पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१४९

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शि जयनिहता भी आठ कासस क्या कम हागा ! इसी खयाल स मैन कहा था कि कल तक मत करना चाहिये। अब आप एक काम कीजिए। मै तो यह सब बन्दावस्त करन जाता हूँ और आप तीनों आदमी लुके छिप इन लागों के साथ साथ चल जाइए1 कल इन लागा का पुनपुन नदी पार करना हागी जा इनक रान्त में पडगी। आज-कल उस नदी में पानी ज्यादा है, पिना नाव क पार उतरना मुश्किल है इसलिए य लाग जन्नर कल रात का यहा डरा डालेंगे और सवेरा होने पर पार उतरमे ! वहा सिर्फ एक ही नाव हागी य लाग जल्दी किसी तरह नहीं कर सकत । जग -- यस ठीक है मै समझ गया । तुम अपना बन्दोवस्त करक उसी जगह पहुँच जाआ हम तीनों आदमी धीरे-धीर चलत है। (हरीतिह की तरफ देखकर) क्यों हरीसिह दे लोग कितन आदी होग जिन्हें अभी तुम देख आये हा? हरी-चार-पाच सौ के करीप हाग। नरेन्द्र-जयमिह अगर तुम्ह पचास आदमी नी मिल ता तुम लकर चल आआ दिख लेना हम लागा की एक-एक तलवार दस-दस का सिर काट क दम लगी। जयसिह - इसमें क्या शक है! जगजीत-खैर जाभी मिलें ले आओ यो ता हमार और भी बहुत न आदर्मी फैल हुए है पर वक्त पर जा मिल जाय वही ठीक है। जयसिह - अच्छा ता में जाता हूँ। जग-जाआ। सोलहवां बयान पुनपुन नदी क किनार ही मैदान में यह लश्कर पड़ा हुआ है जिस पर नन्दनिह और जगजीतसिह आज छापा मारन वाल है। इस लश्कर का यहां पहुंचे अमा घण्टा भर नहीं हुआ है इसलिए रात की पहिली अधेरी छा जाने पर भी लरकारी आदमी निश्चिन्त नहीं है। सभी का खान-पीन की फिक्र पडी है, काई जमीन खाद कर चूल्हा बना रहा है काई इधर-उधर स सुखी-सूखी लकड़ियाँ बटार रहा है थाड आदमी जलावन की फिक्र में गाव की तरफ चल जा रह है कुछ आदमी बनिय की खान में दोडरह है इस जगह सिर्फ एक ठीकदार मल्लाह की मडई पड़ी हुई है बनिये की काई दुकान नहीं हलवाई का नाम-निशान नहीं खान-पीन की कोई चीज मिल नहीं सकती नदी क पार कुछ दूर पर गाव है उसी गाव में खानपीन ना सामान मिलगा इसलिए सभों का उस पार जान जल्दी पड़ी है। बरसात का मौसम हाने क कारण इस बरसाती नदी में नी मी खूप आया हुआ है मगर सिवाय एक छाटी सी नाव क पार उतरन का काई महारा नहीं है इसलिए घाट पर एक मला सा लगा हुआ है और कद-कूद कर लाग नाव पर पहिले चढन क लिए उतावल हा रह हैं। पांच सौ आदमियों की भीड कुछ कम नहीं हाती ! इतने आदमिर्या क खान-पीन का सामान नॉवकदा एक थनियों से पूरा होना बहुत मुस्किल है इमलिए गाव में हर तरफ हुज्जत हा रही है। जमींदार और किसानों के मकान पर लाग घून नचा रहे है, 'जाटा हा आटा ही दवा चावल हाचावल हीददी,चना हा चना ही देदो जाचाहे दाम लला मगर दा नहा दागे तो हम जबर्दस्ती लूट लेंगे ! ऐसी-एसी वालों का सुन-सुन कर उमींदार ठाकुर लोग भी बदहवास हा रह है। जिसस ना बनता है दता है और हाथ जाडता है मार कोलाहल किसी तरह कम नहीं होता। दा घन्ट रात जात जात तक इन पॉचमी आदमियों में से अपनीझपनी फिक्र म लगभग चार सौ आदमियों के पार उतर गय और आसपास के गाँवों में फैल गय और सिर्फ एक सौ आदमी उन डालियों का घरे रह गय जिनमें बचारी रम्मा और तारा अपन दुख की घडिया गिन रही थीं। इन लोगों कखाने मीन का गभान इनके संगसाथील आवेग डाली की हिफाजत कम न हान पाव इनीलिए जरूरी समझ कर य सो आदमी छाड दिए गए हैं पर इस हुल्लड में यह कुछ भी मालूम नहीं होता कि इन पाँच नो आदमियों का सदार कौन है। क्या नरन्द्रसिह और जगजीलसिह इत साच में थ कि इन पाँच सो आदनिया में रा अपनी-अपनी फिक्र में बहुत स इधर उधर टल जाय ता एकाएक क्च हुए सिपाहियों पर छापा मारे? यशक ठ इसी फिक्र में थ। वह देखिए चालीस सवारों का साथ लिए दानों भाई दक्खिन तरफल घोड फेंके चल आ रह है जिन्होंन घात की बात में डाली के पास पहुँच कर तलवारों का खून चटाना शुरू कर दिया। दसरोमामान निश्चिन्त वैठ हुए सौ अदमी एसी हालत में भला क्या कर सकत य? आधी घडी में आध स ज्यादें मार गए और बाकीयच हुओ को सिवाय भागन के दूसरी बात न सूझी। देखतदेखते मैदान साफ हो गया और सिर्फ दानो डोलियाँ रह गई जिनके लिए इतना खून-खरावा मचाया गया था। डानिया में मदानों औरते बाहर निकाल ली गई एक का नरन्दसिह ने अपन घाडे पर और दूसरी को जगजीत न अपन घोड पर वैटा लिया तथा जिधर से आय थे उधर ही का जात हुए दिखाई दने लग। हमें इससे कोई नतलब नहीं कि इस खून-खराब क बाद उन लोगों की क्या दशा हुई और उन चार सौ फैल हुए 'पुनपुन वाकीपुर से चार कोस दक्खिन गयाजी के रास्त पर की एक छोटी नदी है। नरेन्द्र मोहिनी ११५१