्किल नहीं। हमने अपने बहुत से फौजी आदमियों को निशान बता कर चारों तरफ फैला दिया है जिनमें से थोड़े बहुत जरूर इकट्ठे हो सकते है । नरेन्द्र - अगर ऐसा है तो फिर तरदुद ही क्या है? जग-जयसिह, तुम बस घोडा दौडाये चले जाओ और अपने सिपाहियों को बटोर लाओ। वह टीला यहाँ से बहुत दूर भी तो न होगा जहाँ एक अड्डा हमने कायम किया है। देवकीनन्दन खत्री समग्र ११५०